नई दिल्ली: भारत और कनाडा के कूटनीतिक संबंधों के लिए बुरा दौर अभी खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि कनाडाई मीडिया में कुछ और भारतीय अधिकारियों के संभावित निर्वासन की खबरें सामने आई हैं.
सीबीसी ने बुधवार (16 अक्टूबर) को बताया कि ‘कनाडा ने जिन छह वरिष्ठ राजनयिकों को देश से बाहर जाने का आदेश दिया है, वे संभवतः निर्वासित किए जाने वाले अंतिम भारतीय अधिकारी न हों‘ क्योंकि कनाडाई पुलिस कनाडा में ‘व्यापक हिंसा’ में भारत सरकार की कथित संलिप्तता को लेकर अपनी जांच जारी रखे हुए है.
सोमवार (14 अक्टूबर) को भारत और कनाडा ने एक-दूसरे के 6 राजनयिकों को निर्वासित कर दिया था, जिनमें इनके शीर्ष राजदूत भी शामिल थे. यह कदम दोनों देशों के बीच कूटनीतिक विवाद बढ़ने के बाद उठाया गया था. विवाद के केंद्र में कनाडा के वह आरोप थे जिनमें उसने भारत सरकार के एजेंटों के 2023 में कनाडा में एक खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ता की हत्या में शामिल होने की बात कही थी.
बता दें कि विवाद की शुरुआत तब हुई जब कनाडाई सरकार ने कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा और अन्य राजनयिकों को खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की जांच में ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ बनाया. जब भारत ने उन्हें प्रदान राजनयिक सुरक्षा को हटाने और भारतीय सरकारी एजेंटों द्वारा ‘कनाडाई नागरिकों को निशाना बनाने के अभियान’ की कनाडाई अधिकारियों की जांच में सहयोग करने से इनकार कर दिया तो उन सभी को निर्वासित कर दिया गया.
दोनों देशों के बीच लगातार खराब होते संबंधों के बीच, सीबीसी ने सोमवार को स्रोतों के हवाले से बताया कि ‘भारत के गुप्त अभियानों के लिए एक नेटवर्क कनाडा में मौजूद है, हालांकि इस नेटवर्क के कुछ सदस्य अब गिरफ्तारी का जोखिम उठाने के बजाय स्वेच्छा से – और चुपचाप – वापस चले जाएंगे.’
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री मैरी एनजी ने भारत से जुड़े कनाडाई व्यवसायों को आश्वासन दिया है कि ट्रूडो सरकार दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक और आर्थिक संबंधों का समर्थन करना जारी रखेगी.
एनजी ने कहा, ‘हालांकि, हमें कनाडाई लोगों की सुरक्षा और कानून के शासन को बनाए रखने की आवश्यकता के साथ अपने आर्थिक हितों पर विचार करना चाहिए. हम किसी भी विदेशी सरकार को हमारी धरती पर कनाडाई नागरिकों को डराने, धमकाने या नुकसान पहुंचाने की कोशिश को बर्दाश्त नहीं करेंगे.’
‘भारत इस कूटनीतिक आपदा की भारी कीमत चुकाएगा’
कनाडाई मीडिया के एक वर्ग ने न केवल कनाडा में बल्कि दक्षिण एशियाई आबादी वाले अन्य देशों में भी भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की गतिविधियों की आलोचना की है.
रॉबिन वी. सियर्स ने टोरंटो स्टार में लिखा, ‘इस कूटनीतिक आपदा के परिणामस्वरूप भारत को भारी कीमत चुकानी होगी. और अगर, जैसा कि आरसीएमपी को स्पष्ट रूप से डर है, दक्षिण एशियाई मूल के, किसी अन्य देश के, नागरिक पर एक और हमला होता है तो भारत को होने वाला नुकसान प्रतिबंधों और वर्षों तक रहने वाले संदेह तक बढ़ सकता है.’
सियर्स ने कहा, ‘जी-20 देशों की खुफिया एजेंसियां, जो आज तक रॉ की ज्यादतियों पर अपना गुस्सा दबाती रहीं, अब अधिक सख्त दिखना चाहेंगी.’
इस बीच कनाडा में सिख नेताओं ने भारतीय राजनयिकों के निर्वासन का स्वागत करते हुए कहा कि आरसीएमपी (रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस) की सोमवार की घोषणा ने इस बात की पुष्टि की है जो हम दशकों से कहते आ रहे थे – कि भारत सरकार के एजेंट कनाडा में आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं.
कनाडा में खालिस्तान समर्थक सक्रियता दशकों से दोनों देशों के बीच विवाद का विषय रही है, हालांकि संबंध अपने निम्नतम स्तर पर मोदी और ट्रूडो के शासनकाल में ही पहुंचे हैं.
ग्लोब एंड मेल के वरिष्ठ पत्रकार कैम्पबेल क्लार्क ने लिखा कि वर्मा कनाडा में इस मिशन के साथ आए थे कि ‘ओटावा से उन सिख-कनाडाई कार्यकर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की जाए जो पंजाब से अलग खालिस्तान राज्य बनाना चाहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय सरकार इस मुद्दे को उठाना चाहती थी, और अब हम जानते हैं, वह टकराव चाहती है.’
क्लार्क ने कहा कि भारत में खालिस्तानी चरमपंथियों के काल्पनिक खतरे को मोदी सरकार द्वारा भारतीयों के बीच भय पैदा करने के लिए फैलाए जा रहे नरेटिव के हिस्से के रूप में पेश किया जा रहा है – खासकर कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी के हिंदू-राष्ट्रवादी जनाधार के बीच.
एक अन्य कनाडाई स्तंभकार ने सिख उग्रवाद से निपटने में कनाडा की धीमी प्रतिक्रिया को स्वीकार करते हुए कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि भारत सरकार की कार्रवाइयों को उचित ठहराया जा सके.
पत्रकार एंड्रयू कोयने ने ग्लोब एंड मेल में लिखा, ‘कनाडा सरकार ने भारत को जांच का हिस्सा बनने का हर मौका दिया. लेकिन उसने इनकार कर दिया. इसके बजाय मोदी सरकार ने मांग की कि कनाडा उसे उसके एजेंटों की मिलीभगत के सबूत पेश करे. उसे ऐसे सबूत भी पेश किए गए, फिर भी उसने इनकार कर दिया.’
वह आगे सवाल उठाते हैं, ‘तो क्या इसके बाद भी हमें यह मानना चाहिए कि उच्चायुक्त ने पूरी तरह से अपनी पहल पर इस योजना को अंजाम दिया और उनके वरिष्ठों को इसकी जानकारी नहीं थी?’
एक कदम और आगे बढ़ते हुए कोयने ने मोदी के शासन में भारत में लोकतंत्र की प्रकृति और स्तर पर सवाल उठाया.
उन्होंने कहा, ‘यह कम से कम एक सहयोगी का व्यवहार नहीं है. न ही यह किसी भी अर्थ में एक लोकतांत्रिक देश का व्यवहार है.’ उन्होंने कहा कि भारत सरकार के कार्य, अपने देश में और विदेश में, तानाशाही वाले हैं.