2015 कानपुर हिंसा: योगी सरकार ने 32 आरोपियों के ख़िलाफ़ केस वापस लेने का निर्देश दिया

अक्टूबर 2015 में कानपुर के फजलगंज इलाके में मुहर्रम के जुलूस के दौरान कथित तौर पर एक धार्मिक पोस्टर फाड़े जाने को लेकर सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी. मामले के जिन 32 आरोपियों के ख़िलाफ़ केस वापस लेने को कहा गया है, उनका नाम चार्जशीट में है और वे सभी हिंदू समुदाय के हैं.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कानपुर में साल 2015 में हुई सांप्रदायिक हिंसा मामले के 32 आरोपियों के ख़िलाफ़ चल रहे केस को वापस लेने का फैसला किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार ने कानपुर जिला प्रशासन को इस संबंध में अदालत में याचिका दायर करने का निर्देश दिया है. ये सभी आरोपी हिंदू समुदाय से हैं और इन पर चार्जशीट दाखिल हो चुकी है.

इन आरोपियों पर आईपीसी की धारा 147 (दंगा), 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण कृत्य), 353, 332 और 336 सहित कई प्रावधानों के तहत दर्ज मामला दर्ज किया गया था. पुलिस ने इन आरोपियों के ख़िलाफ़ सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप लगाया है.

मालूम हो कि ये मामला साल 2015 का है, जब कानपुर के फजलगंज इलाके में 24 अक्टूबर को मुहर्रम के जुलूस के दौरान एक धार्मिक पोस्टर कथित तौर पर फाड़े जाने को लेकर सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी. यह हिंसा तेजी से दूसरे इलाकों में फैल गई थी. इलाके में दो गुटों के बीच भारी पथराव और गोलीबारी की घटनाएं हुईं थीं. इस हिंसा में कई लोग घायल हो गए थे और सार्वजिनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा था.

कई घंटों की मशक्कत के बाद पुलिस स्थिति को नियंत्रित करने में सफल रही थी और आरोपियों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किए गए थे. इस मामले में सब-इंस्पेक्टर बृजेश कुमार शुक्ला की शिकायत के आधार पर फजलगंज थाने में मामला दर्ज किया गया था.

कानपुर जिला प्रशासन के निर्देश की पुष्टि करते हुए अखबार को एक सरकारी वकील ने बताया, ‘हमें एक पत्र मिला है जिसमें हमें मामले को वापस लेने के लिए संबंधित अदालत में याचिका दायर करने का निर्देश दिया गया है. हालांकि, हमने अभी तक आवेदन जमा नहीं किया है.’

वकील के अनुसार, 8 अक्टूबर को लिखा गया पत्र राज्य सरकार के एक विशेष सचिव द्वारा भेजा गया था. इससे पहले, सरकार ने इस मामले की जानकारी के साथ-साथ पुलिस और वकीलों सहित जिला अधिकारियों की राय मांगी थी.