भारत-चीन सीमा विवाद: संसदीय समिति ने विदेश सचिव से पूछा- समझौते पर संयुक्त बयान क्यों नहीं?

बीते दिनों भारत के विदेश सचिव ने भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर जारी विवाद में समझौता होने की बात कही थी, जिस पर विदेश मामलों की संसदीय समिति की बैठक में विदेश सचिव से पूछा गया कि दोनों देशों की तरफ से समझौते को लेकर संयुक्त बयान सामने क्यों नहीं आया है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के सदस्यों ने शुक्रवार (25 अक्टूबर) को विदेश सचिव विक्रम मिस्री से सवाल किया कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ‘सेना पीछे हटाने’ पर भारत और चीन की ओर से कोई संयुक्त बयान क्यों नहीं आया, जिसकी घोषणा भारत सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में की थी. समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर हैं.

बता दें कि मंगलवार (22 अक्टूबर) को एक मीडिया ब्रीफिंग में मिस्री न कहा था कि एलएसी पर ‘गश्त व्यवस्था’ को लेकर एक समझौता हुआ है. उन्होंने कहा था, ‘पिछले कई हफ्तों से भारतीय और चीनी राजनयिक और सैन्य वार्ताकार विभिन्न मंचों पर एक-दूसरे के निकट संपर्क में हैं. इन वार्ताओं के परिणामस्वरूप भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त व्यवस्था को लेकर एक समझौता हुआ है, जिससे 2020 में इन क्षेत्रों में उत्पन्न हुए मुद्दों का समाधान हो गया है और हम इस पर अगले कदम उठा रहे हैं.’

द हिंदू के मुताबिक, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बाद में इस समझौते का श्रेय संवाद की शक्ति को दिया था, और सूत्रों ने पुष्टि की है कि एलएसी पर दो विवादित बिंदुओं पर सेनाओं का पीछे हटना शुरू हो गया है.

हालांकि, भारत और चीन की सरकारों ने इस तरह के किसी समझौते पर कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया है, जिससे सांसदों के मन में सवाल उठ रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार,मिस्री ने संसदीय समिति के सदस्यों को जवाब देते हुए कहा कि ऐसी स्थितियों में अक्सर संयुक्त बयान नहीं दिए जाते, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दोनों सरकारें समझौते के लिए प्रतिबद्ध हैं.

इस संबंध में द वायर हिंदी से साक्षात्कार में सुरक्षा विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी का कहते हैं, ‘ये अभी बातचीत है, जब तक लिखित समझौता सामने नहीं आएगा तब तक कोई निश्चितता नहीं होगी. खाली कहने से काम नहीं बनेगा.’

वह आगे कहते हैं, ‘समझौता लिखित होता है, लेकिन ये लिखित समझौता नहीं है. ऐसा कहा गया है कि बातचीत हुई है और बातचीत में समझौता हो गया है और भविष्य में ये समझौता हमारे सामने पेश किया जाएगा. मैं इसे उस तरह से समझौता नहीं मानता हूं जैसे कि 1993, 1996, 2005 या 2012 के समझौते थे, जो कि लिखित थे. यहां ऐसा अभी तक कुछ नजर नहीं आया है. इसके बारे में बहुत कम सूचना दी गई है.’

बहरहाल, संसदीय समिति की बैठक वाले दिन समिति का एजेंडा इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष था, लेकिन सदस्य चीन पर सवाल पूछने के लिए उत्सुक थे. ऐसा पता चला है कि मिस्री ने इजरायल-फिलिस्तीन विषय पर भी विस्तार से बात की.

इस दौरान सदस्यों ने मिस्री से फिलिस्तीन पर भारत के रुख को स्पष्ट करने के लिए कहा, विशेष तौर पर संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन समर्थक प्रस्तावों पर एक दर्जन से अधिक बार भारत की अनुपस्थिति को लेकर.उनसे भारत द्वारा इजरायल को हथियारों के निर्यात के बारे में भी जानकारी मांगी गई. सूत्रों के अनुसार, एक सदस्य ने टिप्पणी की कि हथियारों का निर्यात गाजा में रक्तपात में भारत के अप्रत्यक्ष योगदान को दर्शाता है. मिश्री ने कथित तौर पर यह कहते हुए जवाब दिया कि भारतीय कंपनियों का इजराइल के हथियार निर्माताओं के साथ संयुक्त उद्यम है, और भारत केवल हथियार के पुर्जों की आपूर्ति करता है.

एक भाजपा सांसद ने विदेश सचिव से इजरायल और फिलिस्तीन में भारत के आर्थिक हितों का तुलनात्मक विवरण देने को भी कहा. इजरायल में 30,000 भारतीय रहते हैं और मिस्री ने समिति को बताया कि संघर्ष शुरू होने के बाद से पिछले वर्ष में लगभग 9,000 भारतीय निर्माण श्रमिक और 700 कृषि श्रमिक इजरायल गए हैं.

दो घंटे की बैठक के दौरान, सदस्य मौजूदा भारत-कनाडा तनाव और चीन पर और सवाल पूछना चाहते थे. द हिंदू ने बताया है कि समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने एक और बैठक आयोजित करने पर सहमति जताई है, जहां इन सवालों पर विचार किया जा सकता है.

बैठक के अंत में एक्स पर एक पोस्ट में थरूर ने कहा कि बैठक अच्छी रही और प्रश्नोत्तर का सत्र काफी विस्तृत था, जिसमें मौजूदा विवाद (इजरायल-फिलिस्तीन) के सभी पहलुओं को शामिल किया गया.