नई दिल्ली: धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन देवभूमि संघर्ष समिति ने शिमला में मस्जिद के एक हिस्से के कथित अवैध निर्माण को लेकर हिमाचल प्रदेश के जिलों में विरोध प्रदर्शन किया. यह विरोध प्रदर्शन हिमाचल प्रदेश में अवैध मस्जिदों और प्रवासियों के खिलाफ किया गया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि वक्फ बोर्ड को खत्म किया जाए और प्रवासियों के दस्तावेजों की जांच की जाए.
बाद में शिमला के चौड़ा मैदान में विधानसभा के निकट एक और विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें संजौली में मस्जिद के कथित ‘अवैध’ हिस्से को ध्वस्त करने की मांग की गई.
पिछले एक महीने में शहर में हुए सांप्रदायिक तनाव पर टिप्पणी करते हुए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर हरीश कुमार ठाकुर ने कहा, ‘चूंकि धार्मिक मुद्दे काफी संवेदनशील होते हैं, इसलिए सरकार और प्रशासन को शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए समझदारी से काम लेना होगा.’
यह विरोध प्रदर्शन सीटीओ चौक से लोअर बाजार होते हुए रिज पर महात्मा गांधी की प्रतिमा तक शांति मार्च निकाले जाने के एक दिन बाद हुआ है. शहर में विरोध प्रदर्शनों और सांप्रदायिक तनाव की श्रृंखला के बीच शांति और एकता का एक मजबूत संदेश देने के उद्देश्य से इसमें विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों ने भाग लिया.
मार्च में भाग लेते हुए सीपीआई (एम) नेता और शिमला के पूर्व महापौर संजय चौहान ने वर्तमान स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की और शहर में विभिन्न समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.
चौहान ने कहा, ‘शिमला में सभी धर्मों के लोग लंबे समय से एक साथ रह रहे हैं, लेकिन अब वैमनस्य पैदा करने की कोशिश की जा रही है. शिमला में विभिन्न संगठनों द्वारा सद्भावना मार्च निकाला जा रहा है, जिसमें सभी समुदायों के लोग भाग ले रहे हैं. प्रदर्शन में भाग लेने वाले लोगों ने शांति की अपील की.’
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, वहीं, मंडी में हिंदू संगठनों के नेताओं ने कहा कि राज्य में वक्फ बोर्ड द्वारा कथित अतिक्रमण को लेकर अशांति बढ़ रही है तथा पूरे क्षेत्र में अवैध मस्जिदों और धर्मस्थलों के निर्माण की खबरें आ रही हैं. उन्होंने अवैध प्रवासियों की बढ़ती मौजूदगी पर भी चिंता व्यक्त की.
हिंदू संगठनों ने राज्य सरकार से वक्फ बोर्ड को भंग करने तथा अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त नीतियां बनाने का आग्रह करते हुए मंडी के डिप्टी कमिश्नर को ज्ञापन सौंपा.
हमीरपुर में देवभूमि संघर्ष समिति के जिला अध्यक्ष सुरजीत सिंह तथा बजरंग दल के जिला प्रमुख आशीष शर्मा के नेतृत्व में जुलूस निकाला गया, जिसमें कई लोग भगवा झंडे और बैनर लहराते हुए शामिल हुए.
रैली को संबोधित करते हुए संगठन के नेताओं ने मांग की कि हिमाचल प्रदेश में प्रवासियों के दस्तावेजों की जांच करने का प्रस्ताव 2 अक्टूबर को राज्य भर में आयोजित होने वाली ग्राम सभा की बैठकों में पारित किया जाए.
उन्होंने राज्य की कांग्रेस सरकार पर संजौली मस्जिद मुद्दे पर टालमटोल करने का भी आरोप लगाया.
हिंदू समूह और स्थानीय लोग संजौली में मस्जिद के एक कथित अनधिकृत हिस्से को गिराने की मांग कर रहे हैं. 11 सितंबर को विरोध प्रदर्शन के दौरान दस लोग घायल हो गए, एक दिन पहले मुस्लिम समुदाय ने नगर आयुक्त से अनधिकृत हिस्से को सील करने का आग्रह किया था और अदालत के आदेश के अनुसार इसे गिराने की पेशकश भी की थी.
देवभूमि संघर्ष समिति के नेताओं ने सरकार को चेतावनी दी कि वह इस मुद्दे को हल्के में न ले और बिना वैध दस्तावेजों के बाहरी लोगों की मदद करने के बजाय राज्य में हिंदुओं को शांतिपूर्वक रहने में मदद करे.
बीते 23 सितंबर को राज्य के विभिन्न हिस्सों में मस्जिदों की वैधता पर उठते सवाल और विरोध प्रदर्शन के बीच, हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता और सुधार लाने की आवश्यकता पर जोर दिया था.
मंत्री ने कहा था, ‘कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का कर्तव्य है. लेकिन हमें हर संगठन में भी पारदर्शिता लानी होगी. वक्फ बोर्ड में भी पारदर्शिता होनी चाहिए… बोर्ड के वित्तीय लेनदेन, कुल भूमि और भूमि आवंटन को सार्वजनिक किया जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा था, ‘भूमि आवंटन पर लोगों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं. जिस तरह की स्थिति बनी है, मेरा मानना है कि समय के साथ हर संगठन, ट्रस्ट और धार्मिक निकायों में बदलाव और सुधार होने चाहिए.’
मालूम हो कि बीते 11 सितंबर को शिमला के सबसे बड़े उपनगर संजौली में एक मस्जिद में कथित अवैध निर्माण के मामले को लेकर जमकर बवाल हुआ था. हजारों की तादाद में जुटे उग्र हिंदुओं ने सड़कों पर बैरिकेडिंग तोड़ी और करीब पांच घंटों तक नारेबाजी की थी. यह हिंसक भीड़ मस्जिद के 100 मीटर तक पहुंच गई और उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हुई थी. छह पुलिसकर्मी सहित कई लोग घायल हुए थे.
इस मस्जिद का निर्माण 2007 में शुरू हुआ था. स्थानीय लोगों ने मस्जिद को अवैध बताते हुए वर्ष 2010 में इसके खिलाफ नगर निगम की अदालत में याचिका दाखिल की. तब से यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है.