नई दिल्ली: झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों मेें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) भाजपा के लिए प्रचार करते हुए पर्चे बांट रहा है जिसमें मतदाताओं से उस पार्टी को चुनने के लिए कहा गया है जो ‘घुसपैठियों’ की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का वादा करती है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, खूंटी जिले के सालेहातु गांव के बिरसा सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में करीब एक दर्जन स्कूली शिक्षक या आचार्य गुलाबी पर्चे लेने के लिए इकट्ठा होते हैं, जो अंततः स्कूल के आसपास के आदिवासी गांवों के घरों में पहुंचेंगे.
ये पर्चे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े लोक जागरण मंच द्वारा छापे गए हैं, जिसका गठन मतदाता ‘जागरूकता बढ़ाने’ के लिए किया गया है. जिस स्कूल में पर्चे बांटने के लिए तैयार किए जा रहे हैं, उसे संघ परिवार के एक अन्य सहयोगी वनवासी कल्याण केंद्र (वीकेके) द्वारा स्थापित और संचालित किया जा रहा है.
खूंटी से सटे गुमला जिले में भी वीकेके के जमीनी कार्यकर्ता पंचायत स्तर की बैठकों के लिए वही गुलाबी पर्चे तैयार कर रहे हैं, जहां से प्रत्येक ग्राम प्रधान को अपने-अपने गांवों में इसे घर-घर वितरित करने का काम सौंपा जाएगा.
इन पर्चों के साथ घर-घर जाने से लेकर स्कूली शिक्षकों को लामबंद करने तक – संघ परिवार भारतीय जनता पार्टी की ओर से दक्षिण झारखंड के सरना-बहुल जिलों में वोट जुटाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है. इस क्षेत्र में 13 नवंबर को झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान होना है.
हालांकि, पर्चे में नाम से यह नहीं बताया गया है कि किस पार्टी को वोट देना है, लेकिन इसमें मतदाताओं से उस पार्टी को चुनने के लिए कहा गया है जो ‘घुसपैठियों’ की पहचान करने के लिए एनआरसी का वादा करती है, ‘लव जिहाद’ के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने के लिए प्रतिबद्ध है, भारतीय संस्कृति, धर्म का सम्मान करती है, धार्मिक स्थलों की रक्षा करती है, धर्मांतरण और गोहत्या के खिलाफ काम करती है.
ये वे मुद्दे हैं जिन पर भाजपा नेता चुनाव प्रचार के दौरान चर्चा करते रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी के घोषणापत्र में एनआरसी के वादे का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है और ‘लव जिहाद’ के मुद्दे को राज्य में कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा के मुद्दे के रूप में पेश किया गया है.
आदिवासी बहुल इलाकों की सीटें निर्णायक बन सकती हैं
राज्य की 28 एसटी आरक्षित सीटों में से चौदह दक्षिण झारखंड के पांच जिलों – गुमला, खूंटी, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम में आती हैं – जिनमें से सभी में बड़े पैमाने पर अनुसूचित जनजाति की आबादी है. इन जिलों में एसटी आबादी में से लगभग 73% सरना धर्म या स्वदेशी आदिवासी आस्था प्रणालियों का पालन करते हैं और 2011 की जनगणना में खुद को ‘अन्य’ धर्म कॉलम में रखा है.
2019 के विधानसभा चुनाव में इन 14 सीटों में से झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं. खूंटी जिले की अन्य दो सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी.
अखबार के अनुसार, दशकों से वीकेके इन जिलों के आदिवासी गांवों में पहुंच चुका है, वहां उन्हें सड़कें, स्कूल और मंदिर बनाने में मदद कर रहा है – जिसका उद्देश्य अपने आदर्श वाक्य – तू, मैं एक रक्त (तुम्हारा और मेरा खून एक ही है) के संदेश को फैलाना है.
उन्हें मुख्य प्रतिरोध सरना-केंद्रित संगठनों जैसे कि केंद्रीय सरना समिति से मिला है, जो इस बात पर जोर देते हैं कि सरना हिंदू धर्म से पहले का है और उससे अलग है, तथा संघ परिवार पर उनकी स्वदेशी पहचान को सनातन धर्म के भीतर समाहित करने का प्रयास करने का आरोप लगाते हैं, साथ ही वे इसकी तुलना ‘आदिवासियों के धर्मांतरण’ में लगे मिशनरियों से करते हैं.
संघ के यह प्रयास ऐसे समय में हो रहे हैं, जब झामुमो और कांग्रेस इस क्षेत्र में सरना स्थलों के लिए चारदीवारी बनाने, राष्ट्रीय जनगणना में सरना धर्म का कॉलम शामिल करने और 1932 के सर्वेक्षण के अनुसार भूमि अभिलेखों को लागू करने जैसी नीतियों के जरिये सरना मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि झारखंड में आदिवासी लंबे समय से सरना धर्म कोड की मांग कर रहे हैं. हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासी धर्म व सरना कोड को मान्यता देने के प्रस्ताव को विधानसभा ने पारित करके केंद्र को भेजा है.
पीएम ने आदिवासियों को धार्मिक पहचान से वंचित क्यों रखा, सरना कोड लागू करने से इनकार क्यों: कांग्रेस
इस बीच, कांग्रेस ने रविवार (10 नवंबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए झारखंड पर सवाल उठाए और पूछा कि उन्होंने आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान से वंचित क्यों रखा और सरना कोड लागू करने से इनकार क्यों किया.
कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक पोस्ट में पूछा कि प्रधानमंत्री ने आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान से वंचित क्यों किया और सरना कोड को मान्यता क्यों नहीं दे रहे?
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘झारखंड के आदिवासी समुदाय वर्षों से सरना धर्म को मानते आ रहे हैं. वे भारत में अपनी विशिष्ट धार्मिक पहचान को आधिकारिक रूप से मान्यता देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन, जनगणना के धर्म कॉलम से ‘अन्य’ विकल्प को हटाने के हालिया निर्णय ने सरना अनुयायियों के लिए दुविधा पैदा कर दिया है. उन्हें अब या तो ऑप्शंस में मौजूद धर्मों में से किसी एक को चुनना होगा या कॉलम को ख़ाली छोड़ना होगा.’
उन्होंने दावा किया कि भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने 2021 तक सरना कोड को लागू करने का आश्वासन दिया था लेकिन इस मामले में कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है.
रमेश ने कहा कि सरना कोड की मांग जनजातियों की एक अलग धार्मिक समुदाय के रूप में आधिकारिक मान्यता की लंबे समय से चली आ रही आकांक्षा को दर्शाती है.