कर्नाटक: जांच समिति की रिपोर्ट में येदियुरप्पा सरकार द्वारा पीपीई खरीद में धोखाधड़ी के आरोप सामने आए

कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस जॉन माइकल डी'कुन्हा समिति की रिपोर्ट में पाया गया है कि कोविड महामारी के समय राज्य सरकार द्वारा पीपीई किट खरीदारी के संबंध में काफ़ी हेरफेर की गई थी.

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा (फोटोः फाइल)

नई दिल्लीः कर्नाटक हाईकोर्ट के एक पूर्व जज के नेतृत्व वाली समिति की जांच में सामने आया है कि कर्नाटक में भाजपा तत्कालीन येदियुरप्पा सरकार द्वारा दो चीनी कंपनियों से तीन लाख पीपीई किट की खरीदारी ‘गैर-पारदर्शी, मनमाने ढंग और धोखाधड़ी’ से भरी थी. 

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य विभाग के उन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की भी सिफारिश की है, जिन्होंने उस समय पीपीई किट की खरीद के आदेश जारी किए थे जब कोविड ​​​​-19 के मामले बढ़ रहे थे.   

जॉन माइकल डी’कुन्हा आयोग की रिपोर्ट में पाया गया है कि खरीदारी के संबंध में रिकॉर्ड यह दिखाने के लिए बनाए गए थे कि इसके लिए मुख्यमंत्री की मंजूरी ली गई थी.

न्यूज मिनट के अनुसार, बीते 30 अगस्त को वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सौंपी गई 1,722 पन्नों की अंतरिम रिपोर्ट में बताया गया है कि कथित संदिग्ध सौदों में लगभग 1,000 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई थी.

द हिंदू ने उक्त रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव, निजी सहायक और अतिरिक्त मुख्य सचिव की सिफारिश के बावजूद भी आधिकारिक ग्लोबल टेंडर जारी किए बिना पीपीई किट के लिए ऑर्डर दिया गया.

अखबार ने समिति रिपोर्ट में उल्लिखित एक अन्य आधिकारिक नोटशीट का हवाला देते हुए कहा कि समय की मांग को ध्यान में रखते हुए टेंडर को टाला गया था. 2 अप्रैल, 2020 को जारी एक आदेश के माध्यम से डीएचबी ग्लोबल हांगकांग (चीन) को 1 लाख पीपीई किट की आपूर्ति करने के लिए कहा गया था. एक पीपीई किट 2,117.53 रुपये की कीमत पर खरीदी गई थी. इसी तरह पीपीई किट के लिए एक और ऑर्डर 10 अप्रैल को डीएचबी ग्लोबल हांगकांग और बिग फार्मास्यूटिकल्स को दिया गया था. पहले ने इसे 2,104.53 रुपये प्रति यूनिट और दूसरे ने 2,049.84 रुपये प्रति यूनिट की कीमत पर दिया. 

हालांकि, खरीदारी के एक महीने पहले राज्य की मूल्य निर्धारण समिति ने एक किट की अनुमानित लागत 211.3 रुपये बताई थी, जो दो विदेशी कंपनियों से खरीदी गई किट से लगभग 10 गुना कम थी.

इस अनुमानित मूल्य का आधार डीएचबी ग्लोबल हांगकांग और बिग फार्मा अलावा तीन अन्य कंपनियों से प्राप्त प्राइस कोटेशन थे. अंततः सरकारी टेंडर के माध्यम से किसी अन्य फर्म को आमंत्रित किए बिना, येदियुरप्पा सरकार ने  डीएचबी ग्लोबल हांगकांग और बिग फार्मास्यूटिकल्स से किट खरीदे. 

रिपोर्ट में बताया गया है कि चीनी फर्मों को अप्रैल के ऑर्डर देने से पहले और बाद में दो स्थानीय सप्लायर को ऑर्डर दिए गए थे. जब यह पता चला कि स्थानीय सप्लायर में से एक ने मार्च में 330.40 रुपये प्रति यूनिट पर किट बेची थी, उसके बाद स्थानीय सप्लायर के लिए कीमत को संशोधित कर 725 रुपये प्रति यूनिट कर दिया गया, जो दो विदेशी फर्मों द्वारा तय की गई कीमत से काफी कम थी. 

द न्यूज मिनट ने राज्य के वर्तमान कानून मंत्री एचके पाटिल के हवाले से बताया है, ‘सैकड़ों करोड़ रुपये की हेराफेरी और गड़बड़ी हुई हैं (रिपोर्ट के अनुसार). कई फाइलें जिनके बारे में कहा जाता है कि वे गायब हैं, उनको ट्रैक करने के प्रयासों के बावजूद उन्हें जस्टिस डी’कुन्हा को सौंपा नहीं गया.’  

मौजूदा कांग्रेस की सरकार ने पिछले साल अगस्त में जांच के लिए इस आयोग की स्थापना की थी. उधर, राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और मौजूदा भाजपा सांसद के. सुधाकर ने इस रिपोर्ट को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताते हुए खारिज किया है.