अयोध्या (फैज़ाबाद): अयोध्या में गत बुधवार को आयोजित आठवें सरकारी दीपोत्सव ने दो ‘गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड’ बनाए. पहला, एक साथ सबसे ज्यादा लोगों द्वारा आरती करने का और दूसरा एक साथ सबसे ज्यादा दीये जलाने का. इन रिकॉर्ड को नया कहना फिजूल है क्योंकि बनाए जाते वक्त हर रिकॉर्ड नया ही होता है. इस सिलसिले में नई बात यह है कि अयोध्या के नवनिर्वाचित सांसद अवधेश प्रसाद इन्हें बनता देखने के लिए दीपोत्सव में उपस्थित नहीं थे और अब दीपोत्सव से ज्यादा वहां उनकी अनुपस्थिति की चर्चा हो रही है.
हालांकि जब उसकी चर्चा होनी चाहिए थी, इसलिए नहीं हो पाई कि उस समय अपने को मुख्यधारा कहने वाला, दीपोत्सव की जगर-मगर में चौंधियाया मीडिया इस अनुपस्थिति को देख या रेखांकित ही नहीं कर पाया. हां, इसके पीछे एक और बात थी: दीपोत्सव के आयोजकों द्वारा पत्रकारों को बासी भोजन दिए जाने से उसका मूड उखड़ा हुआ था और लहजा असामान्य.
इसलिए अवधेश प्रसाद की अनुपस्थिति की पहली खबर उनकी शिकायत के रूप में ही सामने आई. इस शिकायत के रूप में कि उन्हें तो आयोजकों ने दीपोत्सव में बुलाया ही नहीं. उसका वह आमंत्रण पत्र भी नहीं दिया, जो सामान्य लोगों को दिया.
यह पूछे जाने पर कि उन्हें क्या लगता है, आयोजकों ने ऐसा क्यों किया होगा?
उनका जवाब था: दीपोत्सव में मैं जाता तो मीडिया में सिर्फ मेरी चर्चा होती, जो सरकारी पार्टी भाजपा को रास नहीं आती और सरकारी आयोजकों पर उसका कहर टूटता. इससे डरकर उन्होंने सिर्फ उन्हें दीपोत्सव में बुलाया जो भाजपा से जुड़े हुए थे या हमारी गंगा जमुनी तहजीब के विपरीत त्योहारों व उत्सवों के सांप्रदायीकरण व राजनीतिकरण के रास्ते देश की एकता और अखंडता को कमजोर करने के उसके प्रयासों के शुभचिंतक थे. किसानों और गरीबों के लिए भी उसमें कोई जगह नहीं रखी गई.
दीपोत्सव के प्रायोजन की जिम्मेदारी निभा रहे उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों ने ये पंक्तियां लिखने तक अवधेश प्रसाद की शिकायत को लेकर कोई सफाई नहीं दी है. न ही यह कहा है कि वे गलतबयानी कर रहे हैं, उन्हें आमंत्रण पत्र भेजा गया था और न वे कारण ही बता रहे हैं, जिनके चलते दूसरे जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया और उन्हें छोड़ दिया.
अलबत्ता, अयोध्या के भाजपाई महापौर महंत गिरीश पति त्रिपाठी ने, मुख्यधारा पत्रकारिता की भाषा में कहें तो, ‘पलटवार’ करने में देर नहीं की है. उनके पलटवार में अवधेश प्रसाद पर झूठ बोलने के आरोप लगाए गए हैं और दावा किया गया है कि न सिर्फ उन्हें आमंत्रण पत्र भेजा गया था बल्कि दीपोत्सव में उनके लिए कुर्सी भी आरक्षित कर रखी गई थी. फिर भी वे तुष्टीकरण की अपनी और अपनी पार्टी की मानसिकता के चलते दीपोत्सव में नहीं आए.
इस सिलसिले में उन्होंने निर्वाचित जनप्रतिनिधि के रूप में अवधेश प्रसाद के इस बर्ताव को ‘दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय’ करार दिया और कहा है कि वे अपनी पार्टी की उस ‘घृणित’ मानसिकता से नहीं उबर पा रहे हैं, जिसके तहत अयोध्या में कारसेवकों के खून की नदियां बहाई गईं और अयोध्या को विकास से वंचित रखा गया.
उन्होंने भगवान से यह प्रार्थना भी कर डाली है कि वे अवधेश प्रसाद को सद्बुद्धि दें ताकि वे अयोध्या के सांसद होने के अपने दायित्व के साथ न्याय कर सकें.
अयोध्या के भाजपाई नगर विधायक वेद प्रकाश गुप्ता तो इस मामले को गत जनवरी के बहुत प्रचारित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह तक खींच ले गए हैं, जब अवधेश सांसद थे ही नहीं. गुप्त ने कहा है कि तब अवधेश प्रसाद को प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण दिया गया था, लेकिन उन्हें उसमें शामिल होने का समय नहीं मिला और अब वे दिव्य व भव्य दीपोत्सव को लेकर ओछी राजनीति कर रहे हैं.
अगर अवधेश प्रसाद वाकई ऐसा कर रहे हैं तो उन्हें बेपर्दा करने का सबसे अच्छा तरीका यह था कि संबंधित सरकारी अधिकारियों द्वारा उन्हें आमंत्रण पत्र भेजे जाने के प्रमाण सामने लाए जाते. कम से कम वह माध्यम, जिसकी मार्फत आमंत्रण पत्र उन्हें भेजा गया. ऐसा न करके भाजपाई नगर विधायक और महापौर द्वारा जिस तरह मामले को अवधेश प्रसाद और उनकी पार्टी की मानसिकता से जोड़कर उन पर हमले किए जा रहे हैं, उससे एक तरह से अवधेश के दीपोत्सव के राजनीतिकरण के आरोप की पुष्टि हुई जा रही है.
वरिष्ठ पत्रकार इंदु भूषण पांडेय इस सिलसिले में कई प्रश्न उठाते हैं. पहला यह कि राजकोष की कीमत पर मनाए जाने वाले दीपोत्सव को किसी एक पार्टी या परिवार का कैसे बनने दिया जा सकता है और दूसरा यह कि इससे पूर्व के दीपोत्सवों में लल्लू सिंह को अयोध्या का सांसद होने के हक से आगे आगे रखा जाता था तो इस बार अवधेश प्रसाद को सिर्फ इस आधार पर उससे वंचित करने का औचित्य क्यों कर सिद्ध किया जा सकता है कि वे लल्लू की तरह भाजपा के नहीं सपा के टिकट पर चुने गए हैं?
इंदु भूषण अवधेश प्रसाद और सपा की मानसिकता पर हमले को इसकी आड़ बनाए जाने की भी आलोचना करते और पूछते हैं कि अयोध्या के मतदाताओं ने सब कुछ जान-समझकर अवधेश प्रसाद को सांसद चुन लिया है तो भाजपा या इसकी सरकार खुद को उनके जनादेश से ऊपर क्योंकर कर सकती है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)