रेलवे भर्ती पर सरकार ने पिछला निर्णय बदला, इंजीनियरिंग और सिविल सेवा परीक्षा से होंगी भर्तियां

2019 में केंद्र सरकार ने रेलवे में भर्ती के लिए भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा को मंज़ूरी दी थी, पर इससे पर्याप्त तकनीकी कर्मचारी न मिलने के चलते यूपीएससी द्वारा करवाई जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा और इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा वापस गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने शनिवार को रेलवे अधिकारियों की भर्ती के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) और इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा (ईएसई) की प्रक्रिया को फिर से अमल में लाने का फैसला किया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (आईआरएमएस) के माध्यम से पर्याप्त नए तकनीकी कर्मचारी नहीं मिल पा रहे थे. ज्ञात हो कि आईआरएमएस एक एकीकृत रेलवे सेवा है जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर 2019 में मंजूरी दी थी. इससे पहले यूपीएससी सीएसई और ईएसई के माध्यम से रेलवे अधिकारियों के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित करता था.

शनिवार को कार्मिक विभाग (डीओपीटी) ने एक कार्यालय ज्ञापन में कहा कि रेल मंत्रालय के प्रस्ताव पर विचार करते हुए उसने मंत्रालय में तकनीकी और गैर-तकनीकी दोनों प्रकार के कर्मचारियों की विशिष्ट आवश्यकता पर विचार करते हुए यूपीएससी-सीएसई और यूपीएससी-ईएसई के माध्यम से भर्ती के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है.

डीओपीटी के पत्र के कुछ ही घंटों बाद रेल मंत्रालय ने शनिवार को यूपीएससी और दूरसंचार विभाग को पत्र लिखकर कहा कि अब यह निर्णय लिया गया है कि आईआरएमएस की भर्ती सीएसई और ईएसई के माध्यम से की जाएगी.

इसमें कहा गया है कि ईएसई के लिए नोडल मंत्रालय होने के नाते दूरसंचार ने नियमों को अधिसूचित किया है और 8 अक्टूबर तक आवेदन मांगे हैं. इसने दूरसंचार मंत्रालय और यूपीएससी से मौजूदा अधिसूचना में 225 इंजीनियरों की भर्ती में भागीदारी की अनुमति देने का अनुरोध किया.

इसमें आवेदन जमा करने की समयसीमा बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि उम्मीदवारों को आवेदन करने का पर्याप्त अवसर मिल सके. पत्र के अनुसार, नई भर्तियों को आईआरएमएस (सिविल), आईआरएमएस (मैकेनिकल), आईआरएमएस (इलेक्ट्रिकल), आईआरएमएस (एस एंड टी) और आईआरएमएस (स्टोर) कहा जाएगा.

रेलवे अधिकारियों ने कहा कि एक तरह से यह फैसला पुरानी व्यवस्था को वापस लाने के अलावा और कुछ नहीं है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘रेलवे में आईआरएमएस कर्मचारियों की जरूरत को देखते हुए काम नहीं कर रहा है. क्या इतिहास की पृष्ठभूमि वाले किसी छात्र को ट्रैक बिछाने का काम सौंपा जा सकता है? सरकार ने इसे समझ लिया है. यह एक सकारात्मक कदम है और रेलवे के लिए अच्छा है.’

दिलचस्प बात यह है कि नई भर्ती प्रणाली को ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी देते हुए डीओपीटी ने कहा, ‘भर्ती की प्रस्तावित योजना किसी भी तरह से कैबिनेट के 24 दिसंबर, 2019 के फैसलों (आईआरएमएस में सेवाओं का विलय) का उल्लंघन नहीं करेगी.’

आईआरएमएस में खामियों को चिह्नित करने वाले रेलवे अधिकारियों ने कहा कि हालांकि एक तरह से एकीकृत सेवा अब निरर्थक हो जाएगी, लेकिन यह शर्त लगाकर सरकार ने इस शर्मिंदगी से बचने की कोशिश की है कि कैसे पिछले फैसले से वांछित परिणाम नहीं मिले.

अखबार के अनुसार, यूपीएससी-सीएसई के जरिये अकाउंट्स, कार्मिक और ट्रैफिक सेवाओं के लिए अधिकारियों की भर्ती की जाएगी, जबकि यूपीएससी-ईएसई चार इंजीनियरिंग सेवाओं- सिविल, मैकेनिकल, सिग्नल, इलेक्ट्रिकल और स्टोर्स के लिए कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा होगी.

उल्लेखनीय है कि अभी तक आईआरएमएस व्यवस्था के तहत भर्ती किया गया कोई भी नया अधिकारी काम पर नहीं आया है, क्योंकि पहला बैच अभी भी प्रशिक्षण ले रहा है और रेलवे भी पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं करा रहा है.

सूत्रों ने बताया कि भारतीय रेलवे ने 2022 में आईआरएमएस के तहत यूपीएससी के पास 150 कर्मियों की भर्ती के लिए एक मांगपत्र भेजा था. लेकिन केवल 130 उम्मीदवारों का चयन किया गया. उनमें से लगभग 40 ने मसूरी में एलबीएसएनएए में प्रशिक्षण के लिए रिपोर्ट किया, जबकि शेष ने असाधारण अवकाश (ईओएल) का विकल्प चुना. एलबीएसएनएए में रिपोर्ट करने वाले लोग लखनऊ में एक रेलवे संस्थान में प्रशिक्षण के अंतिम चरण से गुजर रहे हैं.

हालांकि अधिकारियों का दावा है कि सफल उम्मीदवारों का ओईएल लेना सामान्य बात है क्योंकि वे अधिक परीक्षाओं की तैयारी करते हैं और उन्हें वेतन नहीं मिलता, लेकिन 2023 में भर्ती के दूसरे दौर में पर्याप्त उम्मीदवार नहीं मिले.

सूत्रों ने बताया कि रेलवे ने आईआरएमएस के तहत अन्य 150 कर्मियों के लिए मांगपत्र रखा था, लेकिन मुश्किल से 84 का चयन हुआ है.

नियुक्ति में देरी और ठंडे रवैये के कारण विभिन्न जोनों में कर्मचारियों की कमी हो गई है, जिसके कारण रेलवे ने दिसंबर 2026 तक आवश्यकता के आधार पर सेवानिवृत्त जूनियर रेलवे अधिकारियों को सलाहकार के रूप में पुनः नियुक्त करने की अनुमति दे दी है.

रेलवे बोर्ड ने हाल ही में लिखे पत्र में कहा है कि सेवानिवृत्त रेलवे अधिकारियों को सलाहकार के रूप में पुनः नियुक्त करने का उद्देश्य रिक्त पदों के कारण क्षेत्रीय रेलवे के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान करना तथा परिचालन एवं सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करना है.

कांग्रेस ने रेलवे सेवाओं के विभाजन को मंजूरी देने पर सरकार की आलोचना की

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस ने रविवार को केंद्र सरकार की आलोचना की, क्योंकि उसने कथित तौर पर आठ रेलवे सेवाओं के विलय को वापस लेकर एक नई सेवा बनाने का फैसला किया है. कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘पहले घोषणा करो, फिर सोचो’ की मानसिकता देश की संस्थाओं के लिए खतरा बनी हुई है.

इस कथित कदम पर सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.

कांग्रेस महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें दावा किया गया है कि आठ सेवाओं को एक ही सिविल सेवा में विलय करने के लगभग पांच साल बाद रेल मंत्रालय ने अब फैसला किया है कि भर्ती दो अलग-अलग परीक्षाओं के माध्यम से की जाएगी – गैर-तकनीकी पदों के लिए सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) और तकनीकी पदों के लिए इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा (ईएसई).

एक्स पर एक पोस्ट में रमेश ने कहा, ‘यह रेलवे सुधार का मामला नहीं है, बल्कि वास्तव में रेलवे विकृति का मामला है.’

उन्होंने कहा, ‘पांच साल पहले नॉन-बायोलॉजिकल पीएम की सरकार ने आठ रेलवे सेवाओं को भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (आईआरएमएस) में विलय कर दिया था और इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा के माध्यम से भर्ती बंद कर दी थी.’

उन्होंने आगे कहा कि 5 अक्टूबर 2024 को सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया और अब दो अलग-अलग परीक्षाओं के माध्यम से भर्ती जारी रहेगी, एक सिविल सेवा के लिए और एक इंजीनियरिंग सेवाओं के लिए.

रमेश ने कहा, ‘ऐसा होने से यह चिंता से उभरती है कि आने वाले बहुत से अधिकारियों में आवश्यक तकनीकी और इंजीनियरिंग कौशल की कमी थी.’

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘ नॉन-बायोलॉजिकल पीएम की यह फास्ट मानसिकता- पहले घोषणा, फिर सोचना – हमारे संस्थानों के लिए विशेष रूप से खतरा पैदा करती है.’

रमेश ने कहा कि रेलवे मूल रूप से एक इंजीनियरिंग प्रणाली है और सभी भर्तियों को मानकीकृत करने की जल्दबाजी में इस तथ्य को जानबूझकर भूलने का प्रयास मूर्खतापूर्ण था.