तमिलनाडु: पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को पैसे के बदले नौकरी केस में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत

तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को ईडी ने पिछले साल जून में कैश फॉर जॉब्स घोटाला मामले में गिरफ़्तार किया था. सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत देते हुए कहा कि कठोर क़ानूनों के तहत दर्ज मामलों में भी ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है.

तमिलनाडु के बिजली मंत्री वी. सेंथिल बालाजी. (फोटो साभार: ट्विटर/@V_Senthilbalaji)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर को तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को जमानत दे दी, जिन्हें एक साल पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया था. कोर्ट ने कहा कि कठोर कानूनों के तहत मामलों में भी जमानत नियम है और जेल अपवाद है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि ‘इस स्तर पर यह मानना ​​बहुत मुश्किल होगा कि बालाजी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत कोई प्रथमदृष्टया मामला नहीं बनता है. लेकिन अदालत ने यह भी कहा कि बालाजी को अब लगभग 15 महीने हो चुके हैं और मुकदमा तीन या चार साल में भी खत्म होने की संभावना नहीं है.

पीठी ने कहा, ‘यदि अपीलकर्ता की हिरासत जारी रहती है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा.’

बालाजी को पिछले साल जून में कथित घोटाला मामले में गिरफ्तार किया गया था, जो 2011-16 में अन्नाद्रमुक सरकार में परिवहन मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल से जुड़ा है. ईडी ने बालाजी पर 2014-15 में पैसे के बदले उम्मीदवारों को नौकरी देने के लिए परिवहन अधिकारियों के साथ आपराधिक साजिश रचने का आरोप लगाया है. गिरफ्तारी के समय वह एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार में बिजली और निषेध एवं उत्पाद शुल्क मंत्री थे.

फैसले में कहा गया है कि पीएमएलए के तहत, धारा 45(1)(ii) के तहत जमानत देने के लिए एक उच्च सीमा निर्धारित की गई है क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग देश की वित्तीय प्रणाली के साथ-साथ इसकी संप्रभुता के लिए एक गंभीर खतरा है.

पीठ ने कहा, ‘मुकदमे में अत्यधिक देरी और जमानत देने की उच्च सीमा एक साथ नहीं हो सकती.’ जमानत नियम है और जेल अपवाद है. जमानत देने के बारे में ये कड़े प्रावधान, जैसे कि पीएमएलए की धारा 45(1)(iii), ऐसा साधन नहीं बन सकते जिसका इस्तेमाल आरोपी को बिना सुनवाई के अनुचित रूप से लंबे समय तक कैद में रखने के लिए किया जा सके.’

अदालत ने कहा, ‘धारा 45(1)(ii) राज्य को किसी आरोपी को अनुचित रूप से लंबे समय तक हिरासत में रखने की शक्ति नहीं देती है, खासकर तब जब उचित समय के भीतर मुकदमा समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है. उचित समय क्या होगा यह उन प्रावधानों पर निर्भर करेगा जिनके तहत आरोपी पर मुकदमा चलाया जा रहा है.’

भारत संघ बनाम केए नजीब में अपने फैसले का हवाला देते हुए, जिसमें शीर्ष अदालत ने यूएपीए मामले में आरोपी व्यक्ति को मुकदमे में देरी के कारण जमानत देने को बरकरार रखा था, पीठ ने कहा कि ऐसी असाधारण शक्तियों…का प्रयोग केवल संवैधानिक न्यायालयों द्वारा ही किया जा सकता है.

मुकदमे में देरी का कारण बनने वाले कारकों को स्पष्ट करते हुए फैसले में कहा गया कि बालाजी के मामले के अलावा कथित घोटाले के संबंध में तीन अनुसूचित अपराध भी दर्ज हैं. मुख्य मामले में लगभग 2,000 आरोपी हैं और 550 अभियोजन पक्ष के गवाह हैं. इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि तीन अनुसूचित अपराधों में 2,000 से अधिक आरोपी हैं और जिन गवाहों की जांच की जानी है उनकी संख्या 600 से अधिक है.

उन्हें जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा लिए गए निर्णयों से संकेत मिलता है कि राज्य में बालाजी की प्रभावशाली स्थिति के कारण रिश्वत देने वालों और लेने वालों के बीच तथाकथित समझौता हुआ होगा और अपीलकर्ता द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की आशंका को देखते हुए कड़ी शर्तें लगाई जानी चाहिए.

शीर्ष अदालत ने बालाजी को 25 लाख रुपये का जमानत बॉन्ड और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने को कहा. साथ ही, उन्हें अभियोजन पक्ष के गवाहों और तीनों अनुसूचित अपराधों के पीड़ितों से संपर्क न करने, अपना पासपोर्ट जमा करने और हर सोमवार और शुक्रवार को चेन्नई में ईडी के उप निदेशक के कार्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को कहा.

अदालत ने कहा कि बालाजी को हर महीने के पहले शनिवार को तीनों अनुसूचित अपराधों के जांच अधिकारियों के समक्ष पेश होना होगा.

इस बीच, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने इस फैसले को बालाजी की भावना को कुचलने के लिए लंबे समय से चल रही राजनीतिक साजिश पर जीत बताया.

पिछले साल जून में गिरफ्तारी के बावजूद स्टालिन ने बालाजी को फरवरी 2024 तक बिना विभाग के मंत्री के रूप में बनाए रखा था, उसके बाद बालाजी ने लगभग नौ महीने की हिरासत के बाद इस्तीफा दे दिया था.

सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से पहले बालाजी की जमानत याचिका को जिला सत्र न्यायालय और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा कई बार खारिज किया गया था.

हालांकि, गिरफ्तारी के दौरान बालाजी की तबीयत खराब हो गई थी – जिसके कारण उन्हें बाईपास सर्जरी और कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा – लेकिन उनकी कानूनी टीम द्वारा चिकित्सा आधार पर जमानत हासिल करने के प्रयासों को भी मद्रास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पहले ही अस्वीकार कर दिया था.