नई दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीज़े सामने आ चुके हैं. राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 48 सीटों पर जीत दर्ज कर अगली सरकार बनाने का रास्ता सुनिश्चित कर लिया है. राज्य के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी पार्टी ने लगातार तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है.
पार्टियों की हार-जीत से इतर हरियाणा में एक जरूरी मुद्दा महिलाओं की राजनीति में भागीदारी का भी है. इस बार कुल 13 महिलाएं विधायक चुनी गई हैं, जो कुल सीटों का करीब साढ़े 14 प्रतिशत है.
बीते विधानसभा चुनाव 2019 में कुल 9 महिलाओं ने जीत हासिल की थी. इस लिहाज से राज्य विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज़ 10 फ़ीसदी था. इससे पहले विधानसभा चुनावों के इतिहास में 2014 में सबसे ज़्यादा 13 महिलाएं विधायक बनी थीं.
साल 2009 में महिला प्रत्याशियों की जीत का आंकड़ा 9 था, जबकि 2005 में 11 महिलाएं विधानसभा पहुंची थीं. वहीं, 2000 के चुनाव में जीत दर्ज करने वाली महिलाओं की संख्या मात्र चार थी. 90 के दशक की बात करें, तो 1991 और 1996 में हुए चुनावों में ये आंकड़ा 6 और 4 क्रमश: था. इसके पहले के चुनावों में महिलाओं की स्थिति कमोबेश यही थी. आंकड़ा चार से सात के बीच ही घूमता रहा था.
इस बार विधानसभा चुनाव में कुल 51 महिलाएं चुनावी रण में उतरी थीं, जिसमें कांग्रेस ने सबसे अधिक 12 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया था. दूसरे नंबर पर भाजपा थी, जिसने 10 महिलाओं को टिकट दिया था. वहीं आम आदमी पार्टी ने 11, जननायक जनता पार्टी (जजपा) और आजाद समाज पार्टी (एएसपी) गठबंधन ने 8 महिलाओं को टिकट दिया था.
इससे पहले 2019 में 108 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था. 2014 में ये संख्या 116 थी, जबकि 2009 में 69 महिलाएं विभिन्न दलों की ओर से प्रत्याशी बनाई गई थीं. 2005 और 2000 में क्रमश: 60 और 69 ये संख्या रही.
बहरहाल, इस बार चुनाव जीतने वाली महिलाओं में ज्यादातर ऐसी उम्मीदवार हैं, जिनका राजनीतिक परिवारों से गहरा नाता रहा है या जो खुद राजनीति में लंबे समय से हैं. बावजूद इसके इस बार जिस जीत की सबसे ज्यादा चर्चा रही, वह महिला पहलवान विनेश फोगाट हैं.
कुल 90 सीटों में से 13 पर महिला उम्मीदवारों की जीत
विनेश ने खेल के मैदान से आंदोलन और फिर राजनीति का रुख किया. विनेश जुलाना सीट से करीब छह हजार वोटों से विजयी रहीं. वे भले ही कांग्रेस की प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीती हों लेकिन उनकी जीत को महिलाओं के संघर्ष की जीत भी बताया जा रहा है, क्योंकि बीते दो सालों से विनेश को सड़क से लेकर कुश्ती के मैट तक लगातार संघर्ष करते ही देखा गया है.
विनेश की तरह ही आरती राव का भी ये पहला चुनाव था. भाजपा ने उन्होंने अटेली सीट से टिकट दिया था, जिस पर उन्होंने जीत दर्ज की है. आरती पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंद्र सिंह की पोती और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी हैं. आरती शूटिंग चैंपियन भी हैं. वो 2001 और 2012 में शूटिंग वर्ल्ड कप फाइनल प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी हैं. उन्होंने 4 एशियन चैंपियनशिप मेडल भी जीते हैं. 2017 में शूटिंग से संन्यास लेने के बाद वह राजनीति में आ गईं.
कालका विधानसभा सीट पर भाजपा की शक्ति रानी शर्मा ने जीत हासिल की. वह अंबाला नगर निगम की मेयर और जन चेतना पार्टी के प्रमुख और हरियाणा के पूर्व मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी हैं. उनके छोटे बेटे कार्तिकेय राज्यसभा सांसद हैं, जबकि बड़े बेटे सिद्धार्थ वशिष्ठ, जिन्हें मनु शर्मा के नाम से भी जाना जाता है, जो जेसिका लाल हत्याकांड में दोषी ठहराए गए थे. बाद में जून 2020 में उन्हें रिहा किया गया था.
राई सीट से भी भाजपा को जीत मिली है. यहां कृष्णा गहलावत ने चुनाव जीता है, जिन्हें राजनीति का लंबा अनुभव है. वो पहले कांग्रेस में थीं और 1996 से 2000 तक बतौर कैबिनेट मंत्री अपनी सेवाएं दे चुकी हैं. 2014 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था. उन्हें भाजपा ने 2014 में यहीं से टिकट दिया था, लेकिन वो चुनाव हार गईं थीं.
तोशाम से श्रुति चौधरी ने भाजपा की टिकट पर चुनाव जीता है. वे पूर्व सीएम बंसीलाल की पोती और राज्यसभा सदस्य किरण चौधरी की बेटी हैं. श्रुति चौधरी पहले कांग्रेस में थी और भिवानी से लोकसभा सांसद भी रह चुकी हैं. लेकिन इस बार 2024 चुनाव से ठीक पहले वे भाजपा में शामिल हो गईं.
पटौदी सीट से बिमला चौधरी ने जीत दर्ज की है. बिमला राव इंद्रजीत की करीबी मानी जाती हैं. उन्होंने 2014 में अपना पहला चुनाव लड़ा था. तब भी उन्होंने पटौदी सीट से जीत हासिल की थी. हालांकि, 2019 में उन्हें पार्टी से टिकट नहीं मिल सका, लेकिन इस बार पार्टी ने उन पर फिर भरोसा जताया और उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया था.
अंबाला जिले की नारायणगढ़ सीट से कांग्रेस की शैली चौधरी ने जीत हासिल की. ये उनका दूसरा चुनाव था. उनके पति राम किशन भी नारायणगढ़ से दो बार विधायक रह चुके हैं.
कांग्रेस की पूजा चौधरी ने अंबाला ज़िले के अंतर्गत आने वाली मुलाना सीट से जीत हासिल की है. पूजा अंबाला सांसद वरुण चौधरी की पत्नी हैं और ये निर्वाचन क्षेत्र पारंपरिक रूप से उनके परिवार का गढ़ रहा है. वरुण चौधरी वरिष्ठ कांग्रेस नेता फूल चंद मुल्लाना के पुत्र हैं, जिन्होंने मुलाना का प्रतिनिधित्व चार बार किया और पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे. मुल्लाना ने कांग्रेस हरियाणा इकाई का नेतृत्व भी किया था.
साढौरा सीट से कांग्रेस की रेणु बाला ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की है. इससे पहले भी वो 2019 का विधानसभा चुनाव इस सीट से सीट चुकी हैं.
कलानौर की आरक्षित सीट से शकुंतला खटक ने लगाचार चौथी बार जीत दर्ज की है. इससे पहले ये सीट 2009, 2014, 2019 में भी उन्हीं के पास थी. इस बार भी कांग्रेस ने उन्हीं पर अपना दाव लगाया था.
झज्जर सीट से कांग्रेस की गीता भुक्कल ने जीत दर्ज की है. वे लगातार पांचवी बार विधायक बनी हैं. उन्होंने राजनीति में कदम रखने के बाद 2005 में कलायत की सीट पर जीत हासिल की थी. इसके बाद वो 2009 से झज्जर की विधानसभा सीट पर चुनाव जीततीं आ रही हैं.
नांगल चौधरी निर्वाचन क्षेत्र से मंजू चौधरी ने जीत हासिल की है. वो कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ी थीं. वो पूर्व विधायक और गुर्जर समाज में अच्छी पकड़ रखने वाले नेता चौधरी मूलाराम की पत्नी हैं. वो 2014 में भी इस सीट पर इंडियन नेशनल लोकदल के टिकट से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं, हालांकि तब उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.
निर्दलीय के तौर पर हिसार से सावित्री जिंदल ने चुनाव जीता है. उनकी बड़ी पहचान ये है कि वो देश की सबसे अमीर महिला हैं. उनके बेटे नवीन जिंदल भी भाजपा से सांसद हैं. इससे पहले सावित्री जिंदल हरियाणा में मंत्री रह चुकी है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सावित्री जिंदल ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. इस बार सावित्री जिंदल ने भाजपा से टिकट मांगा था, मगर पार्टी के इनकार के बाद सावित्री ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया.
घर, खेत और खेल के मैदान में आगे रहने वाली महिलाएं राजनीति में पीछे
वैसे, ये विडंबना ही है कि हरियाणा की महिलाएं घर और खेतों में काम करने के अलावा खेल के मैदान में भी काफी आगे हैं. किसान आंदोलन में भी हरियाणा की महिलाओं की बहुत सक्रियता देखी गई थी. इसके अलावा भारत को ओलंपिक और अन्य खेलों में पदक दिलाने वाली कई महिला खिलाड़ियों का नाता हरियाणा से ही है. लेकिन जब बात राजनीति और शीर्ष पदों पर आसीन होने की आती है, तो अब भी वे काफ़ी पीछे ही नज़र आती हैं.
इसकी एक बड़ी वजह हरियाणा के पारंपरिक समाज में पुरुषों का वर्चस्व है. राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को ‘सीट जीताऊ’ नहीं मानती, जिसके चलते उन्हें टिकट ही कम मिलती है. इसके अलावा इस राज्य का लिंगानुपात यानी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की कम तादाद अक्सर अलग-अलग मंचों पर चर्चा का विषय रहा है, लेकिन यह मुद्दा राजनीति और चुनाव से कोसों दूर ही नज़र आता है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, हरियाणा में एक हज़ार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की आबादी महज 877 है. वहीं भारत में राष्ट्रीय स्तर पर एक हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले 940 महिलाएं हैं. साल 2015 में हरियाणा के पानीपत से ही मोदी सरकार के महत्वकांक्षी ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत थी. लेकिन इसका वास्तव में क्या असर रहा, ये तो आगे होने वाली जनगणना से ही पता चलेगा.
देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा की राजनीति में और महिलाओं के आने की उम्मीद को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है. हालांकि महिलाओं की भागीदारी का मुद्दा सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं है, अन्य राज्यों में भी अमूमन यही तस्वीर है.