4 अक्टूबर 2024/नई दिल्ली: यह लेख रविवार 29 सितंबर को प्रकाशित हुआ था. इसे कुछ समय के लिए ‘ऑफ एयर’ किया गया क्योंकि लेखक ने इसकी त्रुटियों और तथ्यात्मक गलतियों को सुधार कर इसका संशोधित और संवर्धित संस्करण भेजने का वायदा किया था.
संपादकीय डेस्क और लेखक का संवाद अत्यंत आत्मीय और गरिमामयी होता है. इस संवाद की भूमि पर आरंभिक ड्राफ्ट सशक्त लेख का रूप लेते हैं, इस ग्रीनरूम में नेगेटिव धुलकर मुकम्मल तस्वीर बनते हैं. हम इस निजता की हरसंभव रक्षा करते हैं. चूंकि लेखक ने इस संवाद के चुनिंदा अंश सार्वजनिक कर दिए हैं, द वायर हिंदी बाध्य होकर उनके साथ हुआ पत्राचार जारी कर रहा है.
§
द वायर हिंदी द्वारा 3 अक्टूबर को लेखक को भेजा गया मेल
प्रिय शुभनीत जी,
हमारे संज्ञान में आपकी फेसबुक पोस्ट आयी है. आपको इस पोस्ट के लिए बहुत धन्यवाद, क्योंकि यह उस विषय से जुड़ी है जिस पर बहुत कम बात होती है—लेखक-सम्पादक का संबंध.
आपने कुछ दिन पहले हमें अशोका और तीन मूर्ति इत्यादि के अभिलेखागार पर एक लेख भेजा था. हमने व्यक्तिगत तौर पर आपको फोन कर कहा था कि आप एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय को उठा रहे हैं. हमने उसे गर्व से प्रकाशित किया था, इस विश्वास के साथ कि आप हमारे नियमित लेखक और एक सम्मानित अध्येता हैं, जिनके लेख त्रुटिरहित होते हैं, जिन्हें फैक्ट-चेक करने की ज़रूरत नहीं होती और जिन पर हम आँख मूंदकर विश्वास कर सकते हैं. यह विडंबना है कि इस लेख में त्रुटियां थीं, जिन पर हमारा ध्यान प्रकाशन के कुछ देर बाद गया.
हमने तुरंत आपको फोन कर अवगत कराया. आप पहले असहमत थे, लेकिन फिर आपने कुछ बिंदुओं को स्वीकार किया. हमारे बीच मैसेज भी हुए. जब हमने लिखा कि न्यायप्रियता हम दोनों के लिए सबसे बड़ा मूल्य होना चाहिये, आपने तुरंत जवाबी मैसेज कर सहमति जताई कि आपको कुछ चीज़ों का उल्लेख करना चाहिये था जो आपकी निगाह से छूट गयीं.
हमारी वार्ता इस बिंदु पर ख़त्म हुई कि आप पिछले लेख की कमियां दूर करते हुए एक संशोधित संस्करण भेजेंगे.
हम आश्वस्त थे कि चूँकि अब नया संस्करण आयेगा, हम वर्तमान लेख को कुछ समय के लिए ‘ऑफ एयर’ कर सकते हैं. जैसे ही आप नया संस्करण भेजेंगे, हम उस पृष्ठ पर इसे तुरंत बदल देंगे. (यह वेब पत्रकारिता की सामान्य प्रक्रिया है. अगर किसी ख़बर या लेख में कभी कहीं कोई त्रुटि रह जाती है, मीडिया संस्थान उसे कुछ देर के लिए ऑफ़ एयर कर, त्रुटि को सुधार कर उसे पुनर्प्रकाशित कर देते हैं. आपका लेख अभी भी हमारी वेबसाइट पर सुरक्षित है.)
आपने वायदे के मुताबिक दूसरा संस्करण भेजा, जो कई बिंदुओं पर पिछले ड्राफ्ट से भिन्न था, सशक्त और तर्कसंगत था. हमें ख़ुशी हुई कि आपने हमारी संपादकीय टिप्पणियों को गंभीरता से लेते हुए उन पर अमल किया. (आप चाहें तो आज की तारीख़ में ये दोनों ड्राफ्ट अपनी वॉल पर साझा कर सकते हैं ताकि पाठकों को पता चले कि हमारे संपादकीय सुझावों ने किस तरह आपकी मदद की और किस तरह आपने हमारे सुझाव के बाद अपने तर्क को पुष्ट किया. पाठकों को यह भी पता चल जायेगा कि दरअसल आपने खुद ही द वायर हिंदी पर प्रकाशित हुए अपने पहले ड्राफ्ट को रद्द कर दिया है, क्योंकि जो ड्राफ्ट आपने अभी हाल ही अन्यत्र प्रकाशित किया है, वह आपका पहला नहीं बल्कि हमारे सुझावों से संवर्धित हुआ दूसरा ड्राफ्ट है.)
लेकिन आपके दूसरे ड्राफ्ट में भी हमें कुछ कमियां दिखाई दीं. हमने आपको मैसेज किया. जब आपने लिखा कि अब आप इसका प्रकाशन नहीं चाहते, हमने तुरंत आपको फोन किया, बार-बार दोहराया कि हम इसे प्रकाशित करना चाहते हैं, और आग्रह करते रहे कि आप नया ड्राफ्ट भेज दें.
आप तीसरे ड्राफ्ट पर काम करने की बजाय इस प्रकरण को फेसबुक पर ले आये और दूसरे ड्राफ्ट को अन्यत्र प्रकाशित कर दिया.
लेकिन हमें अभी भी आपका इन्तजार है. बताएं, तीसरा ड्राफ्ट कब भेजेंगे?
इसके साथ ही, आपसे आग्रह है कि आप अपनी पोस्ट पर कमेन्ट कर एकदम वाजिब फ़िक्र और आक्रोश व्यक्त कर रहे साथियों से भी कहें कि इस विषय पर अपने लेख भेजें. हम शिक्षा और अनुसंधान के व्यवसायीकरण का घनघोर विरोध करते हैं और इतने महत्वपूर्ण विषय को समूची शक्ति से उठाना चाहते हैं. हमें उम्मीद है कि जितने कमेन्ट आपकी इस पोस्ट पर आये हैं, उससे कहीं अधिक लेख और रिपोर्ताज हमें आगामी दिनों में प्राप्त होने वाले हैं. आप अशोका विश्वविद्यालय पर रिपोर्ताज की इस श्रृंखला को हमारे लिए क्यूरेट करें, जिसके लिए आपको उचित मानदेय दिया जायेगा.
सादर,
§
3 अक्टूबर को लेखक द्वारा द वायर हिंदी को भेजा गया जवाब
प्रिय संपादक जी,
प्रस्ताव के लिए धन्यवाद! पर माफ कीजिएगा, अब द वायर के लिए कोई लेख लिखने या वायर द्वारा प्रकाशित की जाने वाली किसी सीरीज को क्यूरेट करने में मेरी तनिक भी दिलचस्पी नहीं है. आप इस सीरीज की जिम्मेदारी किसी अन्य विद्वान, समाज वैज्ञानिक या इतिहासकार को सौंप दें.
—०—