भारत-चीन सीमा विवाद: लद्दाख के देपसांग और डेमचोक में सेना की ‘वेरिफिकेशन पेट्रोलिंग’ शुरू

भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत ने लद्दाख के देपसांग और डेमचोक में ‘वेरिफिकेशन पेट्रोलिंग’ शुरू कर दी है. वेरिफिकेशन पेट्रोलिंग एक प्रक्रिया है जिसके तहत किसी क्षेत्र की निगरानी और निरीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वहां तय समझौते का पालन हो रहा है.

(फोटो: पब्लिक डोमेन)

नई दिल्ली: विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शनिवार (2 नवंबर) को कहा कि भारत ने लद्दाख के देपसांग और डेमचोक मेंवेरिफिकेशन पेट्रोलिंगशुरू कर दी है.

जायसवाल ने विदेश मंत्रालय के साप्ताहिक प्रेस ब्रीफ़िंग में कहा, ‘आप सभी जानते हैं कि 21 अक्टूबर, 2024 को भारत और चीन के बीच अंतिम चरण की वापसी पर सहमति बनी थी. परिणामस्वरूप, डेमचोक और देपसांग में पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों परवेरिफिकेशन पेट्रोलिंगशुरू हो गई है.

बता दें कि वेरिफिकेशन पेट्रोलिंग एक प्रक्रिया है जिसके तहत किसी क्षेत्र की निगरानी और निरीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वहां तय समझौते का पालन हो रहा है.

विदेश मंत्रालय का यह बयान शुक्रवार (1 नवंबर) को डेमचोक में गश्त शुरू होने के बाद आया है. पहले के बयानों में यह बताया गया था कि पूर्वी लद्दाख के इन दो टकराव वाले क्षेत्रों से भारतीय और चीनी सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है.

दीपावली पर मिठाई का आदानप्रदान

31 अक्टूबर को दिवाली के अवसर पर भारतीय और चीनी सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की कई सीमा चौकियों पर मिठाइयों का आदानप्रदान किया.

इससे पहले 21 अक्टूबर को भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने घोषणा की थी कि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में सीमा से लगे क्षेत्रों में गश्त व्यवस्था को लेकर एक समझौते पर पहुंच गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप वहां से सैनिकों की वापसी होगी.

2020 से सीमा पर था तनाव

उल्लेखनीय है कि मई 2020 में चीनी सैनिकों के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करते पाए जाने के बाद, दोनों पक्षों के बीच झड़पें हुई थी, जिसमें जून में गलवान घाटी में हुई घातक हाथापाई भी शामिल है. कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य वार्ता के बाद लगभग चार टकराव बिंदुओं पर सैनिकों की वापसी हुई है. देपसांग और डेमचोक में 30 अक्टूबर तक सेनाएं एकदूसरे के काफी करीब बनी हुई थीं.

पिछले सप्ताह चीन ने कहा था कि वह सीमा क्षेत्र से संबंधित मुद्दों के समाधान पर दोनों देशों द्वारा हाल ही में की गई प्रगति की सराहना करता है .

इस समझौते ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पहली द्विपक्षीय बैठक (तनाव के बाद) का मार्ग भी प्रशस्त किया, जो रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान हुई.

सीमा समझौते से पहले जुलाई में विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच लगातार बैठकें हुई थीं. साथ ही दो महीने के भीतर भारतचीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए विदेश कार्यालय के नेतृत्व वाली कार्यकारी प्रणाली के बीच दो बैठकें भी हुई थीं.

विशेषज्ञ का क्या कहना है?

हालिया समझौते के संबंध में द वायर हिंदी से साक्षात्कार में सुरक्षा विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी कहते हैं, ‘ये अभी बातचीत है, जब तक लिखित समझौता सामने नहीं आएगा तब तक कोई निश्चितता नहीं होगी. खाली कहने से काम नहीं बनेगा.’

उन्होने आगे कहा, ‘समझौता लिखित होता है, लेकिन ये लिखित समझौता नहीं है. ऐसा कहा गया है कि बातचीत हुई है और बातचीत में समझौता हो गया है और भविष्य में ये समझौता हमारे सामने पेश किया जाएगा. मैं इसे उस तरह से समझौता नहीं मानता हूं जैसे कि 1993, 1996, 2005 या 2012 के समझौते थे, जो कि लिखित थे. यहां ऐसा अभी तक कुछ नजर नहीं आया है. इसके बारे में बहुत कम सूचना दी गई है.’