सुप्रीम कोर्ट ने जग्गी वासुदेव की संस्था ईशा फाउंडेशन के ख़िलाफ़ पुलिस जांच पर रोक लगाई

शीर्ष अदालत एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी 42 और 39 वर्ष की दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन में रहने के लिए 'ब्रेनवॉश' किया गया है.

ईशा फाउंडेशन के प्रमुख जग्गी वासुदेव. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट से गुरुवार (3 अक्टूबर) को स्वयंभू गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा योग केंद्र के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों में पुलिस जांच रोकने का आदेश दिया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ समेत तीन सदस्यीय पीठ ने ईशा योग केंद्र की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट द्वारा जांच के निर्देश पर रोक दी और मामले को अगली सुनवाई के लिए 18 अक्टूबर को सूचीबद्ध कर दिया.

मालूम हो कि इससे पहले हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को ईशा केंद्र के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश देते हुए जांच के लिए कहा था. इसके बाद ईशा योग केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने ईशा योग केंद्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी द्वारा तत्काल सुनवाई के अनुरोध के बाद ये आदेश पारित किया. केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईशा फाउंडेशन की याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय को इस मामले में अधिक सतर्क रहना चाहिए था.

ज्ञात हो कि मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार (30 सितंबर) को जग्गी वासुदेव द्वारा संचालित ईशा योग केंद्र के वकील से पूछा था क्यों वासुदेव की अपनी बेटी शादीशुदा है और अपने वैवाहिक जीवन जी रही है, जबकि वे अन्य महिलाओं को वे सांसारिक जीवन का त्याग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं?

मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और वी. शिवगणनम की पीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘हम यह जानना चाहते हैं कि जिस व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसे सेटल कर दिया है, वह दूसरों की बेटियों को अपना सिर मुंडवाने और संन्यासी का जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है. यही संदेह है.’

ज्ञात हो कि अदालत सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस. कामराज द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी 42 और 39 वर्ष की दो बेटियों को ईशा योग केंद्र में रहने के लिए ‘ब्रेनवॉश’ किया गया था.

हालांकि, बेटियों ने मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि वे ईशा योग केंद्र में अपनी मर्ज़ी से रह रही हैं और उन पर किसी ने कोई भी दबाव नहीं डाला था.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस. कामराज की याचिका को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है.