नई दिल्ली: बांग्लादेश में हज़ारों की संख्या में जमा हुए हिंदुओं ने शुक्रवार (1 नवंबर) को एक बड़ी रैली निकालकर मांग की है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार उन्हें हमलों और उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करे. इसके अलावा हिंदू समुदाय के नेताओं के खिलाफ दर्ज हुए राजद्रोह के मामले भी वापस लिए जाएं.
हिंंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस रैली में लगभग 30 हज़ार हिंदू शामिल हुए थे, जिन्होंने दक्षिणपूर्वी शहर चटगांव के एक प्रमुख चौराहे पर प्रदर्शन किया और अपने अधिकारों की मांग करते हुए नारे लगाए. इस दौरान इलाके में पुलिस और सेना वहां मौजूद रही.
मालूम हो कि बांंग्लादेश में अन्य जगहों पर भी विरोध प्रदर्शन की सूचना मिली है. हिंदू समूहों का कहना है कि अगस्त की शुरुआत में जब प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंका गया और छात्रों के नेतृत्व वाले विद्रोह के बाद हसीना खुद देश छोड़कर भाग गई थीं, तब से अब तक हिंदुओं पर हजारों हमले हो चुके हैं.
वहीं, हसीना सरकार के पतन के बाद अंतरिम सरकार की कमान संभालने वाले नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस का कहना है कि हिंदू समूहों द्वारा हमले के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए हैं.
गौरतलब है कि बांग्लादेश की लगभग 17 करोड़ की आबादी में हिंदू लगभग 8% हैं, जबकि मुस्लिम लगभग 91% हैं. देश के प्रभावशाली अल्पसंख्यक समूह- बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने कहा है कि 4 अगस्त से हिंदुओं पर 2,000 से अधिक हमले हुए हैं, क्योंकि अंतरिम सरकार व्यवस्था बहाल करने के लिए संघर्ष कर रही है.
इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार अधिकारियों और अन्य अधिकार समूहों ने यूनुस के शासन में देश में मानवाधिकारों पर चिंता व्यक्त की है. हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों का कहना है कि अंतरिम सरकार ने उन्हें पर्याप्त सुरक्षा नहीं दी है और हसीना के सत्ता से हटने के बाद से कट्टरपंथी इस्लामवादी तेजी से प्रभावशाली होते जा रहे हैं.
बांग्लादेश के इस आंतरिक मामले पर अब अन्य देशों की भी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, जहां भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमलों की ख़बरों पर चिंता व्यक्त की है.
वहीं, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने कहा है कि वह हसीना के निष्कासन के बाद से बांग्लादेश के मानवाधिकार मुद्दों पर नजर रख रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने भी बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ ‘बर्बर’ हिंसा की निंदा की है.
ज्ञात हो कि अगस्त से ही हिंदू कार्यकर्ता राजधानी ढाका तथा अन्य स्थानों पर विरोध रैलियां कर रहे हैं तथा आठ मांगों पर जोर दे रहे हैं, जिनमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए एक कानून, अल्पसंख्यकों के लिए एक मंत्रालय तथा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध उत्पीड़न के कृत्यों पर मुकदमा चलाने के लिए एक न्यायाधिकरण की स्थापना शामिल है.
शुक्रवार को दक्षिण-पूर्वी शहर चटगांव में विरोध प्रदर्शन जल्दबाजी में आयोजित किया गया था, क्योंकि बुधवार को 19 हिंदू नेताओं के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था, जिसमें से एक प्रमुख पुजारी चंदन कुमार धर भी शामिल थे. इन नेताओं पर 25 अक्टूबर को शहर में एक रैली आयोजित करने का आरोप है. पुलिस ने दो नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिससे हिंदू भड़क गए.
दरअसल ये आरोप तब लगाए गए, जब रैली में शामिल लोगों के एक समूह ने कथित तौर पर एक खंभे पर बांग्लादेश के झंडे के ऊपर भगवा झंडा लगा दिया था, जिसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान माना गया था. हिंदू समुदाय के नेताओं का कहना है कि ये मामले राजनीति से प्रेरित हैं और उन्होंने गुरुवार को मांग की कि इन्हें 72 घंटों के भीतर वापस लिया जाए.
ढाका में शनिवार को एक और हिंदू रैली की योजना बनाई गई थी.
उधर, हसीना की अवामी लीग पार्टी और उसकी सहयोगी जातीय पार्टी के समर्थकों ने कहा है कि हसीना के निष्कासन के बाद से उन्हें भी निशाना बनाया गया है. गुरुवार देर रात जटिया के मुख्यालय में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई.
शुक्रवार को जातीय पार्टी के अध्यक्ष जीएम कादर ने कहा कि उनके समर्थक अपनी जान जोखिम में डालकर भी अपने अधिकारों की मांग के लिए रैलियां आयोजित करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि वे शनिवार को ढाका स्थित पार्टी मुख्यालय में एक रैली करेंगे, जिसमें वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि तथा अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए झूठे आरोपों के विरोध में प्रदर्शन किया जाएगा.
शुक्रवार को बाद में ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने घोषणा की कि वह जातीय पार्टी के मुख्यालय के पास किसी भी रैली पर प्रतिबंध लगा रही है. पुलिस के फैसले के कुछ घंटों बाद पार्टी ने कहा कि उसने कानून का सम्मान करने के लिए अपनी रैली स्थगित कर दी है और रैली की नई तारीख जल्द ही घोषित की जाएगी.
ध्यान रहे कि पुलिस का यह फैसला तब आया जब एक छात्र समूह ने शुरुआत में रैली की अनुमति देने के लिए पुलिस प्रशासन की कड़ी आलोचना की और इसे रोकने की धमकी दी.