दिल्ली: यूएपीए के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ एकजुट हुए बुद्धिजीवी, राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई की मांग

9 नवंबर, 2024 को ‘कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ (सीसीजी) ने दिल्ली के कंस्टीटूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में एक कॉन्क्लेव का आयोजन किया था, जिसमें राजनीतिक क़ैदियों के अधिकार, यूएपीए और पीएमएलए और केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा की गई.

नई दिल्ली: एक तरफ़ देश के जागरूक नागरिक गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठा रहे हैं. वही दूसरी तरफ़ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राज्य की पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों को खुलकर यूएपीए का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.

ऐसे समय में शनिवार (9 नवंबर, 2024) कोकांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ (सीसीजी) ने दिल्ली के कंस्टीटूशन क्लब ऑफ इंडिया में एक कॉन्क्लेव का आयोजन किया था, जिसमें राजनीतिक कैदियों के अधिकार, यूएपीए और पीएमएलए के दुरुपयोग, केंद्रीय जांच एजेंसियों (ईडी, सीबीआई, आदि) के ग़लत इस्तेमाल और न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा की गई.

कॉन्क्लेव में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी. लोकुर, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण, लेखिका गीता हरिहरन, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और वरिष्ठ पत्रकार और द वायर की पब्लिक एडिटर पामेला फिलिपोस ने उक्त विषयों पर अपनी राय रखी.

सभी ने हल ही में दिवंगत हुए पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को याद किया. वक्ताओं ने कारावास में जान गंवाने वाले बुजुर्ग मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत के लिए सरकार और न्यायपालिका को ज़िम्मेदार ठहराया. बिना ट्रायल शुरू हुए जेल में लंबे समय से बंद कार्यकर्ताओं- उमर ख़ालिद, गुलफिशा फातिमा और अन्य सभी राजनीतिक कैदियों के साथ हो रहीनाइंसाफीऔरअत्याचारकी निंदा की.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा, ‘मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को आतंकवादी और अर्बन नक्सल कहना राजनीतिक रूप से फायदे का काम हो गया है. हमारे जिन साथियों को आतंकवादी बताकर चारपांच साल से जेल में रखा गया है (कई बाहर भी आ गए हैं) उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है. दरअसल हम भूल गए हैं कि आतंकवाद क्या है.

कॉलिन गोंजाल्विस पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में शामिल नलिनी के केस का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘सभी चाहते थे कि नलिनी को फांसी की सजा मिले. लेकिन तीन जजों की पीठ ने फैसला सुनाया कि आत्मघाती दस्ते का मकसद पूरे भारत सरकार को आतंकित करना नहीं था. वे राजीव गांधी से नफ़रत करते थे और सिर्फ उन्हें ही मारना चाहते थे. इसलिए टाडा के तहत लगे आरोपों को खत्म किया जाता है.

कॉलिन ने बताया कि राजीव गांधी की हत्या के मामले में आतंकवाद का केस नहीं चला, बल्कि हत्या का केस चला. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ने कई और उदाहरण दिए जिसमें सरकार ने लोगों को आतंकवादी कर कह जेल में डाला लेकिन वे सब आतंकवाद के मामले नहीं थे.

इसके बाद कॉलिन ने बताया कि असल में आतंकवाद क्या है, उन्होंने भाजपा नेता अनुराग ठाकुर का जिक्र करते हुए कहा, ‘भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री ने अपने समर्थकों के सामने घोषणा किदेश के गद्दारों कोगोली मारो सालों कोऔर इसके कुछ दिन बाद दिल्ली में दंगे शुरू हो गए. यह है आतंकवाद का सबसे सही उदाहरण.

यूएपीए की समस्याएं

गीता हरिहरन ने सवाल उठाया किअनलॉफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्टका क्या मतलब है? आईपीसी (अब भारतीय न्याय संहिता) की धाराएं होती ही इसलिए हैं कि ताकि अनलॉफुल (गैरकानूनी) गतिविधियों की पहचान की जा सके, फिर हमें अलग  से एक सुपर लॉ की क्या ज़रूरत है, जो यह तय करे कि क्याअनलॉफुलहै?’

गीता आगे पूछती हैं कि आख़िर इसअनलॉफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्टके तहत अनलॉफुल एक्टिविटी किस चीज को माना जा रहा है, पिछले कुछ वर्षों के उदाहरण से तो यही पता चलता है कि भाषण देने, लेख लिखने, सोशल मीडिया पर पोस्ट करने, कार्टून बनाने, सेमिनार करने, घर में किताब रखने, साथी नागरिकों (जैसेदलित, आदिवासी, गरीब) की मदद करने को अनलॉफुल एक्टिविटी मान लिया जा रहा है.

लेखिका गीता हरिहरन

ऐसे क़ानून की वजह से हमारे जीवन के रोजमर्रा की गतिविधियां अनलॉफुल होती जा रही हैं. इस क़ानून के तहत गिरफ़्तार लोगों की फाइल, किताबें, डायरी, लैपटॉप, मोबाइल को जब्त कर लिया जाता है, फिर कोई ख़ुद को निर्दोष साबित कैसे करेगा?’

द वायर हिंदी से बातचीत में गीता ने कहा, ‘ऐसे क़ानून न सिर्फ उस व्यक्ति की जिंदगी पर असर पड़ रहा है, जो जेल में है, बल्कि उससे जुड़े लोगों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है. परिवार, दोस्त, सहकर्मी भी मानसिक तनाव से गुज़र रहे हैं. बिना केस शुरू हुए सालोंसाल जेल में बंद लोगों का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है.

आधी न्यायपालिका भगवा हो चुकी हैप्रशांत किशोर

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत किशोर ने बताया कि कैसे भारत की न्यायपालिका पर सत्ताधारी पार्टी के विचार का कब्जा होता जा रहा है. जजों को ब्लैकमेल किया जा रहा है. सरकार उन जजों की नियुक्ति ही नहीं होने दे रही है, जो स्वतंत्र हैं.

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण

पिछले एक दशक में भाजपाआरएसएस की विचारधारा ताल्लुक रखने वाले इतने जजों की नियुक्ति हो गई है कि आधी न्यायपालिका भगवा हो चुकी है. यही वजह है कि सरकार को लगभग हर मामले में जीत मिल रही है.   

विरोध करने की स्वतंत्रता पर बात होसंजय हेगड़े

संजय हेगड़े ने कहा कि हमें विरोध करने की स्वतंत्रता पर भी बात करनी चाहिए, ‘लद्दाख से आए सोनम वांगचुक को राजघाट जाने से रोकने के लिए पुलिस ने हिरासत में ले लिया. उन्हें दो अक्टूबर की रात को छोड़ा गया. उन्हें और उनके साथियों को लद्दाख भवन पर प्रदर्शन नहीं करने दिया. जंतरमंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई, सरकार क्या चाहती है कि लोग अपने घर के भीतर बैठकर प्रदर्शन करें.’