जम्मू-कश्मीर: नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत, भाजपा 29 पर सिमटी

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जिसके खाते में 42 सीटें गई हैं. वहीं, भारतीय जनता पार्टी 29 सीटों पर सिमट गई है. कांग्रेस ने 6 और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 7 सीटें जीती हैं.

कश्मीर के अनंतनाग में अपनी पहली रैली में नेशनल कॉन्फ्रेंस नेताओं के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी. (फोटो साभार: फेसबुक/@/INCJammuKashmir)

नई दिल्ली: लगभग एक दशक बाद जम्मूकश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव के अंतिम परिणाम सामने आ गए हैं.  90 सदस्यीय विधानसभा में 42 सीटें जीतकर नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जबकि उसकी गठबंधन सहयोगी कांग्रेस के खाते में 6 सीटें गई हैं. इस तरह नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन 48 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने की स्थिति में आ गया है.

हालांकि, चुनाव परिणाम इस केंद्र शासित प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े क्षेत्रीय दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के लिए घोर निराशा लेकर आए हैं. दशक भर पहले हुए अविभाजित जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में पीडीपी 28 सीट के साथ सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी, लेकिन इस बार वह महज तीन सीटों पर सिमट गई. यहां तक कि पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती तक पार्टी की पारंपरिक सीट श्रीगुफावाड़ा-बिजबेहरा से हार गई हैं.

चुनाव के दौरान कयास लगाया जा रहा था कि जमात-ए-इस्लामी का चुनावी मैदान का प्रवेश और तमाम निर्दलीय प्रत्याशियों की उपस्थिति कश्मीर घाटी की राजनीति को गहराई से प्रभावित कर सकती है. लेकिन, अंतिम चुनाव परिणामों में केवल 7 निर्दलीय प्रत्याशी जीतने में सफल रहे, जिनमें जमात का प्रभाव नहीं दिखाई देता है. यहां तक कि जमात समर्थित सबसे चर्चित उम्मीदवार सयर अहमद रेशी तक कुलगाम सीट से चुनाव हार गए हैं.

पूर्व कांग्रेसी और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई है, जबकि महज सात सीटों पर उम्मीदवार खड़ी करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के खाते में एक सीट गई है और वह जम्मू-कश्मीर में अपना खाता खोलने में सफल हो गई है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला अपनी दोनों सीटें गांदेरबल और बडगाम जीतने में सफल रहे हैं.

सज्जाद लोन की पार्टी पीपुल्स कॉन्फ्रेंस भी 15 सीट पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन केवल एक सीट पर जीत मिली. स्वयं सज्जाद लोन हंदवाड़ा से जीतने में सफल रहे. हालांकि, लोन दो सीटों से चुनाव लड़े थे. दूसरी सीट कुपवाड़ा की थी, जहां उन्हें केवल 7,457 वोट मिले और तीसरे पायदान पर रहे. हंदवाड़ा में भी उनकी जीत का अंतर महज 662 वोट रहा. बहरहाल, कुपवाड़ा सीट पीडीपी की झोली में गई है. पीडीपी ने पहली बार कुपवाड़ा से जीत दर्ज की है.

एक सीट सीपीआईएम ने भी जीती है. इसने कुलगाम से जीत दर्ज की है, जहां पार्टी प्रत्याशी मोहम्मद युसुफ तारिगामी ने निर्दलीय उम्मीदवार सयर अहमद रेशी को हराया. रेशी को 37 साल बाद चुनावी राजनीत में वापसी करने वाले जमात-ए-इस्लामी का समर्थन प्राप्त था.एक सीट सीपीआईएम ने भी जीती है. इसने कुलगाम से जीत दर्ज की है, जहां पार्टी प्रत्याशी मोहम्मद युसुफ तारिगामी ने निर्दलीय उम्मीदवार सयर अहमद रेशी को हराया. रेशी को 37 साल बाद चुनावी राजनीति में वापसी करने वाले जमात-ए-इस्लामी का समर्थन प्राप्त था.

मत प्रतिशत के लिहाज से देखें तो भाजपा को कुल मतों का 25.64 फीसदी प्राप्त हुआ है, वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस को 23.43 फीसदी मत प्राप्त हुए हैं. कांग्रेस को 11.97 प्रतिशत मत मिले हैं. सबसे अधिक नुकसान पीडीपी को उठाना पड़ा है. पिछले विधानसभा चुनाव में 22.67 प्रतिशत मत पाने वाली पीडीपी को इस बार महज 8.87 प्रतिशत मत मिले हैं. लिहाजा पीडीपी की सीट संख्या 28 से गिरकर महज 3 रह गई है.

गौरतलब है कि परिणाम आने के तुरंत बाद उपराज्यपाल अपनी तरफ से पांच विधायक मनोनीत करेंगे. इन पांच में से दो कश्मीरी पंडित, दो महिला और एक पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से विस्थापितों का प्रतिनिधि होगा. मनोनीत विधायकों के पास वे सभी विधायी शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे, जो चुने हुए विधायकों के पास होती हैं. इस तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 95 हो जाएगी.

ऐसे में जम्मू-कश्मीर के नेताओं में इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि बहुमत का आंकड़ा कुल 90 विधानसभा सीटों के हिसाब से 46 है या 95 विधायकों के हिसाब से 48.

तीन चरण में हुए थे मतदान

जम्मू-संभाग की 43 और कश्मीर संभाग की 47 सीटों पर तीन चरण (18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर) में मतदान हुए थे. तीनों चरण का कुल मतदान प्रतिशत 63.45% रहा. 

जम्मूकश्मीर में क़रीब एक दशक के लंबे इंतजार के बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं. इससे पहले साल 2014 में जब चुनाव हुए थे, तब जम्मूकश्मीर में 87 विधानसभा सीटें हुआ करती थीं. 2014 में भाजपा और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई थी.

केंद्र सरकार के अगस्त 2019 के फैसले ने जम्मूकश्मीर की तस्वीर बदल दी. तब मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाकर न सिर्फ जम्मूकश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया, बल्कि राज्य को लद्दाख और जम्मूकश्मीर में बांटकर अपने अधीन ले लिया यानी केंद्र शासित प्रदेश बना दिया.