नई दिल्ली: बेंगलुरू की एक विशेष अदालत के आदेश के बाद शनिवार (28 सितंबर) को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कई अन्य लोगों के खिलाफ विवादास्पद चुनावी बॉन्ड योजना के संबंध में मामला दर्ज किया गया. योजना अब समाप्त कर दी गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें 384 (जबरन वसूली), 120बी (आपराधिक साजिश) और धारा 34 (साझा इरादे से कई व्यक्तियों द्वारा किया गया कृत्य) शामिल हैं.
यह मामला बेंगलुरू की एक अदालत के आदेश की पृष्ठभूमि में आया है, जिसमें तिलक नगर पुलिस को केंद्रीय वित्त मंत्री के खिलाफ मामला दर्ज करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें उन पर अब बंद हो चुके चुनावी बॉन्ड के माध्यम से धन उगाही में शामिल होने के आरोप थे.
इस मामले में शामिल लोगों में कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजेंद्र और पार्टी नेता नलिन कुमार कतील सहित प्रमुख भाजपा नेता और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी भी शामिल हैं.
एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष आदर्श आर. अय्यर ने शिकायत दर्ज कराई कि आरोपी चुनावी बॉन्ड के नाम पर जबरन वसूली में शामिल थे. शिकायत में कहा गया है कि वित्त मंत्री ने ईडी, जो वित्त मंत्रालय के तहत काम करती है, और संवैधानिक पदों पर बैठे कई व्यक्तियों के साथ मिलकर साजिश रची, जिसके तहत एल्युमीनियम और तांबे की दिग्गज कंपनियों- वेदांता, स्टरलाइट और अरबिंदो फार्मा पर चुनावी बॉन्ड के जरिये 8,000 करोड़ से अधिक की रकम वसूलने के लिए छापे मारे गए.
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि निर्मला सीतारमण ने ईडी अधिकारियों की गुप्त सहायता से राज्य और राष्ट्रीय मंचों पर विभिन्न व्यक्तियों के लाभ के लिए बड़ी मात्रा में धन की हेराफेरी की. उन्होंने कहा कि यह पूरी जबरन वसूली योजना कई स्तरों पर भाजपा अधिकारियों के साथ मिलीभगत से की गई थी.
इस विवाद ने दक्षिणी राज्य कर्नाटक में भी राजनीतिक घमासान मचा दिया है, जहां सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार विपक्षी भाजपा के साथ आमने-सामने है. मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूमि आवंटन घोटाला मामले में जांच का सामना कर रहे सीएम सिद्धारमैया ने सीतारमण के इस्तीफे की मांग की और चुनावी बॉन्ड योजना में उनकी कथित भूमिका के खिलाफ विरोध न करने के लिए भगवा पार्टी की आलोचना की.
गौरतलब है कि चुनावी बॉन्ड योजना 2017 में वित्त अधिनियम के माध्यम से लाई गई थी और फरवरी 2024 में इसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए इसे तत्काल प्रभाव से रद्द करने का आदेश दे दिया था. अदालत ने इसे मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए एसबीआई से बॉन्ड से संबंधित सभी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने और फिर आयोग द्वारा इसे अपनी वेबसाइट पर साझा करने का निर्देश दिया था.
ज्ञात हो कि चुनावी बॉन्ड एक तरह का वचन पत्र (promissory note) था, जिसमें दानदाताओं को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के जरिये इन बॉन्ड्स को खरीदने और राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से चंदा देने की अनुमति दी गई थी. इन बॉन्ड्स पर चंदा देने वालों का नाम नहीं होता था और न ही राजनीतिक दलों को इन बॉन्ड्स के स्रोत का खुलासा करने की आवश्यकता होती थी.