नई दिल्लीः जुलाना से कांग्रेस प्रत्याशी और ओलंपियन पहलवान विनेश फोगाट राठी 6,015 मतों से जीत गईं हैं. स्टार पहलवान ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के योगेश कुमार को चुनावी दंगल में पटखनी दी है.
जुलाना विधानसभा क्षेत्र में भाजपा बनाम कांग्रेस का मुकाबला था, अन्य कोई उम्मीदवार करीब नहीं आ पाया. विनेश को 65,080 मत हासिल हुए, वहीं भाजपा प्रत्याशी को 59,065 मत प्राप्त हुए. जुलाना के मौजूदा विधायक जननायक जनता पार्टी (जजपा) के अमरजीत ढांडा को मात्र 2,477 वोट प्राप्त हुए. भाजपा के बागी और इंडियन नेशनल लोक दल के प्रत्याशी सुरेंद्र लाठर 10,158 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
कांग्रेस के लिए हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम अत्यंत निराशाजनक और आश्चर्यजनक साबित हुए. तमाम एग्जिट पोल और राजनीतिक विश्लेषक हरियाणा में कांग्रेस की बड़ी जीत के दावे कर रहे थे. चुनाव परिणाम इन दावों के ठीक विपरीत रहे.
हालांकि विनेश के लिए किए जाने वाले दावे बिलकुल सटीक साबित हुए और उन्हें जनता ने विधानसभा में बैठने का मौका दिया. तकरीबन दो महीने पहले विनेश ओलंपिक फाइनल में 100 ग्राम वजन के कारण अयोग्य घोषित कर दी गई थीं. उसके ठीक एक महीने बाद, छह सितंबर को वह कांग्रेस में शामिल हुईं, और उसी दिन उन्हें जुलाना विधानसभा क्षेत्र का टिकट दे दिया गया. रोचक पहलु यह है कि इस क्षेत्र में विनेश के ससुराल का गांव- खेड़ा बख्ता पड़ता है.
पिछले साल दिल्ली के जंतर-मंतर पर भारतीय कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर किए गए धरने के दौरान पुलिस की क्रूरता की शिकार बनी और फिर कड़े संघर्ष के बाद पेरिस ओलंपिक से निराश लौटीं विनेश की यह जीत उनकी जिजीविषा का उद्घोष है.
विनेश की यह जीत हर उस महिला की जीत है जो तमाम विफलताओं और कठिनाइयों के बावजूद लड़ना नहीं छोड़ती. यौन शोषण जैसे संगीन अपराध के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें सड़कों पर घसीटा गया. विनेश सत्ता पक्ष और उनके समर्थकों द्वारा लगाए लांछन को सहती रहीं. इस कठिन परीक्षा के बाद वह पेरिस ओलंपिक में लड़ने पहुंची, जहां वह देश के लिए पदक लाने के साथ खुद के सम्मान के लिए लड़ रहीं थीं. लेकिन फाइनल में धमाकेदार प्रवेश के बावजूद वह पदक से वंचित रह गईं. इस ‘विफलता’ के बाद उन्होंने खेल को अलविदा कह दिया, लेकिन लड़ना उन्होंने फिर भी नहीं छोड़ा. अबकी बार वह चुनाव के मैदान में उतरीं, और यहां उन्हें जीत हासिल हुई.
यह कहा जा रहा था कि चुनाव लड़ने का फैसला विनेश की छवि के लिए ठीक नहीं है. बृजभूषण के खिलाफ आंदोलन करने को लेकर विनेश की मंशा पर सवाल उठाए गए. आरोप लगाए गए कि चूंकि विनेश को राजनीति में आना था, कांग्रेस का साथ लेना था, इसलिए वह धरने पर बैठी थीं. विनेश इन आरोपों से इनकार करती रहीं.
द वायर हिंदी से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था कि जंतर मंतर पर उनके धरना प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस पार्टी ने उनका साथ दिया था, इसलिए उन्होंने इस पार्टी का दामन थामा.
राजनीति में शामिल होने को लेकर जुलाना में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए विनेश ने कहा था, ‘मैंने सड़क पर लड़कर देख लिया, ओलंपिक में लड़कर देख लिया, कहीं से भी न्याय नहीं मिलता. न्याय तभी मिलेगा जब आप और हम चुनाव जीतकर संसद/विधानसभा में पहुंचेंगे, वहां पहुंचकर अपने लोगों के लिए काम करेंगे.’
लेकिन यह भी कहना चाहिए कि चुनावी मैदान में जीत उनकी लड़ाई का अंत नहीं है. यह दरसअल शुरुआत है. जिन आकांक्षाओं को लेकर उन्हें बतौर खिलाड़ी अपना करिअर शिखर पर छोड़कर राजनीति का रुख करना पड़ा, उन सपनों को पूरा करने का रास्ता अब आरंभ होता है.