नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (30 सितंबर) को आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लड्डू में कथित तौर पर ‘जानवरों की चर्बी’ वाले घी के इस्तेमाल मामले में सुनवाई करते राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि भगवान को राजनीति से दूर रखें.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की उस टिप्पणी पर नाराज़गी व्यक्त की, जिसके बाद से यह लड्डू विवाद शुरू हुआ था.
मालूम हो कि चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को प्रेस में बयान दिया था कि जगन मोहन रेड्डी सरकार के कार्यकाल में तिरुपति के प्रसाद के लड्डुओं में पशु चर्बी युक्त मिलावटी घी का इस्तेमाल हुआ है. इसके बाद उन्होंने घी में मिलावट पाए जाने की रिपोर्ट भी सार्वजनिक की थी.
शीर्ष अदालत ने उचित सबूतों के अभाव में चल रही जांच के बीच सीएम के प्रेस में बयान देने की जरूरत पर भी सवाल उठाया.
अदालत ने चंद्रबाबू नायडू के लिए कहा, ‘जब आप एक संवैधानिक पद पर होते हैं, तो यह अपेक्षा की जाती है कि आप संयम बरतें… हम उम्मीद करते हैं कि भगवानों को राजनीति से दूर रखा जाएगा… प्रथमदृष्टया, इस स्तर पर यह दिखाने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है कि प्रसाद बनाने में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया था.’
मालूम हो कि चंद्रबाबू नायडू के बयान के बाद इस विवाद ने तूल पकड़ा और सुप्रीम कोर्ट में तीन से ज़्यादा याचिकाएं दाखिल की गईं. याचिका दाखिल करने वालों में सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सांसद वाईवी सुब्बा रेड्डी और इतिहासकार विक्रम संपत भी शामिल हैं.
इस मामले में अदालत ने राज्य की विशेष जांच टीम (एसआईटी) की जांच पर रोक लगाते हुए इस बात पर विचार करने पर सहमति जताई कि क्या नायडू के सार्वजनिक बयानों के मद्देनजर जांंच एक स्वतंत्र निकाय को दी जानी चाहिए क्योंकि नायडू के इस मुद्दे के केंद्र में पूर्व सीएम जगन रेड्डी हैं, जिन पर प्रसाद को लेकर नायडू लगातार हमला कर रहे हैं.
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, ‘अगर आपने पहले ही जांच के आदेश दे दिए थे, तो मीडिया में जाने की क्या ज़रूरत थी? लैब रिपोर्ट जुलाई में आई. आपका बयान सितंबर में आया. रिपोर्ट में भी सब कुछ साफ़ नहीं है.’
ज्ञात हो कि इस मामले में सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कर रही है. पीठ ने मुद्दे की गंभीरता को रेखांकित करते हुए बताया कि इस विवाद से तिरुमला मंदिर के भगवान वेंकटेश्वर को मानने वाले लाखों भक्तों की धार्मिक भावनाएं प्रभावित हुई हैं.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हम प्रथमदृष्टया मानते हैं कि जब जांच प्रक्रिया में थी, तो एक उच्च संवैधानिक पदाधिकारी की ओर से बयान देना उचित नहीं था, जो जनता की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है. मामले को देखते हुए यह उचित होगा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता यह निर्णय लेने में हमारी सहायता करें कि क्या पहले से नियुक्त एसआईटी को जारी रखा जाना चाहिए या किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की जानी चाहिए.’
नायडू पर विपक्ष का निशाना
शीर्ष अदालत की सख्त टिप्पणियों के बाद आंध्र प्रदेश में राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और आंध्र प्रदेश के पूर्व बंदोबस्ती (endowments) मंत्री वेल्लमपल्ली श्रीनिवास ने सीएम नायडू के लगाए ‘निराधार और गैर-जिम्मेदाराना’ आरोपों के जांच की मांग की है.
श्रीनिवास ने कहा, ‘उनके आरोपों ने लाखों लोगों की भावनाओं को आहत किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर सही टिप्पणी की है कि एसआईटी द्वारा जांच का आदेश देने से पहले ही नायडू ने ऐसे बयान क्यों दिए और तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) अधिकारियों ने प्रसाद में मिलावट के मामले में दूसरी राय क्यों नहीं ली.’
मालूम हो कि शीर्ष अदालत के समक्ष दाखिल याचिकाओं में इस पूरे मामले की जांच अदालत की निगरानी में एक समिति द्वारा कराने की मांग की गई है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 3 अक्तूबर को होगी.
गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के तिरुमला तिरुपति देवस्थान दुनिया के सबसे अमीर तीर्थस्थलों में से एक है. यहां हर रोज हज़ारों की संख्या में लोग दर्शन करने जाते हैं, जो लड्डू विवाद में हैं, उनकी वार्षिक बिक्री से राजस्व के रूप में मंदिर 500 करोड़ रुपये कमाता है.
इस विवाद शुरुआत सीएम नायडू के आरोप से हुई थी, इसके बाद 19 सितंबर को तेलुगु देशम पार्टी ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीबीबी) द्वारा संचालित एक लैब रिपोर्ट जारी की, जिसमें कथित तौर पर तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) द्वारा भेजे गए घी के नमूनों में ‘बीफ टैलो’, ‘मछली का तेल’ और ‘लार्ड’ की पुष्टि की गई थी. टीटीडी ही प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का प्रबंधन करता है.
गौर करने वाली बात ये हैं कि इन नमूनों के प्राप्ति की तारीख 9 जुलाई थी और लैब रिपोर्ट 16 जुलाई को सामने आई थी. ये दोनों तारीखें नायडू के सीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद की हैं.
मिलावटी घी के आरोपों के केंद्र में पूर्व सीएम जगमोहन रेड्डी हैं, जिन्हें अपने धर्म के चलते दक्षिणपंथी विरोध झेलना पड़ा है और अपने पिछले सप्ताह की तिरूपति यात्रा रद्द करने को मजबूर होना पड़ा है. उन्होंने भी सीएम नायडू पर निशाना साधते हुए राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे ‘गंभीर आरोप” लगाने का आरोप लगाया है.
लैब रिपोर्ट में विसंगतियां
सुप्रीम कोर्ट ने भी लैब रिपोर्ट में कई विसंगतियां बताईं. अदालत ने कहा कि यह रिपोर्ट प्रथमदृष्टया इंगित करती है कि परीक्षण की गई सामग्री का उपयोग लड्डू बनाने में नहीं किया गया था. रिपोर्ट इस दावे को पुष्ट करने के लिए अपर्याप्त है कि प्रसाद में इस्तेमाल किया गया घी मिलावटी था.
इसके अलावा अदालत ने एसआईटी के गठन के तरीके पर आपत्ति जताई और चल रही जांच के दौरान सार्वजनिक बयानों की जरूरत पर सवाल उठाया.
कोर्ट ने कहा, ‘एक बार जब आपने एसआईटी को आदेश दे दिया, तो जांच पूरी होने से पहले सार्वजनिक बयान देना क्यों आवश्यक था? जब चल रही जांच के दौरान उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा ऐसे बयान दिए जाते हैं, तो इसका जांच की अखंडता और एसआईटी अधिकारियों पर क्या प्रभाव पड़ता है. ऐसा बयान देकर आपने सिर्फ एक लाख या दो लाख लोगों की नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित किया है.’
वहीं, टीटीडी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को घी की खरीद और उसके परीक्षण से संबंधित तारीखों की एक श्रृंखला के बारे में बताया. उन्होंने उल्लेख किया कि जून की शुरुआत में लड्डू की गुणवत्ता के बारे में शिकायतें सामने आईं थीं, जिसके बाद जून के अंत और जुलाई की शुरुआत में आपूर्ति किए गए घी पर परीक्षण किया गया. वरिष्ठ वकील ने कहा कि घी की ताजा आपूर्ति 6 जुलाई को आई और उसे एनडीडीबी में आगे के परीक्षण के लिए भेजा गया.
हालांकि, पीठ इस बात से सहमत नहीं थी कि जिस घी की बात हो रही है, उसका उपयोग लड्डुओं में किया गया था.
पीठ ने सवाल किया, ‘एक बार जब आप आपूर्ति को मंजूरी दे देते हैं और घी मिल जाता है, तो आप कैसे अलग कर पहचानते हैं कि किस बैच का उपयोग किया गया था?’
पीठ ने परीक्षण प्रक्रिया में विसंगतियों की ओर भी इशारा करते हुए पूछा कि क्या सभी टैंकरों से नमूने विश्लेषण के लिए लिए गए थे. क्या लैब ने 12 जून के टैंकर और 20 जून के टैंकर से नमूने लिए थे? उन परीक्षणों के परिणाम क्या थे? और यदि उन नमूनों का परीक्षण नहीं किया गया, तो यह केवल आपकी धारणा है कि मिलावटी घी का उपयोग हुआ है.
ज्ञात हो कि स्वामी और रेड्डी द्वारा दायर याचिकाओं में मंदिर की परंपराओं को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि प्रसाद के रूप में लड्डू बनाना संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित एक धार्मिक प्रथा है. उन्होंने मिलावट के आरोपों की जांच के लिए स्वतंत्र जांच की मांग की है.
दूसरी ओर, संपत और श्रीधर द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका में हिंदू मंदिरों, विशेष रूप से राज्य अधिकारियों द्वारा प्रबंधित मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण को कम करने और अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने की मांग की गई है. जबकि, सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक और प्रबंध निदेशक सुरेश चव्हाणके की याचिका में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या पूर्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में जांच की मांग की गई है.
बचाव में तेदेपा
अदालत की टिप्पणियों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए तेलुगू देशम पार्टी के नेता और राज्य ब्राह्मण चैतन्य वेदिका सिरिपुरम के अध्यक्ष श्रीधर शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह कहना उचित नहीं है कि प्रसाद में मिलावट का कोई सबूत नहीं है. वाईएसआरसीपी शासन के दौरान तिरुपति लड्डू में इस्तेमाल किया जाने वाला घी मिलावटी था.
उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री ने टीटीडी द्वारा सौंपी गई लैब रिपोर्ट को देखने के बाद यह बयान दिया है. अगर उन्होंने रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया होता, तो यह धारणा बनती कि वह अतीत में हुई गलतियों का बचाव कर रहे थे. उन्होंने रिपोर्ट का खुलासा केवल श्रद्धालुओं को यह बताने के लिए किया कि ऐसी गलतियां दोबारा नहीं होंगी.
तेदेपा प्रवक्ता पट्टाभि राम कोम्मारेड्डी ने कहा कि उन्होंने जो भी बातें जनता के सामने रखी हैं, वो उस पर कायम हैं.
उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘इससे पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता. सौ प्रतिशत यह (मिलावटी घी) इस्तेमाल किया गया था, हमारे पास साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं. हमने सब कुछ जनता के सामने रख दिया है. इसलिए, इसे अदालत के सामने भी रखा जाएगा.’
मामले में केंद्रीय एजेंसी की जांच की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘हमें कोई दिक्कत नहीं है.’