वफ़्फ़ बिल: विपक्षी सांसदों ने जेपीसी बैठकों में कोरम की कमी बताते हुए राज्यों की यात्रा का बहिष्कार किया

तीन विपक्षी सांसदों का कहना है कि उनकी शिकायतों का समाधान का आश्वासन देने के बावजूद जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने राज्य का दौरा जारी रखा है. विपक्षी सांसदों ने पांच राज्यों के दौरे का बहिष्कार करते हुए आरोप लगाया कि जगदंबिका पाल के नेतृत्व में हो रही बैठकों में कोरम पूरा नहीं है.

भुवनेश्वर में वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की बैठक. (फोटो साभार: एक्स/@jagdambikapalmp)

नई दिल्ली: वफ़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के कामकाज को लेकर कुछ विपक्षी सांसदों ने एक बार फिर नाराज़गी जताते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, विपक्षी सांसदों ने जेपीसी की राज्य यात्राओं पर विरोध जताया है. विपक्षी सांसदों का कहना है कि उनकी शिकायतों का समाधान करने का आश्वासन देने के बावजूद जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने राज्य का दौरा जारी रखा है.

विपक्षी सांसदों ने पांच राज्यों के दौरे का बहिष्कार करते हुए आरोप लगाया कि जगदंबिका पाल के नेतृत्व में हो रही बैठकों में कोरम (निर्दिष्ट सदस्यों की संख्या) पूरा नहीं है.

वहीं, जगदंबिका पाल द्वारा इन आरोपों का खंडन किया गया है. उनका कहना है कि संसदीय समितियों के अध्ययन दौरे (Study Tours) एक अनौपचारिक प्रक्रिया है. इन दौरों पर कोरम जैसी औपचारिकताओं का बंधन नहीं होता है.

सूत्रों के अनुसार, 9 नवंबर को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लिखे एक पत्र में कुछ विपक्षी सांसदों ने कहा कि 5 नवंबर को हुई बैठक के बाद उन्हें उम्मीद थी कि पाल के नेतृत्व में जेपीसी का दौरा टाल दिया जाएगा. उनका कहना है कि समिति की रिपोर्ट जमा करने की कोई तत्काल आवश्यकता नहीं है.

सूत्रों ने बताया कि जिन लोगों ने अध्यक्ष को पत्र लिखा है, उनमें द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) के ए.  राजा, कांग्रेस के मोहम्मद जावेद और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कल्याण बनर्जी शामिल हैं.

सूत्रों के अनुसार, सांसदों का कहना है कि उन्हें ये जानकार बेहद आश्चर्य हुआ कि  9 नवंबर से शुरू होने वाला दौरा जेपीसी का दौरा स्थगित नहीं किया गया. इसलिए उन्होंने इसका बहिष्कार करना ही उचित समझा.

रविवार (10 नवंबर) को समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया कि उन्हें विश्वास है कि संसद के शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के आखिरी दिन तक समिति की रिपोर्ट जमा करने की समय सीमा पूरी हो जाएगी.

गौरतलब है कि इससे पहले भी कुछ विपक्षी सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता जगदंबिका पाल पर ‘मनमाने ढंग से कार्यवाही बाधित’ करने का आरोप लगाते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को इस संबंध में पत्र लिखा था.

विपक्षी सांसदों ने अपने पत्र में ये भी कहा था कि अगर समिति में उनकी बात को अनसुना किया जाता है और उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए उचित मौका नहीं दिया गया, तो वे समिति से अपना नाम वापस लेने को मजबूर होंगे.

इस 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति में 13 सदस्य विपक्षी दलों से हैं, जिसमें नौ लोकसभा और चार राज्यसभा सांसद शामिल हैं.

3 नवंबर को लिखे पहले वाले पत्र पर जेपीसी पैनल के छह विपक्षी सांसद सदस्यों के हस्ताक्षर थे, जिसमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन के असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और मोहम्मद नदीमुल हक़, द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम के एम. अब्दुला और कांग्रेस के मोहम्मद जावेद के नाम शामिल थे.

ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने 08 अगस्त को लोकसभा में वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 को पेश किया था. हालांकि, विपक्षी सांसदों के विरोध के चलते इस विधेयक को संयुक्त समिति को भेज दिया गया. इस समिति ने 22 अगस्त को पहली बैठक की थी.

इस समिति की कई बैठकें विवादों में रही हैं. इससे पहले पिछले महीने 15 अक्टूबर को विपक्षी सदस्यों ने ओम बिड़ला को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि समिति की कार्यवाही अध्यक्ष जगदंबिका पाल द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से संचालित की जा रही है. इस संबंध में समिति के अध्यक्ष पाल ने कहा है कि बैठकों के दौरान विपक्षी सदस्यों को बोलने के पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं.

एक अन्य बैठक में कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग के एक पूर्व पदाधिकारी और भाजपा नेता द्वारा वक़्फ़ भूमि के आवंटन को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर की गई टिप्पणी के बाद कई विपक्षी सांसद पैनल की बैठक से वॉकआउट कर लिया था.

वहीं, 22 अक्टूबर को हुई  संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने आक्रोश में एक कांच की बोतल तोड़ दी थी, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था.

ज्ञात हो कि इस मामले को लेकर विपक्षी सदस्यों ने ‘गैर-हितधारकों’ के बयान पर भी सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा सदस्यों का आरोप है कि कठिन सवालों का सामना करने से बचने के लिए विपक्ष द्वारा समिति की कार्यवाही में ‘जानबूझकर व्यवधान’ डाला जा रहा है.