जम्मू कश्मीर: उमर अब्दुल्ला ने पहली कैबिनेट बैठक में राज्य के दर्जे की मांग को लेकर प्रस्ताव पारित किया

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए पारित प्रस्ताव का विरोध करते हुए विपक्ष ने कहा है कि अनुच्छेद 370 के लिए प्रस्ताव पारित न कर केवल राज्य के दर्जे की मांग तक सिमट जाना बड़ी नाकामयाबी है, वो भी तब जब 370 के नाम पर वोट मांगा गया था.

उमर अब्दुल्ला प्रस्ताव की प्रति पर हस्ताक्षर करते हुए (फोटो : एक्स /@diprjk)

नई दिल्लीः जम्मू-कश्मीर के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) सरकार ने गुरुवार (17 अक्टूबर) को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने का आग्रह किया है.  

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बताया गया है कि उमर अब्दुल्ला नई दिल्ली जाकर इस प्रस्ताव का मसौदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौपेंगें. 

उधर, सूबे के एक अन्य दल पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने विधानसभा के बजाय कैबिनेट के माध्यम से इस प्रस्ताव को पारित करने के एनसी और कांग्रेस की सरकार के फैसले पर सवाल उठाया. उनका मानना ​​है कि ऐसे मुद्दों को पारित करने के लिए विधानसभा उचित जगह है. 

सज्जाद लोन ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, ‘कैबिनेट शासन की एक बहुसंख्यकवादी संस्था है. यह जम्मू-कश्मीर के सभी लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित नहीं करता है. जहां तक ​​मेरी जानकारी है, पूरे देश में राज्य का दर्जा या अनुच्छेद 370 जैसे प्रमुख मुद्दों को संबोधित करने के लिए विधानसभा ही उचित संस्था है.’ 

लोन ने आगे कहा, ‘जब एनसी सरकार ने स्वायत्तता पर एक प्रस्ताव पारित किया था तो उन्होंने इसे कैबिनेट प्रस्ताव के माध्यम से नहीं बल्कि विधानसभा में पारित किया था. अब क्या बदल गया है ? यह समझ में नहीं आ रहा कि यह प्रस्ताव विधानसभा के लिए आरक्षित क्यों नहीं किया जाना चाहिए था ? यह देखना अच्छा होता कि विधानसभा में पेश होने पर भाजपा और अन्य दल राज्य के दर्जे और अनुच्छेद 370 के प्रस्ताव पर किस तरह से मतदान करते.’ 

विपक्षी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के विधायक वहीद पारा ने भी राज्य के दर्जे पर उमर अब्दुल्ला के प्रस्ताव की आलोचना करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर कहा, ‘राज्य के दर्जे के लिए प्रस्ताव 5 अगस्त 2019 को लिए गए फैसले का सुधार मात्र है. अनुच्छेद 370 के लिए प्रस्ताव पारित करना, और राज्य के दर्जे की मांग तक सिमटकर रह जाना बड़ी नाकामयाबी है, ख़ासकर तब जब 370 के नाम पर वोट मांगा गया.’ 

गौरतलब है कि गुरुवार (17 अक्टूबर) को ही सुप्रीम कोर्ट में समयबद्ध तरीके से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली एक याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए पेश किया गया. शीर्ष अदालत इस मामले पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई है. 

आवेदकों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता, गोपाल शंकरनारायणन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया. 

इससे पहले 11 दिसंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था. हालांकि, शीर्ष अदालत ने सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में  विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया और इस बात पर जोर दिया था कि राज्य का दर्जा जितनी जल्दी हो सके बहाल किया जाना चाहिए. 

भारत के चुनाव आयोग द्वारा जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा किए जाने के बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा, क्षेत्र को राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने को प्राथमिकता देगी.