नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार (4 नवंबर) को कहा कि हिंदी साहित्य और इसके विभिन्न व्याकरणिक रूपों के संवर्धन, संरक्षण के लिए दीर्घकालिक नीति विकसित करने की आवश्यकता है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदी को सर्वमान्य और लचीला बनाने पर जोर देते हुए शाह ने कहा कि सभी आधुनिक शिक्षा पाठ्यक्रमों का हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद करना भी आवश्यक है.
शाह केंद्रीय हिंदी समिति की 32वीं बैठक में बोल रहे थे. यह समिति हिंदी के प्रचार-प्रसार और प्रगतिशील उपयोग के लिए दिशा-निर्देश देने वाली सर्वोच्च संस्था है. 21 सदस्यीय समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं और इसमें नौ केंद्रीय मंत्री, छह मुख्यमंत्री, संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष और तीन संयोजक शामिल हैं.
शाह ने कहा कि हाल ही में पांच और भारतीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा (classical language) का दर्जा दिया गया है. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां 11 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, शाह ने अपने संबोधन में कहा कि इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा भी अब भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है. बैठक में उन्होंने कहा, ‘इससे देश में सभी भाषाओं के विकास के लिए अनुकूल माहौल बना है.’
शाह ने कहा कि बच्चों और युवाओं के लिए अपनी मातृभाषा में अध्ययन, विश्लेषण और निर्णय लेना आवश्यक है, ताकि देश के विकास के लिए उनकी पूरी क्षमता का उपयोग हो सके.
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय हिंदी समिति का उद्देश्य हिंदी का विकास, हिंदी साहित्य का संरक्षण और इसे देश की संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करना है. केंद्रीय हिंदी समिति की भूमिका हिंदी के विकास और प्रचार के लिए भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा कार्यान्वित किए जाने वाले कार्यों और कार्यक्रमों का समन्वय करना है.
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति का कार्यकाल आम तौर पर तीन साल का होता है. वर्तमान समिति का पुनर्गठन 9 नवंबर, 2021 को किया गया था.
ज्ञात हो कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कई मौकों पर हिंदी जोर देते रहे हैं, जिसकी राजनीतिक दलों द्वारा आलोचना होती रही है. गृह मंत्री पहले कह भी चुके हैं कि हिंदी, अंग्रेजी का विकल्प हो सकती है. इसे लेकर विपक्ष, खासकर दक्षिण भारत के नेता खासा विरोध जता चुके हैं.
अक्टूबर 2022 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेश की गई अपनी 11वीं रिपोर्ट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा पर संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और देश के अन्य हिस्सों में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा होनी चाहिए. साथ ही, सभी राज्यों में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी पर वरीयता दी जानी चाहिए.
अप्रैल 2022 में अमित शाह ने राजधानी दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और यह निश्चित तौर पर हिंदी के महत्व को बढ़ाएगा. अमित शाह द्वारा हिंदी भाषा पर जोर दिए जाने की तब विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की थी और इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया था.