जम्मू कश्मीर: उपराज्यपाल द्वारा पांच विधायकों के नामांकन पर रोक लगाने से हाईकोर्ट का इनकार

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल याचिका में कहा गया था कि उपराज्यपाल को विधानसभा सदस्यों को नामित करने का अधिकार देने वाले मौजूदा प्रावधान संविधान की मूल भावना और संरचना के ख़िलाफ़ हैं. उन्हें यह नामांकन करने से पहले मंत्रिपरिषद से सलाह लेनी चाहिए.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने सोमवार (21 अक्टूबर) को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की ओर से पांच विधायक नामित करने के मामले से संबंधित जनहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस राजेश सेखरी की खंडपीठ ने मामले पर फैसला आने तक विधायकों के नामांकन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

मालूम हो कि चुनावी नतीजों से पहले, जम्मू-कश्मीर में गैर-भाजपाई दलों ने विधानसभा में उपराज्यपाल द्वारा पांच विधायकों को नामित करने के फैसले का विरोध किया था.

इन पांच सदस्यों के नामांकन के साथ अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 95 हो गई है, जिससे बहुमत का आंकड़ा 46 से बढ़कर 48 हो गया है. सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) गठबंधन की सरकार के पास चार निर्दलीय विधायकों और एकमात्र आप विधायक का समर्थन है, जिससे फिलहाल सदन में उनके पक्ष में 50 विधायकों की संख्या है.

ज्ञात हो कि इस मामले में भले ही अदालत ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है, लेकिन परिस्थितियों में बदलाव की स्थिति में हाईकोर्ट दोबारा आने का रास्ता भी खोल दिया है.

इस संबंध में हाईकोर्ट ने कहा, ‘इस तथ्य को देखते हुए कि सरकार का गठन हो चुका है, अंतरिम राहत प्रदान करने की कोई तत्काल आवश्यकता नहीं है. इस स्तर पर अंतरिम राहत के लिए याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना को अस्वीकार किया जाता है. यदि परिस्थितियों में कोई बदलाव होता है, तो पक्षकार अंतरिम राहत के लिए इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र होंगे.’

अब ये मामला आगामी पांच दिसंबर को बहस के लिए सूचीबद्ध किया गया है.

गौरतलब है कि इस मामले में याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता रविंदर शर्मा हैं, जिनकी ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इन पांचों विधायकों के नामांकन पर रोक लगाने की दलीलें पेश कीं, जबकि केंद्र की ओर से पैरवी कर रहे डिप्टी सॉलिसिटर जनरल विशाल शर्मा के साथ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया.

अदालत के समक्ष दाखिल याचिका में कहा गया था कि उपराज्यपाल को सदस्यों को नामित करने का अधिकार देने वाले मौजूदा प्रावधान संविधान की मूल भावना और संरचना के खिलाफ हैं. याचिका में दलील दी गई है कि उपराज्यपाल को ये नामांकन करने से पहले मंत्रिपरिषद से सलाह लेनी चाहिए थी.

उन्होंने इससे पहले जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम- 2019 की धारा 15, 15 ए और 15बी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इसके जरिए ही एलजी को विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने का अधिकार मिला है.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को पहले उच्च न्यायालय जाने का निर्देश दिया था.