नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (4 अक्टूबर) को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की स्थायी समिति के छठवें सदस्य के लिए पिछले हफ्ते हुए चुनाव पर सवाल खड़े किए हैं. कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को फटकार लगाते हुए उनके बार-बार हस्तक्षेप को लेकर चिंता जाहिर की.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक,अदालत ने कहा कि इस चुनाव प्रक्रिया में दिल्ली की महापौर शैली ओबेरॉय को नजरअंदाज कर अगर उपराज्यपाल ऐसे ही एमसीडी अधिनियम के तहत कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल करेंगे तो इससे लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा.
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कानून के स्पष्ट उल्लंघन को लेकर उपराज्यपाल द्वारा चुनाव का आदेश देने के पीछे के आधार पर भी सवाल उठाया.
पीठ ने पूछा, ‘ऐसी क्या जल्दी थी कि आप चुनाव दो दिन के भीतर ही चाहते थे? अगर आप इसी तरह हस्तक्षेप करते रहेंगे तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का क्या होगा? महापौर अध्यक्षता करने के लिए वहां मौजूद हैं. आपको (एलजी को) शक्ति कहां से मिलती है?’
मालूम हो कि इस चुनाव को महापौर शैली ओबेरॉय ने चुनौती दी है, जिस पर अदालत ने नोटिस जारी करते हुए मौखिक रूप से कहा है कि इस याचिका पर सुनवाई होने तक स्थायी समिति के अध्यक्ष के चुनाव को आगे न बढ़ाया जाए.
बता दें कि डीएमसी अधिनियम की धारा 487 एमसीडी के कामकाज के संबंध में प्रशासक (एलजी) की शक्तियों से संबंधित है. विशेष रूप से, यह प्रशासक को कुछ स्थितियों में निगम के प्रशासन में हस्तक्षेप करने का अधिकार देती है, जिसमें इसका विघटन या उन मामलों में कुछ कार्रवाई या निर्देश लागू करना शामिल है, जहां प्रशासन अधिनियम के तहत आवश्यक रूप से कार्य नहीं कर रहा है.
उल्लेखनीय है कि यह विवादास्पद चुनाव 27 सितंबर को हुआ था. इसमें भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की थी. वहीं, आम आदमी पार्टी ने यह आरोप लगाते हुए चुनाव का बहिष्कार किया था कि यह प्रक्रिया दिल्ली नगर निगम अधिनियम के बिल्कुल उलट है. महापौर की याचिका में यह भी कहा गया कि एक अहम मुद्दा यह है कि महापौर के बजाय आईएएस अधिकारी को चुनाव का पीठासीन अधिकारी बनाने का फैसला लिया गया.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा कि हालांकि शुरू में उनका भी मानना था कि अनुच्छेद 32 के तहत याचिका स्वीकार्य नहीं है, लेकिन कुछ गंभीर मुद्दे हैं जिन पर विचार किए जाने की आवश्यकता है.
जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, ‘हमारा शुरुआती विचार भी यही था कि अनुच्छेद 32 के तहत याचिका क्यों दायर की गई. मामले पर गौर करने के बाद हमें लगता है कि यह ऐसा मामला है, जहां हमें नोटिस जारी करना चाहिए, खास तौर पर धारा 487 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करने के तरीके को देखते हुए. हमें आपकी शक्तियों की वैधता पर गंभीर संदेह है.’
पीठ ने कहा कि महापौर के आचरण को लेकर भी उनके मन में कुछ शंकाएं हैं, लेकिन इससे एलजी के कार्यों की जांच करने की जरूरत खत्म नहीं होती.
जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, ‘यह 487 का इस्तेमाल करने का तरीका नहीं है. कुछ मुद्दे हैं… उदाहरण के लिए, इन दोनों मामलों को एक साथ जोड़ना उचित नहीं था, वे एक दूसरे से स्वतंत्र हैं. उन्हें स्वतंत्र याचिका दायर करनी चाहिए थी. कार्रवाई का कारण 25 अगस्त को उत्पन्न हुआ और आप इस समय तक प्रतीक्षा करते हैं. कुछ हद तक राजनीति के बावजूद हम समझ सकते हैं… जहां तक 487 के प्रयोग का सवाल है, यह गलत है.
ध्यान रहे कि नगरीय निकाय की 18 सदस्यीय स्थायी समिति, जो एमसीडी के वित्त मामलों को देखती है, दिसंबर 2022 के एमसीडी चुनावों के बाद से आप और भाजपा के बीच खींचातानी की एक बड़ा विषय रही है. इसमें 12 स्थायी समिति के सदस्य जोनल वार्ड निकायों के माध्यम से चुने जाते हैं, और 6 सीधे पार्षदों के सदन द्वारा चुने जाते हैं. इसकी एक सीट तब खाली हुई, जब एक भाजपा पार्षद ने पश्चिमी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने जाने पर इस्तीफा दे दिया था. इससे 9 सीट वाली भाजपा और 8 सीट वाली आप के बीच घमासान बढ़ गया.
अदालत में शैली ओबेरॉय का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि एलजी स्थायी समिति के अध्यक्ष के चुनाव को अधिसूचित करने में ‘इस तरह की जल्दबाजी’ न दिखाएं.
सिंघवी ने कहा, ‘अदालत कल से दशहरा अवकाश पर है और 14 अक्टूबर को फिर से खुलेगी. उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे हमें अवकाश के दौरान अदालत में जाने के लिए मजबूर होना पड़े.’
गौरतलब है कि 1 अक्टूबर को शैली ओबेरॉय ने एमसीडी की स्थायी समिति के छठे सदस्य के हालिया चुनाव को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, उनका तर्क था कि इस चुनाव को पूरा करने की प्रक्रिया ‘असंवैधानिक’ थी. ये निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों का घोर उल्लंघन था.
शैली ओबेरॉय ने दलील दी है कि डीएमसी अधिनियम की धारा 74 और 1958 विनियमों के विनियम 51 के अनुसार, निगम के प्रत्येक सदस्य को सदन की किसी भी बैठक से कम से कम 72 घंटे पहले उनके एजेंडे की एक सूची दी जानी चाहिए. ओबेरॉय का दावा है कि इस अनिवार्य आवश्यकता का पालन किए बिना जल्दबाजी में चुनाव कराया गया.
उन्होंने कहा कि अधिकांश पार्षदों को 27.09.2024 को सुबह 10:00 बजे तक बैठक की सूचना भी नहीं मिली. ऐसे में पार्षदों से इतने कम समय के नोटिस पर बैठक में हिस्सा लेने की उम्मीद करना न केवल उनके चुनावी अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी ख़राब करता है.
ज्ञात हो कि आम आदमी पार्टी ने पिछले हफ्ते इस चुनाव प्रक्रिया को ‘लोकतंत्र की हत्या’ बताया था और एलजी सक्सेना पर आईएएस अधिकारी की नियुक्ति के फैसले को प्रभावित करने का आरोप लगाया था.
इस संबध में 1 अक्टूबर को भाजपा ने कहा था कि आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने 18वें सदस्य के चुनाव को अदालत में ले जाकर और इसे विवादास्पद बना कर ये सुनिश्चित कर दिया है कि एमसीडी निष्क्रिय बनी रहे.
इस बीच, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी ने तटस्थ रहने का फैसला किया है और वह किसी भी खरीद-फरोख्त का हिस्सा नहीं बनेगी.