एल्गार परिषद: 31 माह में हाईकोर्ट की तीन पीठ स्टेन स्वामी से जुड़ी अपील की सुनवाई से अलग हुईं

बीते महीने एल्गार परिषद मामले के आरोपियों की सूची से फादर स्टेन स्वामी का नाम हटाए जाने की अपील वाली याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के सामने आई थी, जब जस्टिस मोहित-डेरे ने सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे ने फादर स्टेन स्वामी के निकटतम संबंधी द्वारा दिसंबर 2021 में दायर उस याचिका पर सुनवाई से पिछले महीने खुद को अलग कर लिया था, जिसमें भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले से मृतक (स्वामी) का नाम हटाने की मांग की गई है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई के जेवियर्स कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल फादर फ्रेजर मस्करेनहास द्वारा दायर याचिका हाल ही में जस्टिस  रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी. हालांकि, 20 सितंबर के आदेश में जस्टिस मोहित-डेरे ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.

विशेष रूप से, फादर मस्कारेनहास द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि स्वामी के खिलाफ विशेष अदालत द्वारा मार्च 2021 में जमानत देने से इनकार करते हुए की गई टिप्पणियों ने आदिवासियों के बीच और मानवाधिकारों के क्षेत्र में उनकी प्रतिष्ठा और कार्य पर ‘धब्बा’ लगाया है. याचिका में मांग की गई है कि ये निष्कर्ष संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रतिष्ठा के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं. तदनुसार, उक्त आदेश को रद्द किया जाना चाहिए.

भीमा-कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 84 साल के स्टेन स्वामी का 5 जुलाई 2021 को मेडिकल आधार पर जमानत का इंतजार करते हुए मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था.

मामले में एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले स्टेन स्वामी सबसे वरिष्ठ और मामले में गिरफ्तार 16 लोगों में से एक थे. स्टेन स्वामी अक्टूबर 2020 से जेल में बंद थे. वह पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें गिलास से पानी पीने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद स्टेन स्वामी को चिकित्सा आधार पर कई बार अनुरोध के बाद भी जमानत नहीं दी गई थी.

एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित संगोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई और इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध माओवादियों से था.

वे अक्टूबर 2020 को आतंकवाद विरोधी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामले में गिरफ्तार होने वाले 16वें और सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे.

यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि 15 फरवरी, 2022 से 20 सितंबर, 2024 तक फादर मस्कारेनहास द्वारा दायर की गई इस याचिका को चार अलग-अलग खंडपीठों के समक्ष पांच बार सूचीबद्ध किया गया था. इनमें से तीन पीठों ने याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है.

हाईकोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, यह मामला सबसे पहले 15 फरवरी 2022 को जस्टिस प्रसन्ना वराले और सुरेंद्र तावड़े की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था. हालांकि, जस्टिस वराले, जो अब सुप्रीम कोर्ट के जज हैं, ने तब याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.

15 फरवरी 2022 के आदेश में कहा गया, ‘यह याचिका उस पीठ के समक्ष नहीं रखी जाएगी जिसके सदस्य जस्टिस प्रसन्ना वराले हैं.’

इसके बाद, यह मामला 8 मार्च 2022 और 6 अप्रैल 2022 को जस्टिस सुनील शुक्रे और जस्टिस गोविंद सनप की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया. सुनवाई के पहले दिन पीठ ने एनआईए और राज्य को नोटिस जारी किया और उनसे याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा.अगली तारीख यानी 6 अप्रैल 2022 को सुनवाई 21 अप्रैल 2022 तक के लिए स्थगित कर दी गई.

हालांकि, इसके बाद यह मामला 19 अप्रैल 2022 को जस्टिस साधना जाधव और मिलिंद जाधव के समक्ष सूचीबद्ध किया गया. जब मामले पर सुनवाई का वक्त आया तो जस्टिस साधना जाधव ने याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.

आदेश में कहा गया, एल्गार परिषद मामले से संबंधित सभी मामले जस्टिस साधना जाधव की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष नहीं रखे जाएंगे.’

दिलचस्प बात यह है कि 29 महीने के अंतराल के बाद बीते दिनों यह मामला 20 सितंबर 2024 को जस्टिस मोहिते-डेरे के बोर्ड में सूचीबद्ध किया गया, जिन्होंने भी याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया और मामले को अपने बोर्ड से हटाने का आदेश दिया.

इस बीच, फादर मस्करेनहास की याचिका के जवाब में एनआईए ने अपने हलफनामे में तर्क दिया है कि स्वामी के खिलाफ मुकदमा समाप्त हो गया है, लेकिन आरोप वैसे ही बने हुए हैं.

एनआईए द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है, ‘यह कहना कि स्टेन स्वामी पर लगे आरोप उनकी कब्र तक पहुंच गए हैं, बहुत ही निंदनीय है. विनम्रतापूर्वक यह कहा जाता है कि याचिकाकर्ता को इस तरह का बयान देते समय बहुत ही जिम्मेदाराना होना चाहिए. याचिकाकर्ता जमीनी हकीकत को जाने बिना स्टेन स्वामी के बारे में जो कुछ भी जानता है या जो वह देखना चाहता है, उसके अनुसार बयान दे रहा है.’

हलफनामे आगे में कहा गया है कि स्टेन स्वामी को कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद गिरफ्तार किया गया था और उनके खिलाफ गैरकानूनी सीपीआई (माओवादी) गतिविधियों को आगे बढ़ाने में उनकी संलिप्तता को स्थापित करने वाले पर्याप्त सबूत थे.