तिरुपति लड्डू विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी गठित की, कहा- अदालत को राजनीति का अखाड़ा न बनाएं

तिरुपति के प्रसाद में कथित तौर पर मिलावटी घी के इस्तेमाल के आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक की निगरानी में एसआईटी गठित की है. इसमें दो सीबीआई अधिकारी, दो आंध्र प्रदेश पुलिस अधिकारी और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एक अधिकारी शामिल होंगे.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लड्डू में कथित तौर पर ‘जानवरों की चर्बी’ वाले घी के इस्तेमाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (4 अक्टूबर) को जांच के लिए एक ‘स्वतंत्र’ विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, इस मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश की मौजूदा सरकार और याचिकाकर्ताओं द्वारा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपों पर ऐतराज जताते हुए कहा कि वह इस अदालत को राजनीति का अखाड़ा बनाने की इजाजत नहीं देंगे.

बता दें कि कोर्ट द्वारा गठित इस एसआईटी में दो अधिकारी सीबीआई के, दो अधिकारी आंध्र प्रदेश पुलिस के और एक अधिकारी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) के होंगे. ये टीम सीबीआई निदेशक की निगरानी में काम करेगी.

हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एसआईटी गठन के उनके आदेश को जांच कर रही राज्य सरकार की एसआईटी के अधिकारियों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता से जोड़कर या उस पर आक्षेप लगाने वाला न समझा जाए.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मिलावट के आरोपों से करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत हुई हैं और इसलिए कोर्ट का मानना है कि लोगों की भावनाएं शांत करने और उन्हें संतुष्ट करने के लिए जांच स्वतंत्र एसआईटी को करनी चाहिए.

ज्ञात हो कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की उस टिप्पणी पर नाराज़गी व्यक्त की थी, जिसके बाद से यह लड्डू विवाद शुरू हुआ था. कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस स्तर पर यह दिखाने का कोई ठोस सबूत नहीं है कि प्रसाद में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया था.

मालूम हो कि चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को प्रेस में बयान दिया था कि जगन मोहन रेड्डी सरकार के कार्यकाल में तिरुपति के प्रसाद के लड्डुओं में पशु चर्बी युक्त मिलावटी घी का इस्तेमाल हुआ है. इसके बाद उन्होंने घी में मिलावट पाए जाने की रिपोर्ट भी सार्वजनिक की थी.

शीर्ष अदालत ने  उचित सबूतों के अभाव में चल रही जांच के बीच सीएम के प्रेस में  बयान देने की जरूरत पर भी सवाल उठाया था. चंद्रबाबू नायडू के बयान के बाद ही इस विवाद ने तूल पकड़ा था और सुप्रीम कोर्ट में तीन से ज़्यादा याचिकाएं दाखिल की गईं थीं. याचिका दाखिल करने वालों में सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सांसद वाईवी सुब्बा रेड्डी और इतिहासकार विक्रम संपत भी शामिल हैं.

सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, शीर्ष अदालत ने 30 सितंबर को केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह पुष्टि करने के लिए कहा था कि क्या आंध्र प्रदेश सरकार की एसआईटी को आरोपों की जांच जारी रखनी चाहिए या क्या जांच को एक स्वतंत्र को हस्तांतरित किया जाना चाहिए एजेंसी.

इस संबंध में शुक्रवार को तुषार मेहता ने पीठ से कहा, ‘मैंने मामले की जांच की है और अगर आरोपों में कोई सच्चाई है, तो यह अस्वीकार्य है. देश भर में इसके भक्त फैले हुए हैं और खाद्य सुरक्षा अधिनियम भी लागू है. मैंने मौजूदा एसआईटी के खिलाफ कुछ भी दायर नहीं किया है, लेकिन इसे केंद्र सरकार के किसी वरिष्ठ अधिकारी की निगरानी में होने दें. इससे भरोसा बढ़ेगा.’

इस पर पीठ ने सीएम नायडू के एक कथित बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित किसी भी जांच से कोई समस्या नहीं है. तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम (टीटीडी) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत से मीडिया रिपोर्टों पर न जाने का आग्रह किया.

आंध्र प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि मिलावटी घी को लेकर पिछले महीने सीएम का बयान जुलाई में आई राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की लैब रिपोर्ट के आधार पर था. हालांकि, वाईवी सुब्बा रेड्डी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मुख्यमंत्री नायडू के बयानों ने पक्षपात को बढ़ावा दिया है और इसलिए एक स्वतंत्र निकाय को मामले की जांच करनी चाहिए.

उन्होंने स्वतंत्र जांच पर जोर देते हुए कहा कि सीएम के बयानों को देखते हुए राज्य एसआईटी स्वतंत्र रूप से अपना काम नहीं कर पाएगी.

सिब्बल ने कहा, ‘यदि आपके आधिपत्य में स्वतंत्र जांच हो तो यह उचित होगा. क्योंकि अगर उन्होंने बयान न दिया होता, तो दूसरी बात होती. लेकिन इसका प्रभाव पड़ता है.’

गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के तिरुमला तिरुपति देवस्थान दुनिया के सबसे अमीर तीर्थस्थलों में से एक है. यहां हर रोज हज़ारों की संख्या में लोग दर्शन करने जाते हैं. प्रसाद के जो लड्डू विवाद में हैं, उनकी वार्षिक बिक्री से राजस्व के रूप में मंदिर तकरीबन 500 करोड़ रुपये कमाता है.