भारत-चीन सीमा विवाद: भारत के बाद चीन ने भी एलएसी से सैनिकों की वापसी की पुष्टि की

चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि सीमा संबंधी मुद्दों पर चीन और भारत के बीच हाल ही में हुए समाधानों के अनुसार चीनी और भारतीय सैनिक इस काम में लगे हुए हैं. इस बीच, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दोनों देशों के बीच संबंधों के सामान्य होने में कुछ और समय लगने की बात कही है.

(फोटो: पब्लिक डोमेन)

नई दिल्ली: भारत और चीन, लद्दाख में सीमा विवाद सुलझाने में लगे हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, देपसांग मैदानों और डेमचोक में मंगलवार (22 अक्टूबर) से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है. चीन ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि ‘चीनी और सीमा पर तैनात भारतीय सैनिक इस काम में लगे हुए हैं, जो फिलहाल सुचारू रूप से चल रहा है.’

भारतीय सेना की ओर से भी शुक्रवार (25 अक्टूबर) को इसकी पुष्टि की गई थी. चार दिन पहले भारत ने घोषणा की थी कि दोनों पक्षों के बीच सीमा पर गश्त को लेकर समझौता हो गया है.

चीन ने क्या कहा है?

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने शुक्रवार को बीजिंग में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, ‘सीमा क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर चीन और भारत के बीच हाल ही में हुए समाधानों के अनुसार, चीनी और भारतीय सैनिक इस काम में लगे हुए हैं, जो फ़िलहाल सुचारू रूप से चल रहा है.’

इंडियन एक्सप्रेस ने सेना के सूत्रों के हवाले से कहा था, यह प्रक्रिया 28-29 अक्टूबर तक पूरी हो जाने की संभावना है. हालांकि, उन्होंने इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति और मौसम की स्थिति को देखते हुए यह भी कहा था कि कोई सख्त समयसीमा तय नहीं की जा सकती है.

विदेश मंत्री ने कहा- संबंधों को सामान्य होने में अभी भी कुछ समय लगेगा

इस बीच, भारत-चीन सीमा विवाद के सुलझाए जाने की कोशिशों पर चर्चा करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पुणे की फ्लेम यूनिवर्सिटी में भारतीय सेना की सराहना की.

उन्होंने कहा, ‘अगर आज हम उस मुकाम पर पहुंचे हैं, जहां हम हैं… तो इसका एक कारण यह है कि हमने अपनी जमीन पर डटे रहने और अपनी बात रखने का दृढ़ प्रयास किया. सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में (एलएसी पर) मौजूद थी. सेना ने अपना काम किया और कूटनीति ने भी अपना काम किया.’

उन्होंने कहा कि 2020 से सीमा पर स्थिति ‘बहुत अशांत’ रही है, जिसका ‘भारत-चीन संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.’ जयशंकर ने बताया कि समाधान के लिए भारत सितंबर 2020 से चीन के साथ बातचीत कर रहा है.

उन्होंने कहा कि इस समाधान के अलग-अलग पहलू हैं. सबसे ज़रूरी पहलू है पीछे हटना, क्योंकि सेनाएं एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और कुछ भी होने की संभावना है.

उन्होंने कहा, ‘इसके बाद एक बड़ा मुद्दा यह है कि आप सीमा का प्रबंधन कैसे करते हैं और सीमा समझौते पर बातचीत कैसे करते हैं. अभी जो कुछ भी हो रहा है वह पहले भाग से संबंधित है.’

जयशंकर ने बताया कि भारत और चीन 2020 के बाद कुछ स्थानों पर इस बात पर सहमत हुए कि सैनिक किस प्रकार अपने ठिकानों पर लौटेंगे, लेकिन एक महत्वपूर्ण हिस्सा गश्त से संबंधित था.

वह बोले, ‘गश्ती रोक दी गई थी और हम पिछले दो सालों से इसी पर बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे. इसलिए 21 अक्टूबर को जो हुआ, वह यह था कि देपसांग और डेमचोक के उन विशेष क्षेत्रों में गश्त फिर से उसी तरह शुरू होगी, जैसे पहले हुआ करती थी.’

जयशंकर ने इस बात को स्वीकार किया कि संबंधों को सामान्य होने में अभी भी कुछ समय लगेगा, क्योंकि स्वाभाविक रूप से विश्वास और साथ मिलकर काम करने की इच्छा को फिर से बहाल करने में वक्त लगेगा.

अब तक संयुक्त बयान नहीं

बहरहाल, दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की बात कही जा रही है लेकिन भारत और चीन की सरकारों ने इस पर कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया है, जिससे सांसदों के मन में सवाल उठ रहे हैं. शुक्रवार (25 अक्टूबर) को कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के सदस्यों ने विदेश सचिव विक्रम मिस्री से पूछा था कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ‘सेना पीछे हटाने’ पर भारत और चीन की ओर से कोई संयुक्त बयान क्यों नहीं आया?

सूत्रों के अनुसार, मिस्री ने संसदीय समिति के सदस्यों को जवाब देते हुए कहा कि ऐसी स्थितियों में अक्सर संयुक्त बयान नहीं दिए जाते, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दोनों सरकारें समझौते के लिए प्रतिबद्ध हैं.

इस संबंध में द वायर हिंदी से साक्षात्कार में सुरक्षा विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी कहते हैं, ‘ये अभी बातचीत है, जब तक लिखित समझौता सामने नहीं आएगा तब तक कोई निश्चितता नहीं होगी. खाली कहने से काम नहीं बनेगा.’

वह आगे कहते हैं, ‘समझौता लिखित होता है, लेकिन ये लिखित समझौता नहीं है. ऐसा कहा गया है कि बातचीत हुई है और बातचीत में समझौता हो गया है और भविष्य में ये समझौता हमारे सामने पेश किया जाएगा. मैं इसे उस तरह से समझौता नहीं मानता हूं जैसे कि 1993, 1996, 2005 या 2012 के समझौते थे, जो कि लिखित थे. यहां ऐसा अभी तक कुछ नजर नहीं आया है. इसके बारे में बहुत कम सूचना दी गई है.’