न्यायिक स्वतंत्रता का अर्थ हमेशा सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसला देना नहीं: सीजेआई चंद्रचूड़

एक राष्ट्रीय दैनिक से जुड़े कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बहुत सारे वर्ग या समूह हैं, जो कहते हैं कि अगर आप मेरे पक्ष में फैसला करते हैं, तो आप स्वतंत्र हैं. अगर आप मेरे पक्ष में फैसला नहीं करते हैं, आप स्वतंत्र नहीं हैं. इसी बात से मुझे आपत्ति है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (बैकग्राउंड में सुप्रीम कोर्ट) (फोटो साभार: PMO/SCI Website)

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (डीवाई चंद्रचूड़) का कार्यकाल 10 नवंबर, 2024 को खत्म हो रहा है. नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट के 50वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पद संभालने वाले डीवाई चंद्रचूड़ के क़रीब दो साल लंबे कार्यकाल की अब समीक्षा हो रही है.

इस बीच डीवाई चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को परिभाषित करते हुए कहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब हमेशा सरकार के खिलाफ़ फ़ैसला देना नहीं होता है. उन्होंने लोगों से न्यायाधीशों पर भरोसा करने का आग्रह किया.

अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के ‘अड्डा’ कार्यक्रम में बातचीत के दौरान डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार के करीबी होने के आरोपों, जजों की नियुक्ति, ज़मानत में देरी जैसे विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय रखी.

न्यायपालिका की स्वतंत्रता

सीजेआई चंद्रचूड़ ने एक बार पहले कहा था कि ‘लोगों का अदालत पर दबाव रहता है कि वह विपक्ष की भूमिका निभाए’ हालिया चर्चा में मुख्य न्यायाधीश ने अपनी इस बात को विस्तार दिया.

‘आम तौर पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कार्यपालिका से आज़ादी या सरकार के प्रभाव से आज़ादी के तौर पर पारिभाषित किया जाता है. अब भी ऐसा ही माना जाता है. हालांकि सिर्फ इन्हीं चीज़ों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पारिभाषित नहीं होती. …ऐसे समूह हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करके अदालत पर एक निश्चित परिणाम तक पहुंचने के लिए दबाव डालने की कोशिश करते हैं.’

सीजेआई ने आगे कहा कहा, ‘बहुत सारे वर्ग या समूह हैं, जो कहते हैं कि अगर आप मेरे पक्ष में फैसला करते हैं, तो आप स्वतंत्र हैं. अगर आप मेरे पक्ष में फैसला नहीं करते हैं, आप स्वतंत्र नहीं हैं. और इसी बात से मुझे आपत्ति है. …स्वतंत्र होने के लिए, एक न्यायाधीश के पास यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह अपने विवेक के अनुसार निर्णय ले सके. बेशक, वह विवेक जो कानून और संविधान द्वारा निर्देशित होता है.’

‘जब आप चुनावी बॉन्ड पर निर्णय लेते हैं, तब आप बहुत स्वतंत्र होते हैं, लेकिन यदि फैसला सरकार के पक्ष में जाता है, तब आप स्वतंत्र नहीं होते… स्वतंत्रता की यह परिभाषा मेरी नहीं है. …आपको अपने जज को यह स्वतंत्रता देनी चाहिए कि वह क़ानून के अनुसार फैसला ले सके, भले ही फैसला किसी के भी पक्ष में हो.’

बता दें कि 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए रद्द कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अपने फैसले में राजनीतिक फंडिंग की इस विवादास्पद पद्धति को समाप्त कर किया था, जो 2018 में अपनी स्थापना के बाद से ही जांच के दायरे में थी.

डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया, ‘जिन मामलों में सरकार के खिलाफ फैसला आना था, हमने सरकार के खिलाफ फैसला दिया. लेकिन अगर कानून के अनुसार किसी मामले में सरकार के पक्ष में फैसला आना जरूरी है, तो आपको कानून के अनुसार ही फैसला करना होगा. यह संदेश सभी तक पहुंचना चाहिए जो स्थिर और जीवंत न्यायपालिका के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है.’

प्रधानमंत्री का घर आना गलत नहीं: सीजेआई

उल्लेखनीय है कि इस साल गणेश उत्सव के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीजेआई चंद्रचूड़ के घर गए थे, जहां दोनों ने साथ में आरती की थी. इस कार्यक्रम की तस्वीरें और वीडियो भी सामने आए थे.

सीजेआई ने इस मुलाक़ात के बारे में कहा, ‘प्रधानमंत्री मेरे घर एक निजी कार्यक्रम के लिए आए थे, यह कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं था. खैर, मुझे लगता है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं था, क्योंकि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बैठकें जारी हैं. यह सामाजिक स्तर पर भी हो रहा है.’

जब उनसे पूछा गया कि अब जब वे पीछे मुड़कर देखते हैं, तो क्या उस कार्यक्रम में अन्य न्यायाधीशों या विपक्ष के नेता को शामिल करना चाहते, तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा करने से यह एक चयन समिति बन जाती.

उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, ‘मैं विपक्ष के नेता को इसमें शामिल नहीं करूंगा, क्योंकि यह केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए बनी चयन समिति नहीं है.’

ज़मानत पर क्या बोले सीजेआई?

कई मामलों में अदालतों द्वारा जमानत न दिए जाने के मुद्दे पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनके लिए यह ‘गंभीर चिंता का विषय’ रहा है कि ‘जमानत अपवाद नहीं बल्कि नियम है’ का संदेश निचली अदालतों तक नहीं पहुंचा है.

उन्होंने कहा, ‘अपनी बात करूं तो मैंने हमेशा कहा है कि मैंने ए से लेकर जेड तक- अर्नब से लेकर जुबैर तक को जमानत दी है. यही मेरी फिलॉसफी है.’

मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि उनके दो साल के कार्यकाल में सर्वोच्च न्यायालय में 21,000 जमानत याचिका दायर की गई, जिनमें से 21,358 जमानत मामलों का निपटारा किया गया.