वफ़्फ़ बिल: विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र, जगदंबिका पाल पर मनमानी का आरोप

वक़्फ़ संशोधन विधेयक पर गठित जेपीसी में शामिल विपक्षी दलों के कुछ सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल पर 'मनमाने ढंग से कार्यवाही बाधित' करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर समिति में उनकी बात को अनसुना किया गया, तो वे कमेटी छोड़ने को मजबूर होंगे. 

ओम बिरला. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) विधेयक पर चर्चा के लिए बनी संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के कुछ विपक्षी सदस्यों ने इसके अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता जगदंबिका पाल पर ‘मनमाने ढंग से कार्यवाही बाधित’ करने का आरोप लगाते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को इस संबंध में पत्र लिखा है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, विपक्षी सांसदों ने अपने पत्र में ये भी कहा है कि अगर समिति में उनकी बात को अनसुना किया जाता है और उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए उचित मौका नहीं दिया गया, तो वे समिति से अपना नाम वापस लेने को मजबूर होंगे.

मालूम हो कि इस 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति में 13 सदस्य विपक्षी दलों से हैं, जिसमें नौ लोकसभा और चार राज्यसभा सांसद शामिल हैं.

3 नवंबर को लिखे इस पत्र पर जेपीसी पैनल के छह विपक्षी सांसद सदस्यों के हस्ताक्षर हैं. इसमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन के असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और मोहम्मद नदीमुल हक़, द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम के एम. अब्दुला और कांग्रेस के मोहम्मद जावेद के नाम शामिल है.

इस पत्र में सांसदों ने लिखा है, ‘हम विपक्षी दलों के संयुक्त समिति के सदस्यों का मानना है कि जेपीसी भी एक छोटी संसद की तरह है, जिसमें विपक्षी सांसदों को भी सुना जाना चाहिए न कि तय प्रक्रिया का पालन किए बगैर इसे विधेयक को पारित कराने का एक माध्यम बनाना चाहिए. इसका उपयोग संसदीय प्रक्रिया की अनदेखी के लिए नहीं किया जाना चाहिए, जिसे अलोकतांत्रिक रूप से ‘बहुमत’ कहा जाता है.’

इसमें सांसदों ने आगे लिखा है कि ये उनका कर्तव्य है कि वे इस मामले को लोकसभा अध्यक्ष के ध्यान में ले आएं. क्योंकि सदस्यों की मर्ज़ी के खिलाफ उचित समय दिए बिना जेपीसी की कार्यवाही को रोकना संवैधानिक धर्म और संसद पर अत्याचारी हमले के अलावा और कुछ नहीं है.

पत्र में आगे कहा गया है कि समिति के अध्यक्ष ने बैठकों की तारीखें तय करने और कभी-कभी लगातार तीन दिनों तक बैठकें आयोजित करने और समिति के समक्ष किसे बुलाया जाए, यह तय करने में ‘एकतरफा निर्णय’ लिया है.

उन्होंने कहा कि सांसदों के लिए बिना तैयारी के बातचीत करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है.

पत्र में यह भी कहा गया है कि जगदंबिका पाल को इन मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले समिति के सदस्यों के साथ औपचारिक परामर्श करने का निर्देश दिया जाए, ताकि देश को आश्वस्त किया जा सके कि समिति बिना किसी पूर्वाग्रह के संसदीय प्रक्रियाओं के तहक विधेयक के निष्कर्ष पर पहुंचने में निष्पक्ष और स्वतंत्र है.

पत्र में कहा गया है, अगर ऐसा नहीं होता तो, हम विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि हम जेपीसी से हमेशा के लिए अलग होने को मजबूर हो जाएंगे. क्योंकि हमें परेशान किया गया है.’

विपक्षी सदस्यों ने प्रस्तावित विधेयक पर अपनी आपत्तियां व्यक्त करते हुए कहा है कि इस विधेयक के माध्यम से सरकार द्वारा की गई कानूनी कवायद और कुछ नहीं बल्कि संसद द्वारा उचित देखभाल के साथ बनाए गए पहले के कानून को हल्का करने का प्रयास है, जो हमारे संविधान की धर्मनिरपेक्ष साख को सुनिश्चित करता है.

उन्होंने रेखांकित किया है कि विभिन्न विभागों और मुस्लिम संगठनों के बयान की अकादमिक और साथ ही कानूनी रूप से जांच की जानी चाहिए और चर्चा किए गए मुद्दों को समझने के लिए सदस्यों द्वारा प्रत्येक बैठक के बाद इसे संकलित किया जाना चाहिए, जिसके लिए बैठकों के बीच उचित समय अंतराल की आवश्यकता है.

विपक्षी सांसदों का ये भी कहना है कि नए विधेयक में 100 से अधिक संशोधन किए गए हैं, जो सरकार के केवल 44 संशोधनों के दावे के उलट है.

पत्र में कहा गया है, ‘इन संशोधनों को लेकर हम उचित रूप से अपना डर ​​व्यक्त करने के लिए सीमित हैं. ये धार्मिक, आध्यात्मिक और एक कानूनी संस्था यानी वक्फ बोर्ड का नैतिक ताना-बाना मिटने वाला है, जिससे दुनिया की नजरों में हमारे देश की छवि खराब होगी… ये हमारे संविधान में दिए गए अल्पसंख्यक अधिकारों के खिलाफ है.’

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 08 अगस्त को लोकसभा में वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 को पेश किया था. हालांकि, विपक्षी सांसदों के विरोध के चलते इस विधेयक को संयुक्त समिति को भेज दिया गया. इस समिति ने 22 अगस्त को पहली बैठक की थी.

इस समिति की कई बैठकें विवादों में रही हैं. इससे पहले पिछले महीने 15 अक्टूबर को विपक्षी सदस्यों ने ओम बिड़ला को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि समिति की कार्यवाही अध्यक्ष जगदंबिका पाल द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से संचालित की जा रही है. इस संबंध में समिति के अध्यक्ष पाल ने कहा है कि बैठकों के दौरान विपक्षी सदस्यों को बोलने के पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं.

एक अन्य बैठक में कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग के एक पूर्व पदाधिकारी और भाजपा नेता द्वारा वक़्फ़ भूमि के आवंटन को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर की गई टिप्पणी के बाद कई विपक्षी सांसद पैनल की बैठक से वॉकआउट कर लिया था.

वहीं, 22 अक्टूबर को हुई  संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने आक्रोश में एक कांच की बोतल तोड़ दी थी, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था.

ज्ञात हो कि इस मामले को लेकर विपक्षी सदस्यों ने ‘गैर-हितधारकों’ के बयान पर भी सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा सदस्यों का आरोप है कि कठिन सवालों का सामना करने से बचने के लिए विपक्ष द्वारा समिति की कार्यवाही में ‘जानबूझकर व्यवधान’ डाला जा रहा है.