भारत-कनाडा विवाद: विश्वगुरु का सपना दक्षिणपंथी नारेबाज़ी की गिरफ़्त में

पिछले बरस जून में कनाडा में ख़ालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई थी. यह उस वक़्त हुई अकेली ऐसी घटना नहीं थी. 45 दिनों के अंतराल में तीन अलग-अलग देशों में तीन ख़ालिस्तानी नेताओं की मौत हुई थी. इस दौरान, भारतीय दक्षिणपंथ ने इन हत्याओं का जश्न मनाना शुरू कर दिया था.

इन दिनों भारत का अमेरिका और कनाडा के साथ खालिस्तानी मुद्दे को लेकर गहरा विवाद चल रहा है. यह आरोप है कि भारत अपने देश से बाहर रह रहे खालिस्तानी नेताओं की हत्या की साजिश रच रहा है.

यह मुद्दा थोड़ा पेचीदा है. इसे समझने के लिए हम थोड़ा पीछे जाते हैं, जब पिछले बरस जून में कनाडा में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई थी. गौर करें, यह उस वक्त हुई अकेली ऐसी घटना नहीं थी.

45 दिनों के अंतराल में तीन खालिस्तानी नेताओं की मौत हुई थी. जून 2023 में हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या हुई, मई 2023 में परमजीत सिंह की लाहौर में हत्या हुई और जून 2023 में ही अवतार सिंह की मौत इंग्लैंड के एक अस्पताल में हुई.

निज्जर की हत्या के कुछ समय तक कनाडा सरकार ने भारत को जिम्मेदार नहीं ठहराया था, लेकिन इस हत्या के तुरंत बाद कनाडा में यह अफ़वाहें उड़ने लगी थीं कि इनके पीछे भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों का हाथ है.

इस हत्या के 15 दिन के भीतर यह पोस्टर कनाडा के हिंदू मंदिरों पर लग चुके थे जिनमें लिखा था कि भारतीय दूतावास के उच्चाधिकारी इस हत्या के लिए जिम्मेदार हैं. भारत ने कनाडा में अपने उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा को हाल ही में वापस बुलाया है, लेकिन इन पोस्टर पर उनका नाम करीब 15 महीने पहले यानी पिछली जुलाई में ही आ चुका था.

यानी कनाडा का एक वर्ग भारत के ऊपर शक करने लगा था.

गौर करें, ठीक इसी वक्त भारतीय दक्षिणपंथ ने इन हत्याओं का जश्न मनाना शुरू कर दिया था. ये लोग अनाम ट्रोल नहीं थे, बल्कि अध्येता और इतिहासकार हैं, जिनके बायोडाटा में ऑक्सफ़ोर्ड और कोलंबिया इत्यादि से प्राप्त डिग्री जुड़ी हुई हैं. भारतीय सत्ता से जुड़े ये लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे थे कि भारत विरोधियों को निबटा दिया गया है, और अब बाकी लोगों की भी बारी है.

यानी भारत में यह माहौल बनाया जा रहा था कि ये हत्याएं भारत की सफल विदेश नीति का प्रतीक हैं, भारत की बढ़ती शक्ति का सूचक हैं. और इस रास्ते पर चलकर बहुत जल्द भारत विश्वगुरु बन जाएगा.

स्थिति लेकिन बिगड़ गई और सितंबर 2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमंस में यह घोषणा कर तहलका मचा दिया कि कनाडा की एजेंसियां हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार की संभावित भूमिका की पड़ताल कर रही हैं. गौर करें, जस्टिन ट्रूडो ने यह नहीं कहा था कि भारत का इसमें हाथ है, बल्कि यह कहा था कि कनाडाई सुरक्षा एजेंसियां ​​भारत सरकार के एजेंटों और हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बीच संभावित संबंध के विश्वसनीय आरोपों की सक्रियता से जांच कर रही हैं.

इन शब्दों पर हमें थोड़ा ठहर कर गौर करना चाहिए. एक लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री अपनी संसद में यह नहीं कह रहा है कि एक अन्य लोकतांत्रिक देश यानी भारत के खिलाफ़ उनके पास प्रमाण हैं, बल्कि सिर्फ़ इतना कहा कि उस देश के खिलाफ़ उनकी एजेंसियां जांच कर रही हैं.

गौर यह भी करें कि पिछले हफ़्ते ट्रूडो ने एक अन्य आयोग के समक्ष फिर से यह दोहराया कि जब पिछले बरस उन्होंने यह आरोप लगाए थे, उनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं था, सिर्फ़ उनकी खुफिया एजेंसियों द्वारा दिए कुछ इनपुट थे. कनाडा के प्रधानमंत्री पर बहुत गहरा प्रश्न बनता है कि क्या बगैर ठोस प्रमाण के उन्हें अपनी संसद के सामने भारत पर आरोप लगाने चाहिए थे? क्या वे भारत-कनाडा संबंधों को बिगाड़ने के जिम्मेदार नहीं हैं?

यहां कहानी एक नया मोड़ लेती है. क्योंकि ठीक जिस वक्त निज्जर की हत्या कनाडा में हुई, उसी जून के महीने में चेक रिपब्लिक ने निखिल गुप्ता नामक एक भारतीय नागरिक को अमेरिकी खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में गिरफ्तार कर लिया.

बहुत जल्द यह कयास लगाए जाते हैं कि कनाडा में निज्जर की हत्या और अमेरिका में पन्नू की हत्या की साजिश में क्या कोई संबंध है?

नवंबर 2023 में अमेरिका पन्नू की हत्या की साजिश में एक अभियोग जारी करता है और आरोप लगाता है कि निखिल गुप्ता किसी भारतीय के कहने पर यह कार्य कर रहा था. अमेरिकी न्याय विभाग इस भारतीय को एक कोड वर्ड देते हैं, सीसी1 यानी सह-अभियुक्त 1.

यह चीज़ें चलती रहती हैं. तमाम तरह के कयास दोनों तरफ़ से लगते रहते हैं. तभी इस महीने एक झटके से विस्फोट होता है. कनाडा सरकार कहती है कि भारतीय दूतावास के कुछ वरिष्ठ अधिकारी निज्जर हत्याकांड में शामिल थे. कनाडा कहता है कि वह लंबे समय से भारत की इस केस में संलिप्तता के प्रमाण भारत को देता आ रहा है, लेकिन भारत सहयोग नहीं कर रहा. भारत इस आरोप को नकारता है, अपने वरिष्ठ राजनयिक कनाडा से बुला लेता है और कनाडा के राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश देता है.

इस बीच, अमेरिका से भी ख़बरें आने लगती हैं. वाशिंगटन पोस्ट की एक खबर निज्जर हत्याकांड से भारतीय गृहमंत्री अमित शाह का नाम जोड़ देती है. और फिर अमेरिका एक बड़ा धमाका करता है. पन्नू की हत्या के साजिश के सिलसिले में दूसरा अभियोग जारी करता है. यह अभियोग कहता है कि सीसी-1 विकास यादव हैं जो पहले सीआरपीएफ में थे, और उसके बाद रॉ के एजेंट हो गए. रॉ यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत आती है. इस तरह प्रधानमंत्री कार्यालय का ज़िक्र अमेरिका के अभियोग में आ जाता है.

अमेरिका विकास यादव और निखिल गुप्ता के बीच हुए वार्तालाप को जारी कर देता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि निज्जर और पन्नू के केस के तार जुड़े हुए हैं. अमेरिका के अभियोग के अनुसार निज्जर और पन्नू के केस में विकास यादव की प्रमुख भूमिका है?

अब घड़ी की सुइयां एक झटके से विकास यादव नामक इंसान पर घूम जाती हैं. कौन हैं विकास यादव? अगर यह आरोप सच हैं तो विकास प्रधानमंत्री कार्यालय में किस अधिकारी के आदेश पर काम कर रहे थे? या वे यह काम खुद कर रहे थे?

इस बीच दो चीजें और उभरकर आती हैं. अमेरिका द्वारा पिछले बरस पहला अभियोग जारी करने के कुछ सप्ताह बाद विकास यादव को दिल्ली पुलिस ने एक व्यापारी के अपहरण और उनसे जबरन फिरौती के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था. वे कुछ महीने तिहाड़ में रहे और इस बरस उनकी अप्रैल में रिहाई हो गई.

और जब यह अटकलें लगाईं जा रही हैं कि विकास यादव कहां हैं, जीवित भी हैं या नहीं, द वायर हिंदी की टीम हरियाणा में उनके गांव जाती है और पाती है कि विकास अपने परिवार से नियमित संपर्क में हैं. अमेरिकी अभियोग में नाम आने के तुरंत बाद उन्होंने अपने परिवार को फोन कर कहा था कि आप चिंता न करें, मैं एकदम सुरक्षित हूं. यहां तक कि जिस समय वे कथित तौर पर तिहाड़ में बंद थे, उस वक्त भी वे लगातार अपने परिवार के संपर्क में थे.

इस बिंदु पर कुछ प्रश्न उभरते हैं. पहला प्रश्न अमेरिका पर है. अमेरिका दुनिया भर में ऑपरेशन के तहत उन तमाम लोगों की हत्या करवाता रहा जिन्हें यह अपने लिए खतरा मानता है, इनमें से तमाम लोग एकदम निर्दोष होते हैं. ऐसे में अमेरिका भारत के ऊपर कैसे ऊंगली उठा सकता है, खासकर निज्जर और पन्नू जैसे लोगों को लेकर जिन्हें भारत ने आतंकवादी घोषित किया है?

दूसरा प्रश्न भारत पर है. अगर अमेरिका और कनाडा के आरोप मान लिए जाएं, क्या भारत को अपनी ऊर्जा और संसाधन उन खालिस्तानी नेताओं पर खर्च करनी चाहिए जिनका भारत में न कोई वजूद है और न कोई नाम? भारत में खालिस्तान की आंच को बुझे दो दशक से अधिक हो गया. क्या अभी भी भारत को अमेरिका और कनाडा में रह रहे कुछ सिख नेताओं की फ़िक्र करनी चाहिए?

तीसरा प्रश्न, भारत ने कनाडा के आरोपों को ख़ारिज कर दिया है, लेकिन अमेरिका के साथ जांच में पूरी तरह सहयोग कर रहा है. शुरुआत में यह कहा जा रहा था कि ऐसा इसलिए है कि अमेरिका ने पन्नू के केस को कहीं संवेदनशीलता से बरता है. लेकिन जब अमेरिका का न्याय विभाग विकास यादव का संबंध शीर्षस्थ भारतीय अधिकारीयों से जोड़ रहा है, भारत को विकास यादव पर रुख स्पष्ट करना होगा.

चौथा प्रश्न, भारतीय गृहमंत्री का नाम पहली बार नहीं आया है. जून में कनाडा की एक पत्रकार ने कनाडा की विदेश मंत्री से पूछा था कि क्या इस पूरे प्रकरण में अमित शाह की कोई भूमिका है? भारत को ठीक उस वक्त इसका संज्ञान लेना चाहिए था.

अंतिम और शायद सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न, वे कई सारे लोग जो कनाडा के आरोपों को आज नकार रहे हैं, दरअसल वही हैं जो पिछले साल निज्जर की हत्या का जश्न मना रहे थे, इसे भारत की सफलता मान रहे थे. गौर करें, खुद प्रधानमंत्री अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि ‘यह नया भारत है, घर में घुस कर मारता है.’

भारतीय सत्ता को यह जवाब देना होगा कि उसने इतने संवेदनशील मुद्दे को सोशल मीडिया पर क्यों आने दिया है? भारत के सत्ताधारी अपने चुनावी भाषणों में आखिर ऐसे भड़काऊ वक्तव्य क्यों दे रहे हैं जो भारत की कूटनीतिक छवि धूमिल करते हैं और विदेशों में कार्यरत भारतीय अधिकारियों को संकट में डालते हैं? भारतीय विदेश नीति दक्षिणपंथी नारों की गिरफ़्त में आखिर क्यों आ गई है?