दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिंग्या बच्चों को स्कूलों में दाखिला देने की मांग की जनहित याचिका ख़ारिज की

एक जनहित याचिका में कहा गया था कि रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने से इनकार करना भारतीय संविधान और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में उल्लिखित शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. हालांकि, अदालत ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए याचिका रद्द कर दी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Flickr/CC BY-NC-ND 2.0)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार (29 अक्टूबर) को उस जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को स्थानीय स्कूलों में प्रवेश की अनुमति देने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी.

द हिंदू की खबर के मुताबिक, एक गैर सरकारी संगठन, सोशल ज्यूरिस्ट द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि शरणार्थी बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने से इनकार करना भारतीय संविधान और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में उल्लिखित शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि दिल्ली सरकार और एमसीडी म्यांमार के इन रोहिंग्या बच्चों को प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहे, क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है, लेकिन वे सभी खजूरी चौक इलाके में रह रहे हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने जनहित याचिका खारिज कर दी और कहा कि अदालत इस मामले में शामिल नहीं होगी. पीठ ने आगे सुझाव दिया कि इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क किया जा सकता है.

यह समझाते हुए कि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय निहितार्थ शामिल हैं और जनहित याचिका में उल्लिखित बच्चे भारतीय नहीं हैं, इसलिए इस मामले में एक नीतिगत निर्णय की आवश्यकता है, जिसे भारत सरकार द्वारा लिया जा सकता है.

लाइव लॉ के अनुसार, यअदालत ने कहा कि यह मामला सुरक्षा और राष्ट्रीयता पर प्रभाव डालने वाले अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित है, इसलिए याचिकाकर्ता को केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष एक अभ्यावेदन देना चाहिए.

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘कृपया एक अभ्यावेदन दें और सरकार को निर्णय लेने दें. हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते. किसी भी देश में कोई भी अदालत यह निर्धारित नहीं करती है कि किसे नागरिकता मिलेगी. जो आप सीधे नहीं कर सकते, आप अप्रत्यक्ष रूप से करने का प्रयास कर रहे हैं. सबसे पहले, उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क करें.’

पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इसके लिए आप अदालती प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं कर सकते. उन्हें भारतीय के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए या नहीं इसकी जिम्मेदारी कोर्ट नहीं ले सकता. हमें इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए कि ये अंतरराष्ट्रीय मुद्दे हैं. सुरक्षा और राष्ट्रीयता पर इनका असर पड़ता है.