नई दिल्ली: भारत और कनाडा के रिश्तों में तेज़ी से गिरावट देखी जा रही है. सोमवार (14 अक्टूबर) को भारत ने ‘सुरक्षा चिंताओं’ के मद्देनजर अपने राजनयिकों और उच्चायुक्त संजय वर्मा को वापस बुला लिया.
हालांकि, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का दावा है कि उनकी सरकार ने छह भारतीय राजनयिकों को देश से निष्कासित किया है.
इधर भारत सरकार ने भी कनाडा के छह राजनयिकों निष्कासित कर दिया है और 19 अक्तूबर को रात में 11:59 बजे से पहले देश छोड़ने के लिए कहा है.
भारत द्वारा निष्कासित राजनयिक हैं– स्टीवर्ट रॉस व्हीलर (कार्यवाहक उच्चायुक्त), पैट्रिक हेबर्ट (उप उच्चायुक्त), मैरी कैथरीन जोली (प्रथम सचिव), लैन रॉस डेविड ट्राइट्स (प्रथम सचिव), एडम जेम्स चुइपका (प्रथम सचिव) और पॉला ओरजुएला (प्रथम सचिव).
ये सब क्यों हो रहा है?
हालिया तनाव का तार पिछले साल हुई एक हत्या से जुड़ा है. 18 जून, 2023 को कनाडा के वैंकूवर स्थित गुरु नानक सिख गुरुद्वारा की पार्किंग में कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. भारतीय मूल का निज्जर जालंधर के गांव भारसिंह पुरा के रहने वाला था. जिस गुरुद्वारे में उसकी हत्या हुई, वह उसका अध्यक्ष भी था.
गृह मंत्रालय द्वारा 1 जुलाई, 2020 को जारी अधिसूचना के मुताबिक़, भारत सरकार हरदीप सिंह निज्जर को आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त मानती है. उस अधिसूचना में लिखा है, ‘हरदीप सिंह निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख है और खालिस्तान टाइगर फोर्स का मॉड्यूल सदस्यों के कार्य करने में, नेटवर्किंग, प्रशिक्षण और वित्तपोषण में सक्रिय रूप से संलिप्त है.’
निज्जर की हत्या के तुरंत बाद जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में कहा था कि ‘भारत सरकार की संभावित संलिप्तता के आरोपों’ की जांच की जा रही है. भारत सरकार ने कनाडा के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई थी.
तब से ही भारत–कनाडा के रिश्तों में लगातार गिरावट आ रही है.
इस बीच रविवार (13 अक्टूबर) की रात विदेश मंत्रालय को कनाडा का एक राजनयिक संदेश मिला, जिसमें बताया गया कि कनाडा में चल रही एक जांच में भारत के उच्चायुक्त और अन्य राजनयिक ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ हैं.
बता दें कि कनाडाई कानून में, ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ शब्द का प्रयोग आम तौर पर किसी ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसके बारे में अधिकारी मानते हैं कि या तो उसका किसी अपराध (निज्जर की हत्या) से संबंध हो सकता है या उसके पास अपराध से संबंधित जानकारी हो सकती है, लेकिन उसे अभी तक ऐसा संदिग्ध व्यक्ति न माना गया हो जिस पर औपचारिक रूप से आरोप लगाए जा सकें.
भारत सरकार ने इन आरोपों को बेतुका बताते हुए नकार दिया है. सोमवार (14 अक्टूबर) की शाम भारत के विदेश मंत्रालय ने स्टीवर्ट रॉस व्हीलर को तलब किया. उन्हें बताया गया कि कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों और अधिकारियों को आधारहीन तरीके से निशाना बनाना पूरी तरह से अस्वीकार्य है.
इसके बाद व्हीलर मीडिया से मुख़ातिब हुए और कहा, ‘कनाडा ने भारत सरकार के एजेंटों और कनाडा की धरती पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या के बीच संबंधों के विश्वसनीय, अकाट्य सबूत दिए हैं. अब समय आ गया है कि भारत अपने वादे पर खरा उतरे और उन सभी आरोपों की जांच करे. इस मामले की तह तक जाना दोनों देशों के हित में है. कनाडा भारत के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है.’
इस बीच कनाडा के प्रधानमंत्री ने एक बयान जारी कर भारतीय राजनयिकों के निष्कासन की जानकारी दी, ‘रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर ने आज (14 अक्टूबर) कहा कि उनके पास स्पष्ट और पुख्ता सबूत हैं कि भारत सरकार के एजेंट ऐसी गतिविधियों में शामिल रहे हैं, जो सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है. …इस सप्ताहांत, कनाडाई अधिकारियों ने पुलिस द्वारा जुटाए साक्ष्यों को साझा करने के लिए भारतीय अधिकारियों से मुलाकात की. अनुरोध करने के बावजूद भारत सरकार ने सहयोग न करने का फैसला किया. इसके बाद मेरी सहयोगी मेलानी जोली (विदेश मंत्री) के पास केवल एक ही विकल्प था. उन्होंने उन छह व्यक्तियों को कनाडा छोड़कर जाने का नोटिस जारी कर दिया. वे अब कनाडा में राजनयिक के रूप में काम नहीं कर पाएंगे, न ही किसी भी कारण से कनाडा में फिर से प्रवेश कर पाएंगे.’
वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ कनाडा ने ट्रूडो सरकार के इस फैसले की सराहना की है.
14 अक्टूबर को ही जारी बयान में भारत के विदेश मंत्रालय ने लिखा, ‘उग्रवाद और हिंसा के माहौल में ट्रूडो सरकार की कार्रवाई से राजनयिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. हमें उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा कनाडाई सरकार की प्रतिबद्धता पर कोई भरोसा नहीं है. इसलिए, भारत सरकार ने उन उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों तथा अधिकारियों को वापस बुलाने का फैसला किया है, जिन्हें निशाना बनाया गया है.’
इससे पहले, जारी एक अन्य बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ट्रूडो ने सितंबर 2023 में कुछ आरोप लगाए थे, लेकिन कनाडा सरकार ने हमारी ओर से कई अनुरोधों के बावजूद भारत सरकार के साथ कोई भी सबूत साझा नहीं किया है. इस नए कदम में भी फिर से बिना किसी तथ्य के दावे किए गए हैं. इससे इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह जांच के बहाने राजनीतिक लाभ के लिए जानबूझकर भारत को बदनाम करने की एक रणनीति है.’
पिछले सप्ताह हुई थी मोदी और ट्रूडो की मुलाक़ात
उल्लेखनीय है कि इसी महीने 6 से 11 अक्टूबर के बीच लाओस में आसियान शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था. उस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जस्टिन ट्रूडो की मुलाकात हुई थी. कनाडाई ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (सीबीसी न्यूज) ने इसे ‘संक्षिप्त बातचीत’ लिखा था. वहीं पीटीआई ने भारतीय सूत्रों के हवाले से लिखा कि मोदी और ट्रूडो के बीच कोई ठोस चर्चा नहीं हुई.
हालांकि, शिखर सम्मेलन के दौरान ही ट्रूडो ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘हमने जो बात की, उसके बारे में मैं विस्तार से नहीं बताऊंगा. लेकिन मैंने कई बार कहा है कि कनाडाई लोगों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखना किसी भी कनाडाई सरकार की मूलभूत जिम्मेदारियों में से एक है और मैं इसी पर ध्यान केंद्रित करूंगा.’
भारत सरकार के इशारे पर काम कर रही है बिश्नोई गैंग: कनाडा पुलिस
ठीक जिस समय भारत में बिश्नोई गैंग का नाम राष्ट्रवादी कांग्रेस नेता (एनसीपी) नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या से जोड़ा जा रहा है, उसी वक्त कनाडा पुलिस ने भी इस गैंग पर अपने देश में आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया है.
कनाडा की राजधानी ओटावा में थैंक्सगिविंग डे पर मीडिया को संबोधित करते हुए रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर ब्रिगिट गौबिन ने आरोप लगाया कि भारत सरकार के ‘एजेंट’ कनाडा की धरती पर आतंक फैलाने के लिए लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
द वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में कनाडाई अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि भारत सरकार लॉरेंस बिश्नोई गैंग का इस्तेमाल ‘हरदीप सिंह निज्जर की हत्या’ जैसे ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए कर रही है, ‘कनाडा में भारतीय राजनयिक संदिग्ध सिख अलगाववादियों के बारे में खुफिया जानकारी इकट्ठा करते हैं, जिसे बाद में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ को भेजा जाता है, ताकि बिश्नोई गैंग को टारगेट की पहचान करने में मदद मिल सके.’ (लॉरेंस बिश्नोई और उसके गैंग के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
द वाशिंगटन पोस्ट को एक कनाडाई अधिकारी ने बताया है कि भारतीय राजनयिकों के बीच हुई बातचीत और संदेशों में ‘भारत के एक वरिष्ठ अधिकारी और रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी’ का उल्लेख है. आरोपों के मुताबिक़, वह ‘वरिष्ठ अधिकारी’ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हैं.
पिछले सप्ताह की एक ‘गुप्त बैठक’
सोमवार (14 अक्टूबर) को मीडिया से बात करते हुए ट्रूडो ने दावा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच होने वाली बैठक के महत्व के बारे में सूचित किया था, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला.
द वाशिंगटन पोस्ट ने कनाडाई अधिकारी के हवाले से लिखा है कि गत शनिवार (12 अक्टूबर) को सिंगापुर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नैथली ड्रोइन की एक बैठक हुई थी. इस बैठक में कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन के साथ–साथ रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी भी शामिल थे.
रिपोर्ट के मुताबिक़, उस बैठक में कनाडा की तरफ़ से शाह की संलिप्तता और अन्य सबूतों के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की गई थी.
रिपोर्ट में एक कनाडाई अधिकारी का विचित्र दावा भी छपा है जिसके मुताबिक़, ‘डोभाल ने स्वीकार किया कि भारत ने लोगों का पीछा करने, तस्वीरें लेने आदि के लिए अपने राजनयिकों का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने धमकी या हिंसा से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया.’ कनाडाई अधिकार के दावे के उलट भारत सरकार लगातार अपने राजनयिकों का बचाव कर रही है और उन पर लगाए जा रहे सभी आरोपों का खंडन कर रही है।
कथित बैठक में डोभाल को निज्जर हत्या और अन्य मामलों में बिश्नोई गैंग के शामिल होने का भी सबूत दिया गया. बता दें कि 79 वर्षीय पूर्व जासूस अजीत डोभाल, पिछले एक दशक से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वासपात्र माना जाता है.