नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में गुरुवार (7 नवंबर) को अपहरण के बाद दो विलेज डिफ़ेंस गार्ड के रूप में काम करने वाले दो नागरिकों की हत्या कर दी गई. ये जम्मू संभाग में एक पखवाड़े के भीतर दूसरा ऐसा लक्षित हमला है.
रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ितों की पहचान नज़ीर अहमद और कुलदीप कुमार के रूप में हुई है. ये लोग गुरुवार सुबह अपने मवेशियों के साथ किश्तवाड़ की चतरू तहसील के कुंतवाड़ा के ऊंचे जंगली इलाकों में गए थे. इन लोगों ने अपने परिवारों को बताया था कि वे शाम तक लौट आएंगे.
मालूम हो कि ये पहाड़ी तहसील जम्मू के किश्तवाड़ जिले और कश्मीर के अनंतनाग के बीच की सीमा पर है और पिछले कुछ महीनों से यहां आतंकवादी गतिविधियों में तेजी देखी गई है. यहां 14 सितंबर को भी सेना के दो जवान मारे गए थे. इसके अलावा तहसील में हाल के विधानसभा चुनाव के दौरान भी आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच कम से कम दो बार गोलाबारी हुई थी.
ताज़ा मामले में गुरुवार शाम जब नज़ीर अहमद और कुलदीप कुमार अपने घर नहीं लौटे, तो उनके परिजनों ने उनके मोबाइल फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, जो असफल साबित हुई. इससे पहले कि वे पुलिस से संपर्क कर पाते, संदिग्ध आतंकवादियों ने सोशल मीडिया पर एक ग्राफिक तस्वीर जारी की, जिसमें दोनों के खून से लथपथ शव दिखाई दे रहे थे.
समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए मारे गए एक मृतक के भाई पृथ्वी कुमार ने कहा कि उनके परिवार को पुलिस से जानकारी मिली कि उनके भाई का संदिग्ध आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया है और उनकी हत्या कर दी गई है.
इन हत्याओं की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर्स (केटी) ने ली है. अधिकारियों की मानें, तो ये प्रतिबंधित पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद संगठन की एक शाखा है.
केटी उन कई नए उग्रवादी संगठनों में से एक है, जिनका उभार 2019 में केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद हुआ है.
सोशल मीडिया पर प्रसारित फोटो में दोनों मृतकों के मुंह, नाक और सिर से खून बहता दिख रहा था. ऐसा लग रहा था कि मारे जाने से पहले अहमद के सिर के चारों ओर कपड़े की एक पट्टी कसकर बंधी हुई थी और कुमार की आंखों पर पट्टी बंधी हुई दिखाई दे रही थी, जबकि दोनों के हाथ पीछे की ओर बंधे हुए थे.
ज्ञात हो कि इन हत्याओं ने 2018 की यादों को ताज़ा कर दिया है, जब भाजपा नेता अनिल परिहार और उनके भाई अजीत की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसके बाद सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इस जिले में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था. यहां पूर्व में भी हिंदुओं और मुसलमानों के बीच झड़पें और दंगे हुए हैं.
मालूम हो कि इस बार किश्तवाड़ विधानसभा क्षेत्र से मारे गए भाजपा नेता अनिल परिहार की बेटी शगुन परिहार ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की है.
इन हत्याओं की उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पूर्व केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला और जम्मू-कश्मीर के अन्य राजनीतिक नेताओं ने निंदा की है.
इससे पहले 29 अक्टूबर को भी जम्मू के बट्टल इलाके में आतंकवादियों द्वारा सेना की एम्बुलेंस पर असफल हमला किया गया था. इस विफल हमले में शामिल सभी तीन आतंकवादियों ने हाल ही में नियंत्रण रेखा के पास अखनूर सेक्टर से जम्मू में घुसपैठ की थी. इन सभी को इस क्षेत्र में 15 घंटे से अधिक समय तक चले उग्रवादी विरोधी अभियान में मार गिराया गया.
इस मुठभेड़ में फैंटम नाम का सेना का एक कुत्ता भी घायल हो गया था, जिसने बाद में चोटों के कारण दम तोड़ दिया.
किश्तवाड़ में ये हत्याएं सुरक्षा बलों द्वारा अनंतनाग के एक मुठभेड़ में पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) के एक ऑपरेशनल कमांडर अरबाज मीर को मार गिराने के कुछ दिनों बाद सामने आई हैं.
एक अन्य मुठभेड़ में उसी दिन उस्मान भाई, जो लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध था और पाकिस्तान से था, को भी मार गिराया गया था.
सुरक्षा बलों ने इन आतंकियों की हत्याओं को लश्कर और पीएएफएफ के लिए एक बड़ा झटका करार दिया था. पीएएफएफ जैश की एक और संदिग्ध शाखा है, जिसने 2021 से जम्मू के पीर पंजाल क्षेत्र में सशस्त्र बलों पर कई घातक हमले किए हैं.
गौरतलब है कि किश्तवाड़ की ये घटना श्रीनगर में एक ग्रेनेड विस्फोट के चार दिन बाद सामने आई है, जिसमें कम से कम एक दर्जन नागरिक घायल हो गए थे.
इस महीने की शुरुआत में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पद की शपथ लेने के बाद जम्मू-कश्मीर में यह सातवां लक्षित हमला था, जिसमें नागरिक मारे गए हैं. 1 नवंबर को आतंकवादियों ने बडगाम जिले के मगाम इलाके में गोलाबारी की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के दो प्रवासी मजदूर घायल हो गए थे.
उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से 24 अक्टूबर को उत्तरी कश्मीर के गुलमर्ग स्की रिसॉर्ट के पास एक आतंकवादी हमले में सेना के दो जवान और कुली के बतौर काम करने वाले दो नागरिक मारे गए थे, जबकि तीन अन्य सैनिक घायल हो गए थे.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अब्दुल्ला सरकार के सत्ता संभालने के बाद लक्षित हमलों और उग्रवाद विरोधी अभियानों में करीब दो दर्जन नागरिक, सुरक्षाकर्मी और आतंकवादी मारे गए हैं.
ये घटनाएं दक्षिण, मध्य और उत्तरी कश्मीर के साथ-साथ जम्मू संभाग से भी सामने आई हैं, जो केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवादियों की व्यापक उपस्थिति का संकेत देती हैं.