महाराष्ट्र: सैन्य अभ्यास के दौरान तोप का गोला फटने से दो अग्निवीरों की मौत

घटना नासिक ज़िले में स्थित आर्टिलरी सेंटर की है, जब अग्निवीरों का एक दल तोप से गोले दागने का अभ्यास कर रहा था तभी एक गोले के फटने से अग्निवीर गोहिल विश्वराज सिंह और सैफ़त शित गंभीर रूप से घायल हो गए.

दुर्घटना में जान गंवाने वाले दोनों अग्निवीर. (फोटो साभार: एक्स/@IaSouthern)

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित आर्टिलरी (तोपखाने) सेंटर में सैन्य अभ्यास के दौरान तोप का गोला फटने से दो अग्निवीरों की मौत हो गई है.

खबरों के मुताबिक, घटना गुरुवार (10 अक्टूबर) की है, जब अग्निवीरों का एक दल तोप से फायरिंग का अभ्यास कर रहा था तभी एक गोले के फटने से अग्निवीर गोहिल विश्वराज सिंह (20वर्ष) और सैफ़त शित (21 वर्ष) गंभीर रूप से घायल हो गए. उन्हें देवलाली के एमएच अस्पताल ले जाया गया, जहां वे मृत घोषित कर दिए गए.

गौरतलब है कि ‘अग्निपथ’ योजना 16 जून 2022 को घोषित होने के दिन से ही विवादों के घेरे में रही है. सेना में स्थायी नौकरी और भविष्य बनाने की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए इसे एक बड़े झटके की तरह देखा गया था. युवाओं के बड़े आंदोलन और पूर्व सैनिकों तथा विपक्ष द्वारा लगातार आलोचनाओं के बाद भी सरकार इस योजना से पीछे हटती नहीं दिखी है.

ज्ञात हो कि इस योजना के अंतर्गत भर्ती होने वाले सैनिकों का कार्यकाल चार वर्ष का होता है और कुल भर्ती अग्निवीरों में से सिर्फ 25 प्रतिशत को ही स्थायी सेवा में रखे जाने का प्रावधान है.

हरियाणा में हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों और उससे पहले लोकसभा चुनावों में भी यह योजना एक मुद्दा रही थी. विपक्ष जहां इसे सरकार को घेरने और सेना की संवेदनशील भूमिका को रेखांकित करने में इस्तेमाल करता रहा है, वहीं सरकार का मुख्य सरोकार सेना के बजट को नियंत्रित करना रहा है.

इस वर्ष सेना को खर्च के लिए 6,21,940 करोड़ रूपये मिले हैं, जिसका ज्यादातर हिस्सा वेतन और पेंशन में खर्च होना है. विशेषज्ञों का कहना है कि सेना के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए वेतन और पेंशन खर्च को कम करना ही होगा. उनका कहना है कि चीन और अमेरिका जैसे देश अपने सैन्य बजट का क्रमशः 30.8 प्रतिशत और 38.6 प्रतिशत ही वेतन और पेंशन पर खर्च करते हैं.

भारत जैसे देश में सैन्य खर्च में कटौती के लिए ऐसी योजना लागू करना कई नए सवाल भी पैदा करता है. यहां पारंपरिक रूप से देश के कई राज्यों जैसे उत्तरप्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान आदि के युवा सेना में भर्ती होने के लिए वर्षों तक तैयारी करते हैं और उनके लिए सेना में जाना रोज़गार से कहीं अधिक सामाजिक प्रतिष्ठा और गर्व का विषय है. ऐसे में महज चार वर्ष की सेवा की यह योजना उनके लिए एक बड़ा धक्का है.

वहीं, पूर्व सैनिकों का कहना है कि एक सैनिक तैयार करने के लिए 4 साल की नौकरी का समय अपर्याप्त है. वह ढंग से कुछ सीख तक नहीं पाएंगे. इन सभी वाद-विवादों के बीच, अवांछित घटनाओं में अग्निवीरों की मौत की खबरें भी आती रही हैं. बीते हफ्ते भी राजस्थान के भरतपुर में मॉक ड्रिल के दौरान अग्निशमन यंत्र में विस्फोट होने से एक अग्निवीर की मौत हो गई थी.

बहरहाल, अग्निवीर योजना का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है पेंशन का न मिलना और सेवा के दौरान हुई मृत्यु पर शहीद का दर्जा न मिलना.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीते जनवरी माह में अग्निवीर अजय कुमार की कश्मीर में बारूदी सुरंग फटने से हुई मौत का मुद्दा संसद में जोर-शोर से उठाया था और अजय कुमार के परिवार को मिले मुआवजे और शहीद का दर्जा न मिलने पर सवाल खड़े किए थे.