यूपी में परियोजनाओं पर सख़्त सुप्रीम कोर्ट, कहा- पेड़ नहीं लगाए तो कार्रवाई के निर्देश देंगे

उत्तर प्रदेश की कुछ परियोजनाओं से जुड़ी जनहित याचिकाओं को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में एक रेल परियोजना पर रोक लगाने का निर्देश भी दिया. कोर्ट का कहना था कि 2022 के आदेश के अनुसार, रेल विकास निगम लिमिटेड ने 50,000 से अधिक पौधे लगाने का लक्ष्य पूरा नहीं किया.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (14 अक्टूबर) को उत्तर प्रदेश की परियोजनाओं से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए प्राधिकरणों को सख्त चेतावनी दी है कि अगर उनके द्वारा काटे गए पड़ों की जगह नए पेड़ नहीं लगाए गए, तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने सुनवाई के दौरान यूपी की एक रेल परियोजना पर रोक लगाने का निर्देश भी दे दिया.

कोर्ट का कहना था कि 2022 के आदेश के अनुसार, रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने 50,000 से अधिक पौधे लगाने का लक्ष्य पूरा नहीं किया है.

पर्यावरण मामलों में अदालत की सहायता करने वाली विशेषज्ञ वैधानिक संस्था केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की एक रिपोर्ट पर विचार करते हुए अदालत ने 16 ऐसे उदाहरणों पर ध्यान दिया, जहां पेड़ों की कटाई के बाद अनिवार्य वृक्षारोपण नहीं किया गया है.

इस संबंध में जस्टिस अभय एस.  ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘हम सभी को नोटिस दे रहे हैं. यदि आप हमारे प्रतिपूरक वनीकरण (compensatory afforestation) आदेश का पालन नहीं करते हैं, तो हम निर्माण के ध्वस्तीकरण का आदेश पारित करेंगे और भूमि को उसके मूल स्वरूप में बहाल करेंगे या निर्देश देंगे कि यदि आपने 100 पेड़ कम लगाए हैं, तो आप प्रति पेड़ 10 लाख रुपये का भुगतान करें और यदि आप 100 के आंकड़े से ज्यादा पेड़ लगाने में विफल रहे हैं, तो प्रति पेड़ 15 लाख रुपये का जुर्माना भरें.’

मालूम हो कि मथुरा-झांसी रेलवे लाइन के विस्तार से संबंधित ऐसे ही एक मामले से निपटते हुए, सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस अभय एस ओका के साथ  जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे, ने सभी लंबित कार्यों को रोकने का आदेश दे गदिया क्योंकि आरवीएनएल मई 2022 के आदेश के अनुसार  50,940 पौधों का वृक्षारोपण नहीं दिखा सका.

यूपी सरकार के वन विभाग की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने अदालत को बताया कि कुछ पौधे लगाए गए हैं,  लेकिन अदालत इससे संतुष्ट नहीं हुई और कोर्ट द्वारा आगे के सभी कामों पर रोक लगा दी गई.

इस मामले में अब आगे की सुनवाई 18 नवंबर को होगी. अदालत ने इससे पहले आरवीएनएल और राज्य सरकार को वृक्षारोपण के अनुपालन का हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. अदालत ने इसी तरह शेष बकाएदारों को भी सुना और उन्हें अनुपालन दाखिल करने के लिए एक महीने का समय दिया है.

बता दें कि अन्य बकाएदारों की सूची में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), यूपी सरकार का लोक निर्माण विभाग, जेपी इंफ्राटेक (ताज एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए), यूपी जल निगम और यूपी मेट्रो रेल कॉरपोरेशन शामिल हैं.

मालूम हो कि अदालत प्रतिष्ठित ताजमहल की सुरक्षा के लिए एमसी मेहता द्वारा 1984 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जहां ताज ट्रैपेजियम जोन (टीटीजेड) में पेड़ों की कटाई के लिए समय-समय पर आवेदन दायर किए गए हैं. इसमें यूपी और राजस्थान के 10,400 वर्ग किलोमीटर में फैले जिले शामिल हैं.

आगरा हवाई अड्डे के विस्तार से जुड़े पेड़ों की कटाई के लिए एक अलग आवेदन पर विचार करते हुए अदालत ने पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार को 286 पेड़ों को काटने की अनुमति मांगने से पहले 4,000 से अधिक पौधे लगाकर और 121 पेड़ों को स्थानांतरित करके प्रतिपूरक वनीकरण लागू करने का निर्देश दिया है.

पीठ ने कहा, ‘पेड़ों की वास्तविक कटाई तभी की जाएगी जब आवेदक (यूपी सरकार) इस अदालत के समक्ष 4,130 पौधों के रोपण के अनुपालन और 121 पेड़ों के स्थानांतरण के सफल समापन के बारे में हलफनामा दायर करेगा.’

ध्यान रहे कि यह पहली बार है जब अदालत ने पेड़ों की कटाई से पहले पेड़ लगाने का निर्देश दिया है. आदेश में आगे कहा गया है, ‘अनुपालन होने के बाद आवेदक आवश्यक रिकॉर्ड दाखिल करेंगे और अनुपालन हलफनामे के बाद ही हम आवेदक को 286 पेड़ों की कटाई के लिए आवेदन दायर करने की अनुमति देंगे.’

ज्ञात हो कि इस संबंध में आदेश पारित करने से पहले, अदालत ने सीईसी द्वारा दायर एक रिपोर्ट देखी, जिसमें 413 पेड़ों की कटाई की आवश्यकता वाले राज्य सरकार के आवेदन पर विचार किया गया था. सीईसी ने प्रस्ताव की जांच की थी और काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या घटाकर 317 कर दी थी. 9 सितंबर को शीर्ष अदालत ने सीईसी को फिर से काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या कम करने की संभावना की जांच करने के लिए कहा था.

10 अक्टूबर को दायर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में, सीईसी ने कहा था, ‘सभी पेड़ों के विस्तृत निरीक्षण पर यह पाया गया और इस बात पर सहमति हुई कि कुल 121 पेड़ों को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित किया जा सकता है. इससे केवल 286 पेड़ ही काटने की जरूरत पडेगी.’

न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एडीएन राव ने अदालत को सूचित किया था कि सीईसी ने आगे सिफारिश की है कि पेड़ों के स्थानांतरण के लिए पहचाने जाने वाले क्षेत्र में बाड़ लगाई जाए, पौधों को पर्याप्त रूप से पानी दिया जाए और अन्य शर्तों के अलावा 10 वर्षों तक उनका रखरखाव किया जाए.

इस पर राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि राज्य सरकार को सभी शर्तें मंजूर हैं.