सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को मनमानी पूछताछ और गिरफ़्तारी प्रक्रिया के लिए फटकार लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को फटकारते हुए कहा कि जिस तरह से मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में लोगों को परेशान किया जा रहा है, वो ठीक नहीं है. किसी भी आरोपी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए.

(फोटो साभार: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 अक्टूबर) को एक मामले की सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की गिरफ्तारी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कड़ी फटकार लगाई है.

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, ईडी द्वारा कम समय की सूचना पर लोगों को बुलाने से लेकर उन्हें रात भर जगाए रखने और फिर अगले दिन गिरफ्तार करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात भी कही है.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें इस साल छत्तीसगढ़ शराब घोटाले के सिलसिले में ईडी ने गिरफ्तार किया था.

इस संबंध में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पूर्व आईएएस अधिकारी को जल्दबाजी में समन जारी करने और गिरफ्तार करने पर नाराजगी जताते हुए अदालत ने कहा कि आतंकवादी और जघन्य अपराधियों के साथ भी ऐसा सलूक नहीं किया जाता है. इस तरीके के व्यवहार से एजेंसी की ओर से अपनाई जा रही गिरफ्तारी और पूछताछ की प्रक्रिया के असंवैधानिक होने का संदेह पैदा हो गया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21  का हवाला देते हुए कहा कि इसमें नागरिकों को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. ऐसे में ईडी के ये कृत्य अक्षम्य है और ऐसा बिल्कुल नहीं किया जाता कि आप किसी व्यक्ति से रात भर पूछताछ करें और अगले दिन उसे हिरासत में ले लें.

कोर्ट ने आगे जांच एजेंसी से कहा कि जिस तरह से मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में लोगों को परेशान किया जा रहा है, वो ठीक नहीं है. किसी भी आरोपी के साथ उसके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए.

ज्ञात हो कि अनिल टुटेजा 61 वर्षीय सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं और उनकी गिरफ्तारी आयकर विभाग की जांच के आधार पर अभियोजन शिकायत (चार्जशीट) को शीर्ष अदालत द्वारा खारिज करने के कुछ दिनों के भीतर हुई है.

अखबार के अनुसार, टुटेजा 20 अप्रैल को राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) गए थे, जहां वे इसी मामले के संबंध में पूछताछ के लिए उपस्थित हुए थे. उनके एसीबी कार्यालय में रहते ही दोपहर 12:30 बजे उन्हें पहला ईडी समन मिला, जिसके तहत उन्हें दोपहर 12 बजे ईडी अधिकारियों के सामने पेश होने को कहा गया. इसके थोड़ी देर बाद ही उसी शाम उन्हें पेश होने के लिए दूसरा समन जारी किया गया और ईडी अधिकारियों का एक दल उन्हें सीधे एसीबी कार्यालय से ले गया, जहां रात भर उनसे पूछताछ की गई और 21 अप्रैल को दिन निकलने के बाद गिरफ्तार कर लिया.

इस पर अदालत ने कहा, ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आतंकवादियों और गंभीर अपराधियों के साथ ऐसा नहीं होता है. देखिए अधिकारी ने किस तरह अन्यायपूर्ण तरीके से काम किया है. हम चाहते हैं कि अधिकारी हमारे सामने पेश हों’

टुटेजा, जो फिलहाल में जेल में है, ने यह तर्क देते हुए अंतरिम रिहाई की मांग की है कि उसकी गिरफ्तारी अवैध थी.

अनिल टुटेजा की ओर से वकील अर्शदीप खुराना के साथ वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए थे, जिन्होंंने अदालत से कहा कि आर नरेश नाम का वह अधिकारी था, जो उन्हें एसीबी कार्यालय से ले गया और रात भर उनसे पूछताछ की.

सिंघवी ने कहा कि इस मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि यह तब हुआ जब इस अदालत ने ईडी द्वारा दायर पिछली अभियोजन शिकायत को रद्द कर दिया था. वह अदालत के सुरक्षात्मक आदेश के तहत एसीबी के समक्ष पेश हुए थे.

पीठ ने इस मामले पर ईडी से विस्तृत जवाब दाखिल कर, समन का समय बताने के साथ ही उस सूत्र के बारे में भी जानकारी मांगी है, जिसने एजेंसी को टुटेजा के एसीबी कार्यालय में होने की बात बताई थी.

पीठ ने टुटेजा की जल्दबाज़ी में गिरफ्तारी को लेकर भी सवाल उठाया. अदालत ने कहा, ‘इस मामले में कुछ अलग है. जब आप जानते थे कि एसीबी उनसे पूछताछ कर रही है तो इतनी जल्दी क्या थी. अब हम इन अधिकारियों पर कार्रवाई करने जा रहे हैं और ऐसी गिरफ्तारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे.’

इस पर एजेंसी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने स्वीकार किया कि यह संबंधित अधिकारी के अतिउत्साह के कारण हो सकता है. उन्होंने बताया कि संबंधित अधिकारी नरेश ने इस्तीफा दे दिया है.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने ये भी बताया कि ईडी द्वारा प्रक्रिया में सुधार के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. राजू ने कहा कि अधिकारी की गलती से किसी गंभीर अपराधी को बचने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए. अदालत ने कहा कि टुटेजा ने कोई जमानत याचिका दायर नहीं की है, सिर्फ अपनी गिरफ्तारी को रद्द करने के लिए अदालत से संपर्क किया है.

पीठ ने सिंघवी को सुझाव दिया कि पहले जमानत पर विचार किया जा सकता है, क्योंकि गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका पर विचार करने में समय लग सकता है. सिंघवी ने रेखांकित किया कि वह पहले ही 181 दिनों तक हिरासत में रह चुके हैं और यदि उनकी गिरफ्तारी रद्द कर दी जाती है, तो उन्हें जमानत की आवश्यकता नहीं होगी.

पीठ सुनवाई की अगली तारीख पर गिरफ्तारी की वैधता तय करने पर सहमत हुई. अदालत इस मामले में अब 5 नवंबर को सुनवाई करेगी.