नई दिल्ली: आज की तारीख से ठीक 19 साल पहले यानी 12 अक्टूबर, 2005 को ‘सूचना का अधिकार (आरटीआई)’ क़ानून लागू हुआ था. सत्ता के गलियारों से जनता तक सच और जानकारी की रोशनी पहुंचाने का सशक्त माध्यम रहा आरटीआई कानून पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है.
सतर्क नागरिक संगठन की ताजा रिपोर्ट (भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड, 2023-24) बताती हैं कि सूचना आयोगों में चार लाख से अधिक शिकायतें और अपीलें लंबित हैं. सूचना आयुक्तों के पद रिक्त पड़े हैं. कई आयोग तो निष्क्रिय हो चुके हैं. कई आयोग बिना जवाब दिए आवेदन लौटा दे रहे हैं. प्रत्येक आयोग को अपने कार्यान्वयन की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होती है, ज़्यादातर ऐसा नहीं कर रहे हैं.
सतर्क नागरिक संगठन की संस्थापक और कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने द वायर हिंदी से बातचीत में कहा कि 2005 में क़ानून को मज़बूत बनाया गया था, लेकिन उसका अनुपालन सही से नहीं हो रहा है, उसे ठीक करने की ज़रूरत है.
अंजलि, आरटीआई के लिए चलाए गए राष्ट्रीय अभियान की सह–संयोजक रही हैं. उनका संगठन लंबे समय से सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर वंचित समूहों को उनका अधिकार दिलाने का काम कर रहा है.
लंबित मामलों का बढ़ता जा रहा है बोझ
सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक़, 30 जून, 2024 तक भारत के सभी 29 सूचना आयोगों में लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या 4,05,509 थी.
साल दर साल अपीलों/शिकायतों के बैकलॉग की संख्या बढ़ती जा रही है. 31 मार्च, 2019 तक 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 मामले लंबित थे. 30 जून, 2021 तक संख्या बढ़कर 2,86,325 हो गई. जून 2022 में लंबित शिकायतों और अपीलों की संख्या तीन लाख को पार कर गई थी.
पिछले साल, 30 जून, 2023 तक बैकलॉग 3,88,886 था. (इन आंकड़ों से पता चलता है कि गत पांच सालों में लंबित शिकायतों/अपीलों की संख्या 1,87,162 बढ़ गई है.)
राज्यवार बात करें, तो महाराष्ट्र की हालत सबसे अधिक ख़राब हैं. महाराष्ट्र के सूचना आयोग में 1,08,641 अपीलें/शिकायतें लंबित पाई गईं. इसके बाद नंबर आता है कर्नाटक (50,000), तमिलनाडु (41,241) और छत्तीसगढ़ (25,317) का. केंद्रीय सूचना आयोग के पास लगभग 23,000 अपीलों और शिकायतों का बैकलॉग मिला.
अंजलि, बैकलॉग को बेहद गंभीर समस्या मानती हैं. उन्होंने कहा, ‘मामले लंबित होने से लोगों को बहुत समय तक इंतज़ार करना पड़ रहा है. हमारी रिपोर्ट बताती है कि अभी जो हालत है, अगर छत्तीसगढ़ और बिहार में एक नया आरटीआई दायर किया जाए तो उसकी सुनवाई का नंबर आने में चार से पांच साल तक का समय लग जाएगा. …अगर सूचना इतनी देरी से मिलेगा तो उसका क्या मतलब रह जाएगा. लोग सूचना मांगते हैं भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए, अपने अधिकारों को पाने के लिए, ऐसे में सूचना पाने के लिए पांच–पांच साल इंतज़ार करना पड़े तो उस सूचना का क्या महत्व रह जाएगा.’
अंजलि आगे बताती हैं, ‘यह समस्या (बैकलॉग) इसलिए है क्योंकि सरकारें समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां नहीं कर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट के बार–बार कहने पर भी समय से नियुक्तियां नहीं हो रही हैं.’
उल्लेखनीय है कि फरवरी 2019 में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न किए जाने के संबंध में एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जल्द से जल्द रिक्तियों को भरने के लिए कहा था.
ज़ाहिर है आरटीआई अधिनियम के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संख्या में सूचना आयुक्तों का होना आवश्यक है. अगर सूचना आयुक्त ही नहीं होंगे तो आवेदक को जानकारी मिलेगी कैसे?
सूचना आयुक्तों के रिक्त पड़े पद
सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट की रिपोर्ट बताती हैं, 1 जुलाई, 2023 से 30 जून, 2024 के बीच 7 सूचना आयोग (झारखंड, तेलंगाना, गोवा, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़) अलग–अलग समय के लिए निष्क्रिय रहे क्योंकि मौजूदा आयुक्तों के पद छोड़ने के बाद कोई नए आयुक्त नियुक्त नहीं किए गए. इनमें से 4 आयोग (झारखंड, तेलंगाना, गोवा और त्रिपुरा) अभी भी निष्क्रिय हैं. 5 आयोग (छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तराखंड और ओडिशा) में मुख्य सूचना आयुक्त के पद रिक्त पड़े हैं.
अंजलि ध्यान दिलाती हैं, ‘महाराष्ट्र में एक लाख से अधिक लंबित मामले पड़े हैं और वहां मुख्य सूचना आयुक्त का पद ही खाली है. ऐसे में लंबित मामलों की संख्या तो बढ़ती ही जाएगी. … केंद्रीय सूचना आयोग में भी 11 में से तीन आयुक्त ही हैं. आठ आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की गई है जबकि 23 हज़ार मामले लंबित पड़े हैं.’
आरटीआई अधिनियम के तहत, सूचना आयोगों में एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्त होते हैं. केंद्रीय सूचना आयोग के प्रमुख और आयुक्तों के लिए, चयन समिति में प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं, जबकि राज्य के सूचना आयोग के प्रमुख और आयुक्तों के लिए, चयन पैनल में मुख्यमंत्री (अध्यक्ष), विधानसभा में विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं.
‘सरकारों की कोशिश है कि लोगों की सूचना न मिले’
रिपोर्ट का दवा है कि कई आयोग बिना कोई आदेश पारित किए बड़ी संख्या में आवेदन वापस कर दे रहे हैं. जुलाई 2023 से 30 जून, 2024 के बीच केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने प्राप्त कुल अपीलों/शिकायतों में से 42% को वापस कर दिया था.
आरटीआई से जानकारी लेना कितना मुश्किल हो गया है, इसे एक उदाहरण से समझते हैं. द हिंदू की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि कुछ माह पहले महाराष्ट्र निवासी अजय बोस ने आरटीआई दायर कर नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों की जानकारी मांगी थी.
15 अप्रैल को बोस के आरटीआई के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लिखा, ’सीएम के नियमों के तहत नागरिकता के लिए आ रहे आवेदनों का रिकॉर्ड रखने का प्रावधान नहीं है. इसके अलावा, आरटीआई अधिनियम-2005 अनुसार, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी को जानकारी बनाने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है.’
अंजलि कहती हैं, ‘सरकारें अलग–अलग तरह से कोशिश कर रही हैं कि लोगों को सूचना न मिले क्योंकि जब सूचना सामने आती है तो सरकारों पर बहुत तरह के सवाल उठते हैं. सरकारों के लिए यह सहज नहीं होता है. ऐसे में लोगों के पास विकल्प यही है कि वे सूचना आयोग में जाकर सूचना मांगे. अपील और शिकायत करें. सूचना आयोग बहुत जरूरी है. सूचना आयोग का काम है कि अगर सरकार ग़लत तरीके से सूचना नहीं दे रही है तो सूचना आयुक्तों के पास यह शक्ति है कि वह सरकार को सूचना देने के लिए निर्देश दे सकें. जब सूचना आयोग सही से काम नहीं करेंगे. तब तक लोगों को सूचना नहीं मिलेगी. ख़ासकर ऐसी सूचना नहीं मिलेगी जो सरकार देना नहीं चाहती है. सरकार से सूचना दिलवाई जाई ये काम सूचना आयुक्तों का है.’
अंजलि भारद्वाज से बातचीत में यह बात उभरकर सामने आती है कि सूचना के अधिकार के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह बहुत जरूरी है कि सूचना आयुक्त सही से काम करें और ऐसे लोगों पर जुर्माना लगाया जाए जो सूचना नहीं दे रहे हैं.
आरटीआई अधिनियम के उल्लंघन के लिए पब्लिक इनफार्मेशन ऑफिसर (पीआईओ) पर 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना लगाने का अधिकार सूचना आयुक्त के पास होता है. दंड संबंधी यह प्रावधान कानून को मजबूती देने और पीआईओ को कानून का उल्लंघन करने से रोकने के लिए है.
सतर्क नागरिक संगठन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ‘सूचना आयोगों द्वारा लगाए गए जुर्माने के विश्लेषण से पता चलता है कि आयोगों ने 95% मामलों में पेनल्टी नहीं लगाई जहां वह संभावित रूप से लगाई जा सकती थी.’
रिपोर्ट यह भी बताती है कि आरटीआई अधिनियम की धारा 25 के तहत प्रत्येक आयोग को अधिनियम के कार्यान्वयन पर वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होती है. 29 में से 18 आयोग (62%) ने 2022-23 के लिए वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है.