बीते पांंच दशकों में निगरानी में रखे गए वन्यजीवों की आबादी में 73 प्रतिशत गिरावट आई: रिपोर्ट

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते पांच दशकों में निगरानी में रखी गई वन्यजीव आबादी में करीब 73 प्रतिशत की गिरावट आई है और इसकी वजह वनों की कटाई, इंसानों द्वारा शोषण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है. 

त्रिपुरा से बंगाल के दोनों शेरों में से एक. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बीते पांच दशकों में निगरानी में रखी गई वन्यजीव आबादी में करीब 73 प्रतिशत की गिरावट आई है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, ये आंकड़े 1970 से 2020 तक के हैं और इसमें वन्यजीवों को हुए नुकसान की वजह वनों की कटाई, इंसानों द्वारा किया जा रहा शोषण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन बताया गया है.

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गिद्धों की तीन प्रजातियों में तेज़ी से हुई गिरावट चिंताजनक है. इसमें सफेद पूंछ वाले गिद्ध, भारतीय गिद्ध और पतले चोंच वाले गिद्ध शामिल हैं. सफेद पूंछ वाले गिद्ध की आबादी में 67 प्रतिशत, भारतीय गिद्ध में 48 प्रतिशत तथा पतली चोंच वाले गिद्ध की संख्या में 89 प्रतिशत की कमी आई है.

इस रिपोर्ट में भारत के संबंध में ये भी कहा गया है कि यहां कुछ वन्यजीव आबादी स्थिर हो गई है और उसमें सुधार हुआ है, जिसका मुख्य कारण सक्रिय सरकारी पहल, प्रभावी आवास प्रबंधन, मजबूत वैज्ञानिक निगरानी और सामुदायिक सहभागिता के साथ-साथ सार्वजनिक समर्थन है.

दुनिया भर में बाघों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है. अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2022 में कम से कम 3,682 बाघ दर्ज किए गए, जबकि 2018 में 2,967 बाघों की संख्या का अनुमान लगाया गया था.

भारत में प्रथम हिम तेंदुआ आबादी आकलन (एसपीएआई) में अनुमान लगाया गया था कि उनके 70 प्रतिशत क्षेत्र में 718 हिम तेंदुए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस रिपोर्ट के निष्कर्ष 35,000 जनसंख्या रुझान और 5,495 उभयचर (amphibians), स्तनधारियों (mammals) पक्षियों, मछलियों और रेंगने वाले जंतुओं (reptiles) की प्रजातियों पर आधारित थे.

हालांंकि, ये गिरावट निश्चित तौर वन्यजीवों की खत्म हुई संख्या को लेकर नहीं है, बल्कि दुनिया भर में निगरानी में रखे गए जंतुओं की आबादी में औसत परिवर्तन के संदर्भ में है.

रिपोर्ट की मानें, तो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक गिरावट मीठे जल वाले पारिस्थितिकी तंत्रों (85 प्रतिशत) में दर्ज की गई है, इसके बाद स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्रों (69 प्रतिशत) और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों (56 प्रतिशत) का स्थान है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आवास की हानि, अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, आक्रामक प्रजातियां, बीमारियां वन्यजीवों की गिरावट के प्रमुख कारण हैं, जबकि आवास की हानि का कारण अस्थिर कृषि, विखंडन, कटाई, खनन जैसे कुछ कारण हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब किसी वन्यजीव की आबादी एक निश्चित स्तर से नीचे गिर जाती है, तो वह प्रजाति पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर अपनी सामान्य भूमिका निभाने में सक्षम नहीं हो पाती है.

रिपोर्ट कहती है कि प्राकृतिक दुनिया में इस गिरावट के बड़े निहितार्थ हैं, ये पारिस्थितिकी क्षरण (ecological degradation), जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर, स्थानीय और क्षेत्रीय ‘टिपिंग प्वाइंट’ पहुंचने यानी जिसके आगे पारिस्थितिकी तंत्र में अपरिवर्तनीय प्रभाव हो सकते हैं, की संभावना को बढ़ा देता है.

रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से निपटने तथा ऊर्जा, खाद्य और वित्त प्रणालियों में बदलाव लाने के लिए अगले पांच सालों में सामूहिक प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है.