नई दिल्ली: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार (4 नवंबर) को अदालती कार्यवाही के सीधा प्रसारण वाले वीडियो (लाइवस्ट्रीम फुटेज) को साझा करने, संपादित करने, इस्तेमाल करने और बदलाव कर अपलोड करने पर प्रतिबंध लगा दिया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, इस संबंध में सोमवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की पीठ ने सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को संपादित करने और इसे इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड करने पर तत्काल प्रतिबंध लगाने को कहा है.
दमोह के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विजय बजाज इस मामले में याचिकाकर्ता हैं. उन्होंने अदालत में कहा कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए (2021 में) नियम बनाए गए हैं और लाइव स्ट्रीमिंग के कॉपीराइट का स्पष्ट प्रावधान उच्च न्यायालय के पास है. इन नियमों के तहत किसी भी प्लेटफॉर्म पर लाइव स्ट्रीमिंग का मनमाना इस्तेमाल, शेयरिंग, ट्रांसलेशन या अपलोड करना प्रतिबंधित है. इसके बावजूद कई इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाइव स्ट्रीमिंग की क्लिपिंग्स को एडिट और अपलोड कर आर्थिक लाभ उठाया जा रहा है.
इस पर अदालत ने कहा कि नियमों के अनुसार, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और टेलीविजन पर कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग अपलोड करने से पहले अदालत से अनुमति लेने का प्रावधान है, बावजूद इसके अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग का दुरुपयोग हो रहा है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे अन्य सोशल मीडिया मंच पर कोर्ट कार्यवाही के सीधा प्रसारण पर ‘मीम्स’, ‘रील्स’, ‘शॉर्ट्स’ आदि अपलोड कर पूरी न्याय वितरण प्रणाली का मजाक उड़ाया जा रहा है.
याचिकाकर्ता के वकील मुकेश अग्रवाल ने बताया कि अदालत ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय, मेटा, यूट्यूब, एक्स और अन्य मीडिया मंचों से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है.
याचिकाकर्ता का ये भी कहना है कि हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग का दुरुपयोग करके इंटरनेट मीडिया द्वारा कमाया गया पैसा वसूल किया जाना चाहिए और अपलोड की गई क्लिपिंग को हटा दिया जाना चाहिए.