भाजपा ने हार मानी, केंद्र की एलजी को व्यापक शक्तियां देने वाले नियम लाने की तैयारी: उमर

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल्ला के आरोपों को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय ने 'भ्रामक और अटकलबाजी' करार देते हुए कहा है कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला चुनाव प्रचार के दौरान.(फोटो साभार: एक्स/JKNC_)

श्रीनगर: नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मुख्य सचिव को सरकारी कामकाज के नियमों को बदलने के लिए कहा था, जिससे जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को व्यापक शक्तियां मिल जातीं. इस आरोप के बाद बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है.

यह विवाद हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों के कुछ दिनों बाद ही सामने आया है. साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के बाद के तीन नियमों में संशोधन करने के तीन महीने से भी कम समय बाद शुरू हुआ है. उक्त संशोधन एलजी की प्रशासनिक शक्तियों का दायरा बढ़ाने से संबंधित थे.

एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि भाजपा ने मुख्य सचिव को सरकारी नियमों को बदलने का निर्देश दिया था, जिससे सीएम की शक्तियों में ‘कटौती’ हो.

‘सचिवालय के भीतर से मुझे जानकारी मिली है’

अब्दुल्ला ने कहा, ‘भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में स्पष्ट रूप से हार स्वीकार कर ली है। अन्यथा मुख्य सचिव को सरकार के कामकाज के नियमों को बदलने का काम क्यों सौंपा जाता, ताकि मुख्यमंत्री/निर्वाचित सरकार की शक्तियों में कटौती की जा सके और उन्हें एलजी को सौंपा जा सके? अधिकारियों को सलाह दी जाती है कि वे आने वाली निर्वाचित सरकार को और अधिक कमजोर करने के किसी भी दबाव का विरोध करें.’

जवाब में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय ने कहा कि अब्दुल्ला द्वारा लगाए गए आरोपों जैसा ‘कोई प्रस्ताव नहीं है’, और उनके दावे को ‘भ्रामक तथा अटकलबाजी’ करार दिया.

गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘उमर अब्दुल्ला का ट्वीट भ्रामक और अटकलबाजी वाला है. इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है, क्योंकि ऐसा कोई प्रस्ताव ही नहीं है. भारत की संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 में कामकाज के नियमों को अधिसूचित करने का प्रावधान है, और इसे ही वर्ष 2020 में अधिसूचित किया गया था. जम्मू-कश्मीर के लोगों ने ऐतिहासिक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार लाने के भारत सरकार के प्रयासों का पूरे दिल से समर्थन किया है, जिसमें नागरिकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया.’

इससे पहले, केंद्र सरकार ने सुरक्षा कारणों और आरटीआई अधिनियम- 2005 की धारा 8(एल)(ई) और 8(एल)(जी) के तहत गोपनीयता खंड का हवाला देते हुए एलजी की प्रशासनिक शक्तियों को बढ़ाने वाले सरकारी कामकाज नियमों में किए गए संशोधनों की फाइल नोटिंग और पत्राचार की एक प्रति द वायर को उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया था.

सरकार द्वारा विवरण साझा करने से इनकार करने से पारदर्शिता कार्यकर्ताओं में रोष फैल गया, जिन्होंने इस कदम को ‘भ्रमित करने वाला’ करार दिया था.

विधानसभा चुनाव से पहले, केंद्र सरकार ने एक कार्यकारी अधिसूचना के जरिए नए नियम बनाकर एलजी की शक्तियों का विस्तार किया था, जिससे केंद्र शासित प्रदेश में हंगामा मच गया था, जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सहित अन्य राजनीतिक संगठनों ने भाजपा पर जम्मू-कश्मीर की भावी निर्वाचित सरकारों को कमजोर करने का आरोप लगाया था.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अधिसूचित और गृह मंत्रालय द्वारा 12 जुलाई को जारी अधिसूचना में जारी किए गए नए नियमों ने ‘जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश (द्वितीय संशोधन) सरकारी कामकाज नियम, 2024’ में संशोधन किया था.

पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद अपनी तरह की यह दूसरी अधिसूचना जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 (2019 का 34) की धारा 55 के तहत जारी की गई थी, जिसे धारा 73 के तहत 31 अक्टूबर 2019 की घोषणा के साथ पढ़ा गया.

जम्मू-कश्मीर के गृह सचिव की नियुक्ति के लिए भी केंद्र की मंजूरी जरूरी

24 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रपति मुर्मू ने जम्मू-कश्मीर के व्यापार संचालन-2019 के नियम 50 में ‘जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश सरकार के व्यापार संचालन (संशोधन) नियम, 2024’ के माध्यम से संशोधन किया है.

नियम 50 के उपनियम 2 के खंड बी में उपराज्यपाल से जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के मामले में गृह मंत्रालय से ‘पूर्व परामर्श’ लेने को कहा गया था, जिसे संशोधित कर जम्मू-कश्मीर के गृह सचिव की नियुक्ति में भी केंद्र की मंजूरी की आवश्यकता बताई गई.

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर पर अपनी पकड़ मजबूत करती दिख रही है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर के अंत से पहले केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि भाजपा के सत्ता में आने की संभावना बहुत कम है.

2018 में जम्मू-कश्मीर की सत्ता संभालने के बाद, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक और चुनावी सीमाओं को इस उम्मीद के साथ तैयार किया है कि एक दशक में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव के बहुप्रतीक्षित नतीजों के घोषित होने के बाद वह सत्ता में वापस आ जाएगी.

विश्लेषकों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक आरक्षण की व्यवस्था को अपने चुनावी गणित के पक्ष में बदलने के अलावा, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एलजी को विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने का भी अधिकार भी दिया है, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय में बैठे राजनेता द्वारा मंजूरी दिए जाने की संभावना है.

हालांकि, जम्मू में कांग्रेस द्वारा भाजपा को कड़ी चुनावी टक्कर दिए जाने तथा कश्मीर में पार्टी के सहयोगियों द्वारा नेशनल कॉन्फ्रेंस की चुनौती का सामना किए जाने के कारण सभी की निगाहें 8 अक्टूबर पर टिकी हैं, जब चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे.