राज्यसभा में सदस्य ने कहा, भारत को आज़ाद हुए करीब 70 साल हो रहे हैं, लेकिन सरदार भगत सिंह को अब तक शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है.
नई दिल्ली: राज्यसभा में मंगलवार को इंडियन नेशनल लोकदल के एक सदस्य ने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग की.
शून्यकाल में इनेलो के राम कुमार कश्यप ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सरदार भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया और आज भारत को आजाद हुए करीब 70 साल हो रहे हैं. लेकिन अब तक सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है.
उन्होंने कहा कि देश में आजादी के लिए विद्रोह भड़क न जाए, यह सोच कर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह को रातों रात फांसी देकर उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया, उनका शव परिजनों तक को नहीं दिया गया.
एक अखबार में खबर आई थी कि पाकिस्तान ने भगत सिंह को शहीद का दर्जा दे दिया है. हमारे लिए यह शर्म की बात है कि अब तक हमने भगत सिंह को शहीद का दर्जा नहीं दिया है. न सिर्फ, भगत सिंह को बल्कि उनके साथ हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल जाने वाले सुखदेव और राजगुरु को भी शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए.
सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि इस बारे में कानून मंत्री संस्कृति मंत्री से विचार कर सदन को अवगत कराएं. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्तों को लेकर कोई गलत संदेश नहीं जाना चाहिए. सदन में मौजूद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार स्वतंत्रता सेनानियों और देशभक्तों को पूरा सम्मान देती है और इसके लिए प्रतिबद्ध भी है.
पिछले हफ्ते ही रक्षा और गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयोग को यह जानकारी दी थी कि सेना या पुलिस के शब्दकोष में ‘मार्टर’ या ‘शहीद’ जैसा कोई शब्द है ही नहीं. इसके बजाय कार्रवाई के दौरान मारे गए सैनिक या पुलिसकर्मी के लिए क्रमश: ‘बैटल कैजुअल्टी’ या ‘ऑपरेशन कैजुअल्टी’ का उपयोग किया जाता है.
यह मुद्दा तब सामने आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष आरटीआई के तहत एक आवेदन आया जिसमें जानकारी मांगी गई थी कि कानून और संविधान के मुताबिक शहीद (मार्टर) शब्द का अर्थ और व्यापक परिभाषा क्या है?
आरटीआई आवेदन में इसके बेवजह इस्तेमाल पर लगाम लगाने के लिए कानूनी प्रावधान तथा उल्लंघन पर सजा की भी मांग की गई थी. यह आदेवन गृह और रक्षा मंत्रालयों में अलग-अलग अधिकारियों के समक्ष स्थानांतरित हुआ लेकिन जब आवेदनकर्ता को संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली तो उसने सीआईसी से संपर्क किया जो सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सर्वोच्च अपीली प्राधिकार है.
सूचना आयुक्त यशोवर्धन आजाद ने कहा कि रक्षा और गृह मंत्रालय के प्रतिवादी इस दौरान मौजूद थे और उन्हें सुना गया. आजाद ने कहा, ‘रक्षा मंत्रालय की तरफ से पेश हुए अधिकारी ने बताया कि उनके मंत्रालय में शहीद या मार्टर शब्द इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके बजाये बैटल कैजुअल्टी का इस्तेमाल करते हैं.’
गृह मंत्रालय की तरफ से पेश हुए अधिकारी ने कहा कि गृह मंत्रालय में ‘ऑपरेशन कैजुअल्टी’ शब्द का इस्तेमाल होता है. मंत्रालयों द्वारा दिए गए जवाब पर उन्होंने कहा कि ‘बैटल कैजुअल्टी’ और ‘ऑपरेशन कैजुअल्टी’ के मामलों को घोषित करने का फैसला, दोनों ही मामलों में कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी की रिपोर्ट आने के बाद लिया जाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)