नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के निर्देशों को लागू करने में पंजाब और हरियाणा द्वारा की गई निष्क्रियता और दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य हिस्सों में वायु प्रदूषण में योगदान देने वाले पराली जलाने वाले लोगों पर मुकदमा चलाने में विफलता पर कड़ी आपत्ति जताई.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पंजाब और हरियाणा द्वारा दायर हलफनामों का अवलोकन करते हुए दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को अपने समक्ष उपस्थित होने को कहा.
पीठ ने कहा कि उसे उम्मीद है कि हरियाणा सीएक्यूएम के निर्देशों का पालन करेगा.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘हालांकि, हम पाते हैं कि 10 जून, 2021 के निर्देश के खंड 14 के अनुसार दंडात्मक कार्रवाई एक भी मामले में नहीं की गई है. हलफनामे के अनुसार भी आग लगने के 191 मामले थे. केवल नाममात्र का जुर्माना वसूला गया है. यहां तक कि मशीनरी भी स्थापित नहीं की गई है. आयोग का आदेश पिछले तीन वर्षों से अधिक समय से लागू है. हम संबंधित अधिकारियों को धारा 14 लागू करके गैर-अनुपालन के लिए जिम्मेदार राज्य के अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं. हम मुख्य सचिव (हरियाणा के) को अगले बुधवार (23 अक्टूबर) को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश देते हैं.’
पीठ ने सीएक्यूएम से उसके निर्देशों का क्रियान्वयन नहीं करने वाले राज्य के अधिकारियों के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई के बारे में बयान देने को भी कहा.
पीठ ने पंजाब सरकार से पूछा कि उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कोई मुकदमा क्यों नहीं चलाया गया. जस्टिस ओका ने पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह से कहा, ‘हमें एक भी मुकदमा दिखाइए. आप पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 15 के तहत लोगों पर मुकदमा चला सकते थे. एक भी मामला शुरू नहीं किया गया. 10 जून, 2021 के आदेश के खंड 14 का कोई अनुपालन नहीं किया गया है.’
पीठ ने कहा, ‘यह कहा गया है कि इसरो प्रोटोकॉल (ISRO protocol) के अनुसार आग लगने की 267 घटनाएं दर्ज की गई थीं. ऐसा कहा गया है कि सभी 267 के खिलाफ कार्रवाई की गई थी. हालांकि, केवल 103 से नाममात्र का जुर्माना वसूला गया है और बीएनएस की धारा 233 के तहत केवल 14 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. वायु अधिनियम 1981 की धारा 39 के तहत केवल पांच व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है. इस प्रकार राज्य के अपने आंकड़ों के अनुसार, 267 उल्लंघनकर्ताओं में से 122 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ नाममात्र की कार्रवाई की गई है.’
पीठ ने कहा, ‘हम पंजाब राज्य के मुख्य सचिव को अगली तारीख पर व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश देते हैं, जो कि अगले बुधवार को है. राज्य की ओर से उन्हें राज्य द्वारा की गई चूक के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए.’
उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने के लिए राज्यों की ओर से निष्क्रियता पर निराशा व्यक्त करते हुए जस्टिस ओका ने सीएक्यूएम की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा, ‘अब राज्य सरकारों द्वारा अपनाए गए इस दृष्टिकोण का क्या किया जाना चाहिए? कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं करना चाहता. शायद राजनीतिक कारणों से, हम नहीं जानते. हम यहां यह तय करने के लिए नहीं हैं. हमें जो तय करना चाहिए वह उनकी ओर से निष्क्रियता है. तो, भारत सरकार क्या रुख अपनाना चाहती है?’
पीठ ने कहा, ‘पंजाब के महाधिवक्ता ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा है कि किसी पर मुकदमा चलाना संभव नहीं होगा. अगर किसी पर मुकदमा चलाना संभव नहीं है तो ऐसा चलता रहेगा.’