नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (4 अक्टूबर) को केंद्र सरकार और राज्यों को ई-श्रम पोर्टल के तहत पात्र प्रवासी श्रमिकों और विशिष्ट निपुणता न रखने वाले (निर्माण, सफाई आदि कामों में लगे) श्रमिकों को राशन कार्ड सत्यापित करने और देने के अपने आदेशों का पालन करने का एक आखिरी मौका देते हुए कहा कि भूखे लोग इंतजार नहीं कर सकते.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत खाद्य वितरण की राज्यों की ऊपरी सीमा पर ध्यान दिए बिना पहले से सत्यापित लोगों को भी 19 नवंबर तक कार्ड जारी करने के लिए कहा.
आदेश की रूपरेखा
ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत ने 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के सामने आने वाली समस्याओं के संबंध में स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्यवाही की थी और आदेश दिया था कि सरकारें प्रवासी श्रमिकों को राशन दें. बाद में अदालत ने इसका दायरा बढ़ाते हुए उन प्रवासी और असंगठित मजदूरों को राशन कार्ड देना भी शामिल कर दिया, जो केंद्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल के तहत पंजीकृत हैं, लेकिन उनके पास राशन कार्ड नहीं हैं और जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत नहीं आते हैं, उनका भी इसमें प्रावधान किया गया है.
अदालत ने कहा था कि भोजन का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है. संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है, तथा इनके मनमाने ढंग से हनन के विरुद्ध कुछ सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करता है.
न्यूज़क्लिक की एक रिपोर्ट के अनुसार, ई-श्रम पोर्टल पर (इस साल जुलाई तक) 28.6 करोड़ प्रवासी और असंगठित श्रमिक पंजीकृत हैं. इसमें से 20.63 करोड़ प्रवासी और श्रमिक राशन कार्ड डेटा पर पंजीकृत हैं. बाकी लोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न की उपलब्धता सहित अन्य योजनाओं से वंचित हैं, क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं हैं.
वर्ष 2020 से शीर्ष अदालत ने इन वर्गों को राशन कार्ड जारी करने के संबंध में कई आदेश पारित किए हैं और अपने आदेशों का पालन करने में विफल रहने पर केंद्र और राज्य सरकारों को कई बार फटकार भी लगाई है.
इस वर्ष 19 मार्च को भी शीर्ष अदालत ने सरकारों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम डेटाबेस से गायब आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के भीतर राशन कार्ड उपलब्ध कराने का आदेश दिया था.
इस वर्ष जुलाई में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे ‘अत्याचारी’ कहा था कि सरकारों ने अभी तक अदालत के आदेशों को लागू नहीं किया है और इस संबंध में अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी दी थी.
2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को केंद्र सरकार की ओर से एक व्यापक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया कि क्या अदालत द्वारा पारित निर्देशों का अनुपालन किया गया है.
‘हमारा धैर्य खत्म हो गया है’
शुक्रवार को हस्तक्षेपकर्ता अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने न्यायालय को बताया कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 9 का हवाला देते हुए न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं कर रही है, जिसमें ऊपरी सीमा निर्धारित की गई है. अधिनियम के अनुसार, शहरी आबादी के 50% और ग्रामीण आबादी के 75% लोगों को राशन कार्ड दिए जाने चाहिए.
भूषण ने कहा कि केंद्र सरकार उन राज्यों को अतिरिक्त राशन देने से इनकार कर रही है, जिन्होंने राशन कार्ड देने के लिए अधिक संख्या में लोगों का सत्यापन किया है, इस आधार पर कि उनका खाद्य कोटा ऊपरी सीमा तक पहुंच गया है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे अभी भी अधिनियम के तहत निर्धारित सीमा से ज़्यादा राशन देने पर रोक नहीं लगेगी. कोर्ट ने जोड़ा कि इस आदेश का पालन न करने पर उसे खाद्य सचिव या राज्यों से संबंधित प्राधिकरण को बुलाकर गैर-अनुपालन का कारण बताना होगा.
अदालत ने राज्यों को यह भी निर्देश दिया कि वे इस बारे में हलफनामा दाखिल करें कि क्या उन्होंने पात्र व्यक्तियों की पहचान कर ली है, लेकिन उन्हें अभी तक राशन कार्ड नहीं दिए गए हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, 4 अक्टूबर को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अवमानना नोटिस जारी करने से खुद को रोक रहा है और केंद्र और राज्य सरकारों को 19 नवंबर तक अपने पिछले आदेशों को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए.
पीटीआई ने पीठ के हवाले से कहा, ‘हमने अपना धैर्य खो दिया है, हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि अब और रियायत नहीं दी जाएगी… हम आपको हमारे आदेश का पालन करने के लिए एक आखिरी मौका दे रहे हैं अन्यथा आपके सचिव मौजूद रहेंगे.’