जम्मू: सरकारी नौकरियों में यूपी, एमपी के उम्मीदवार शॉर्टलिस्ट होने से स्थानीय लोगों में आक्रोश

जम्मू के हथकरघा और हस्तशिल्प निदेशालय द्वारा दो पदों के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दो उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किए जाने को लेकर स्थानीय निवासी नाराज़ हैं. उनका कहना है कि जब सूबे में बेरोज़गारी चरम पर है तो दूसरे राज्यों के लोगों को नौकरियां क्यों दी जा रही हैं.

प्रतीकात्मक फोटो. जम्मू का रघुनाथ बाज़ार. (फोटो साभार: कंवल सिंह)

श्रीनगर: जम्मू को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ माना जाता है. लेकिन हाल ही में जम्मू के हथकरघा और हस्तशिल्प निदेशालय द्वारा ‘क्लस्टर डेवलपमेंट एक्जीक्यूटिव’ और ‘टेक्सटाइल डिजाइनर’ के पदों के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दो उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्टिंग से स्थानीय लोगों में नाराज़गी देखने को मिल रही है.

मालूम हो कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों के लिए यूपी और एमपी से उम्मीदवारों के चयन का रास्ता साफ हो गया है.

हालांकि, यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है, जब केंद्र शासित प्रदेश देश में सबसे अधिक बेरोजगारी दर से जूझ रहा है.

सोशल मीडिया पर प्रसारित उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि का खुलासा करने वाले एक सरकारी नोटिस के बाद जम्मू स्थित कई सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने जम्मू में नौकरियों के लिए ‘बाहरी लोगों’ के शॉर्टलिस्ट होने को स्थानीय लोगों की आजीविका पर हमला बताया है.

मंगलवार (15 अक्टूबर) को जारी नोटिस में हथकरघा, जम्मू के संयुक्त निदेशक ने कहा कि कठुआ के बसोहली पश्मीना क्लस्टर में ‘क्लस्टर डेवलपमेंट एक्जीक्यूटिव’ के एक पद के लिए छह उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया है. नोटिस में शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों को आधिकारिक चयन समिति के समक्ष साक्षात्कार के लिए उपस्थित होने के लिए कहा गया है.

नोटिस में कहा गया है कि साक्षात्कार 22 अक्टूबर को सुबह 11:30 बजे जम्मू के पनामा चौक में हथकरघा और हस्तशिल्प निदेशालय में आयोजित होने वाले हैं.

जम्मू क्षेत्र में गुस्से का कारण ये है कि छह शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों में से एक मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के पदाना सारंगपुर गांव का रहने वाला है, जबकि दूसरा उत्तर प्रदेश के बहराईच जिले के बंभुरा गांव का निवासी है.

बाकी चार उम्मीदवार जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले से हैं.

संयुक्त निदेशक द्वारा उसी तारीख को एक दूसरे नोटिस में ‘टेक्सटाइल डिजाइनर’ पद के लिए चुने गए छह उम्मीदवारों को भी उसी समय और तारीख पर चयन समिति के समक्ष साक्षात्कार के लिए उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया गया है.

‘टेक्सटाइल डिजाइनर’ पद के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए छह उम्मीदवारों में से, उत्तर प्रदेश के उम्मीदवार, जो ‘क्लस्टर डेवलपमेंट एक्जीक्यूटिव’ के लिए शॉर्टलिस्ट में भी शामिल हैं, ने भी इस दूसरी सूची में जगह बनाई है, जबकि शेष पांच उम्मीदवार सांबा और जम्मू क्षेत्र के कठुआ जिले से हैं.

गौरतलब है कि इन दोनों सूचियों ने जम्मू के स्थानीय निवासियों में आक्रोश पैदा कर दिया है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ-साथ हिंदू-बहुल क्षेत्र के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर रोजगार के मुद्दे पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया, वो भी ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर उच्च बेरोजगारी से जूझ रहा है.

यूथ पीडीपी के राज्य उपाध्यक्ष आदित्य गुप्ता ने कहा कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर के दरवाजे बाहरी लोगों के लिए खोल दिए हैं, ताकि स्थानीय लोगों के लिए जो नौकरियां थीं, उन्हें छीन लिया जाए.

आदित्य गुप्ता, जो पेशे से एक वकील भी हैं, ने आगे कहा, ‘भाजपा डोगरा मुख्यमंत्री के खोखले वादों से जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रही है. भूमि अधिकारों और नौकरियों की सुरक्षा अनुच्छेद 370 के केंद्र में थी, जिसने जम्मू के भविष्य की रक्षा की. अब, हम अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं.’

जम्मू के एक युवा एनसी नेता रोहित चौधरी ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘अनुच्छेद 370 नौकरियों और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है! जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी चरम पर है, फिर नौकरियां यूपी, एमपी के लोगों को क्यों दी जा रही हैं? ये बंद होना चाहिए!’

जम्मू में डोगराओं के मुद्दों पर बोलने वाली लेखिका मनु खजूरिया कहती हैं कि वह जम्मू की संस्कृति और विरासत से जुड़ी दो नौकरियों के लिए आवश्यक योग्यताओं के बारे में निश्चित नहीं है.

मनु जम्मू को राज्य का दर्जा देने के समर्थक हैं. वे आगे कहती हैं, ‘जब जम्मू के बाहर के अधिकांश लोगों के लिए इसके 10 जिलों का नाम बताना भी मुश्किल है, तो उनसे इस क्षेत्र की अंतर्निहित कला के साथ न्याय करने की उम्मीद कैसे की जाती है. हितधारकों को स्थानीय रहने दें. यह इस क्षेत्र की जरूरत है.’

ज्ञात हो कि हिंदू-बहुसंख्यक जम्मू क्षेत्र ने अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के कदम का बड़े पैमाने पर समर्थन किया था. इस अनुच्छेद के चलते जम्मू-कश्मीर के निवासियों को भूमि और सरकारी नौकरियों का विशेष अधिकार प्राप्त था. इसे लेकर भाजपा समर्थक समूहों द्वारा ये प्रचार किया गया कि कई जम्मू निवासी एक डोगरा मुख्यमंत्री को मुस्लिम बहुल क्षेत्र पर शासन करते हुए देखने के लिए उत्सुक हैं.

इसका असर हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला. कठुआ, सांबा, उधमपुर और जम्मू के हिंदू बेल्ट में मतदाताओं ने मुख्य रूप से भाजपा को वोट दिया, जिसने सत्ता में आने पर केंद्र शासित प्रदेश की आर्थिक गति को वापस पटरी पर लाने का वादा किया था.

भाजपा समर्थकों पर कटाक्ष करते हुए, जम्मू के एक लोकप्रिय एक्स अकाउंट गुलविंदर सिंह ने पोस्ट किया, ‘डोगरा सीएम बाद में लेना, पहले डोगरा नौकरियां बचा लो!’

उल्लेखनीय है कि पिछले महीने बेरोज़गारी के मुद्दे पर कांग्रेस ने भी भाजपा सरकार के साथ-साथ उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन पर निशाना साधा था और दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर में 25 लाख से अधिक युवा बेरोज़गार हैं.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक डॉली शर्मा ने आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर की 28.2% की बेरोज़गारी दर देशभर भाजपा शासन के तहत देश में दूसरी सबसे ज्यादा बेरोज़गारी दर है.

डॉली शर्मा ने संवाददाताओं से कहा था, ‘भाजपा रोजगार पर झूठे दावे कर रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि जम्मू-कश्मीर में पिछले 45 वर्षों में सबसे अधिक बेरोज़गारी है.’

जम्मू-कश्मीर के रोज़गार निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, इस साल के पहले तीन महीनों में 3.52 लाख बेरोज़गार युवाओं ने विभाग में पंजीकरण कराया है, जिनमें से 1.09 लाख युवाओं के पास स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री है.

हालांकि, सरकार द्वारा जारी आधिकारिक डेटा जम्मू-कश्मीर में बेरोज़गारी के मुद्दे का खंडन करता है. जम्मू-कश्मीर आर्थिक सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश में बेरोज़गारी 2019-20 में 6.7% से घटकर 2021-22 में 5.2% रह गई है.

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