नई दिल्ली: सरकारी साइबर अपराध डेटा से पता चलता है कि इस साल की पहली तिमाही में ही भारतीयों को ‘डिजिटल अरेस्ट (गिरफ्तारी)’ धोखाधड़ी में 120.30 करोड़ रुपये गंवा दिए.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गृह मंत्रालय के अनुसार, जो भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी) के माध्यम से केंद्रीय स्तर पर साइबर अपराध की निगरानी करता है, डिजिटल गिरफ्तारी हाल ही में डिजिटल धोखाधड़ी का एक प्रचलित तरीका बन गया है. इन धोखाधड़ी को अंजाम देने वालों में से कई लोग तीन सटे हुए दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों – म्यांमार, लाओस और कंबोडिया में स्थित हैं.
जनवरी से अप्रैल तक के रुझानों के विश्लेषण में आई4सी ने पाया कि इस अवधि में दर्ज साइबर धोखाधड़ी के 46% मामले – जिनमें पीड़ितों को कुल मिलाकर अनुमानतः 1,776 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ – इन तीन देशों के घोटालेबाजों से जुड़े हुए हैं.
राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल 1 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच 7.4 लाख शिकायतें दर्ज की गईं, जबकि 2023 में कुल 15.56 लाख शिकायतें प्राप्त हुईं. 2022 में कुल 9.66 लाख शिकायतें दर्ज की गईं, यह संख्या 2021 के 4.52 लाख से अधिक है.
आई4सी के अनुसार, चार तरह के धोखाधड़ी होते हैं- डिजिटल गिरफ्तारी, ट्रेडिंग धोखाधड़ी, निवेश धोखाधड़ी (कार्य आधारित) और रोमांस/डेटिंग धोखाधड़ी.
मुख्य कार्यकारी अधिकारी (आई4सी) राजेश कुमार ने मई में जनवरी-अप्रैल के आंकड़े जारी करते हुए कहा था, ‘हमने पाया कि भारतीयों ने डिजिटल गिरफ्तारी में 120.30 करोड़ रुपये, ट्रेडिंग धोखाधड़ी में 1,420.48 करोड़ रुपये, निवेश धोखाधड़ी में 222.58 करोड़ रुपये और रोमांस/डेटिंग धोखाधड़ी में 13.23 करोड़ रुपये गंवाए.’
आई4सी ने एनसीआरपी के आंकड़ों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त इनपुट और कुछ खुले स्रोतों से प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करने के बाद म्यांमार, लाओस और कंबोडिया पर ध्यान गया है. कुमार ने कहा, ‘इन देशों में स्थित साइबर अपराध संचालन भ्रामक रणनीतियों की एक व्यापक श्रृंखला का उपयोग करते हैं, जिसमें फर्जी रोजगार के अवसरों के साथ भारतीयों को लुभाने के लिए सोशल मीडिया का फायदा उठाकर भर्ती प्रयास शामिल हैं.
कैसे होता है फ्रॉड
इस तरह के फ्रॉड में अमूमन किसी व्यक्ति (पीड़ित) को एक कॉल आता है, जिसमें कॉलर उन्हें बताता कि उन्होंने अवैध सामान, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या अन्य प्रतिबंधित सामान वाला पार्सल भेजा है या ऐसे कोई पार्सल उनके नाम पर आया हैं. कुछ मामलों में कॉल किए गए व्यक्ति के रिश्तेदारों या मित्रों को बताया जाता था कि उक्त व्यक्ति किसी अपराध में संलिप्त पाया गया है.
एक बार जब अपराधी लक्षित व्यक्ति को अपने जाल में फंसा लेते हैं, तो अपराधी स्काइप या किसी अन्य वीडियो कॉलिंग प्लेटफ़ॉर्म पर उनसे संपर्क करते हैं. वे अक्सर कोई कानून प्रवर्तन अधिकारी बनकर, अक्सर वर्दी पहनकर पुलिस थाने या सरकारी दफ़्तर जैसी जगहों से फोन करते हैं और ‘समझौता’ तथा ‘मामले को बंद करने’ के लिए धन की मांग करते हैं.
कुछ मामलों में पीड़ितों को ‘डिजिटल अरेस्ट’ किया गया, जिसका मतलब है कि जब तक उनकी (अपराधी की) मांगें पूरी नहीं हो जातीं, लक्षित व्यक्ति को उनके सामने से न हटने के लिए मजबूर किया गया.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में रविवार (27 अक्टूबर) को जनता को डिजिटल गिरफ्तारी धोखाधड़ी के बारे में चेताते हुए कहा था कि कोई भी सरकारी एजेंसी फोन पर लोगों को धमकाकर पैसे नहीं मांगती है.