नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश के बद्दी की एसपी इल्मा अफरोज़ को छुट्टी पर भेजा जाना राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन चुका है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, छह नवंबर को शिमला में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक के बाद बद्दी लौटीं इल्मा अफरोज़ अपनी मां के साथ उत्तर प्रदेश के अपने पैतृक गांव लौट गई हैं.
बताया जा रहा है कि पिछले कुछ समय से उनका सोलन ज़िले के अंतर्गत आते दून विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक और कांग्रेस नेता राम कुमार चौधरी से टकराव चल रहा था. कुछ माह पहले ही चौधरी का नाम अवैध खनन से जुड़ा था.
हिमाचल प्रदेश के भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने राज्य के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सुखविंदर सिंह सुक्खू से इस विषय पर स्पष्टता की मांग करते हुए कहा है, ‘ऐसे फैसले राज्य के प्रशासनिक ढांचे को कमजोर कर सकते हैं.’
इस विवाद से जुड़े लोगों की लंबी पृष्ठभूमि है, जिसे समझना जरूरी है.
राम कुमार चौधरी और इल्मा अफरोज़
नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के रास्ते छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में आने वाले राम कुमार चौधरी साल 2012 में पहली बार विधायक चुने गए थे.
सियासत में बड़ी छलांग उन्होंने सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार में लगाई. दिसंबर 2022 में राज्य विधानसभा के लिए दूसरी बार चुने जाने के बाद, जनवरी 2023 में उन्हें मुख्य संसदीय सचिव (उद्योग, राजस्व एवं नगर नियोजन) नियुक्त गया. राम कुमार चौधरी के पिता चौधरी लज्जा राम भी मुख्य संसदीय सचिव रहे थे.
राम कुमार चौधरी कृषि, व्यापार, उद्योग, रियल एस्टेट और परिवहन के क्षेत्र में भी सक्रिय बताए जाते हैं. हिमाचल के राजनीतिक गलियारों में चौधरी सीएम सुक्खू के करीबी माने जाते हैं. उनकी सरकार बनने के बाद चौधरी हिमाचल की राजनीति में रसूखदार नाम बन चुके हैं.
वहीं किसान परिवार से ताल्लुक़ रखने वालीं इल्मा अफरोज़ ने साल 2017 में सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. 27 जनवरी, 2024 को उनकी पोस्टिंग बद्दी में हुई थी. इस पोस्टिंग के बाद चौधरी और अफरोज के बीच टकराव की शुरुआत हुई.
अगस्त में बद्दी के मलपुर निवासी कुछ लोग सरकारी ज़मीन पर अवैध खनन का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन कर रहे थे. बद्दी पुलिस मौके पर पहुंची, पुलिस को देख ड्राइवर और खनन कर रहे मजदूर मौके से भाग गए. पुलिस ने मौके पर मौजूद पोकलेन मशीन और टिप्पर का 75 हजार रुपये का चालान काटा दिया. यह दोनों मशीनें राम कुमार चौधरी की पत्नी कुलदीप कौर उर्फ निधि के नाम पर है.
तब इस मामले ने राज्य की राजनीति को गर्म कर दिया था. दून के पूर्व विधायक और भाजपा नेता परमजीत सिंह पम्मी ने कहा था, ‘मेरी सुक्खू जी से प्रार्थना है कि अपने विधायक पर लगाम सकें. उन्होंने यहां अवैध खनन के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. नदियों-नालों को छलनी कर दिया है. लोग बुरी तरह परेशान हैं. …मेरी एसपी महोदय से निवेदन है कि ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए.’
चालान काटे जाने के कुछ ही दिन बाद इल्मा अफरोज समेत कई सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाया गया था. राम कुमार चौधरी की ओर से लाए गए प्रस्ताव में एसपी इल्मा अफरोज पर जासूसी कराने का आरोप लगाया गया था.
हालिया विवाद पर राजनीतिक कोहरा
भाजपा सोशल मीडिया पर आरोप लगा रही है. हिमाचल भाजपा के एक्स हैंडल से शेयर किए गए एक पोस्ट में लिखा है, ‘अत्याचार और तानाशाही. सुक्खू सरकार ने एसपी इल्मा को कांग्रेस विधायक की पत्नी का चालान काटने पर सजा दी है… कांग्रेस का यह कैसा व्यवस्था परिवर्तन जहां बहन-बेटियों के साथ अत्याचार और तानाशाही हो रही है.’
ताजा विवाद के मद्देनजर पम्मी ने कहा है, ‘एसपी ने क्षेत्र में अच्छा काम किया है. …मुख्यमंत्री ने अपने विधायक के दबाव में फैसला लिया है.’
मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार (मीडिया) नरेश चौहान ने इस विषय पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया, ‘यह कुछ मामला नहीं है. इसे जाने दीजिए.’
राम कुमार चौधरी का दाग़दार इतिहास!
साल 2012 में पहली बार विधायक बनने के बाद राम कुमार चौधरी पर एक दलित युवती की हत्या का आरोप लगा था, जिसके साथ उनके कथित तौर पर विवाहेतर संबंध थे.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि ‘होशियारपुर जिले के भुंगा गांव की रहने वाली ज्योति (24) चंडीगढ़ में रहकर काम और पढ़ाई करती थी. पुलिस के मुताबिक़, राम कुमार चौधरी का ज्योति के साथ विवाहेतर संबंध था. जब ज्योति ने शादी करने की जिद की तो चौधरी ने उसकी हत्या करवा दी. इसके अलावा ज्योति अनुसूचित जाति से थी. चौधरी को डर था कि अगर ज्योति ने रिश्ते को सार्वजनिक कर दिया तो उनका राजनीतिक करिअर बर्बाद हो जाएगा.’
पुलिस ने दावा किया था कि ज्योति को बेहोश करके गला घोंटने के बाद सड़क पर फेंक दिया गया था. हालांकि, पंचकूला पुलिस इन बातों को कोर्ट में नहीं साबित कर पाई और साल 2014 में पंचकूला कोर्ट ने चौधरी समेत सभी 11 आरोपियों को बरी कर दिया.
इल्मा अफरोज़: विदेश की नौकरी छोड़ ‘देश की सेवा’ करने आई महिला
इल्मा अफरोज मूल रूप से मुरादाबाद जिले के कुंदरकी गांव की निवासी हैं और किसान परिवार से आती हैं.
‘जोश टॉक’ नामक एक प्लेटफॉर्म से अपनी कहानी बयां करते हुए इल्मा अफरोज ने कहा था, ‘मैं 14 साल की थी, जब मेरे पिता का देहांत हो गया था. मेरी अम्मी ने मुझे और मेरे छोटे भाई को बड़ा किया. जिंदगी में बड़ा सोचने और ख़ुद पर यकीन करने की हिम्मत मुझे मेरी अम्मी से ही मिली.’
अफरोज ने आर्थिक तंगी के कारण डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना छोड़ दिया था, ‘मैं दूसरे बच्चों को मोटी-मोटी किताबें लेकर कोचिंग जाते देखा करती थी. मैं अपने घर में मोमबत्ती के सहारे पढ़ा करती थी. मेरे दिल में भी ख्वाहिश थी कि उन बच्चों की तरह कोचिंग जाऊं, डॉक्टर या इंजीनियर बनूं. मगर तब घर में खाना मिल जाए, यही बड़ी बात थी. मेरे ख़याल से भारत के 80 प्रतिशत किसानों के बच्चों के सामने यही चुनौती होती है. यही वजह रही कि मैंने डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना छोड़, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज में बीए की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया.’
दिल्ली पहुंचने के बाद अफरोज के लिए आगे का रास्ता खुलता चला गया, ‘सेंट स्टीफन कॉलेज के बाद मुझे विदेश में पढ़ाई के लिए छात्रवृति मिली. मैं पेरिस गई, पेरिस स्कूल ऑफ इंटरनेशल अफेयर्स. पेरिस से पढ़ने के बाद मुझे ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय की स्कॉलरशिप मिल गई. ऑक्सफर्ड के बाद मैं संयुक्त राष्ट्र इडोनेशिया में काम करने लगी. संयुक्त राष्ट्र के बाद मैं न्यूयॉर्क सिटी चली गई, फ़ाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट में काम करने.’
अफरोज के भारत लौटने की कहानी भी दिलचस्प है. वे कहती हैं कि न्यूयॉर्क आकर उन्हें लगा कि उन्हें दुनिया घूम ली, ‘लेकिन वो लोग जिन्होंने मुझे इस लायक़ बनाया कि इन जगहों पर आ सकूं, अपनी प्रतिभा को पहचान सकूं, वो आज भी तमाम दिक्कतों के साथ जी रहे हैं.’
‘तब मैंने तय किया कि मुझे देश जाना है, उन्हीं लोगों के बीच जिनकी मैं बेटी हूं… इस सोच के साथ मैं सिविल सेवा में आने का मन बनाया.’
यह पुलिस अधिकारी आज अपनी ड्यूटी छोड़ कर छुट्टी पर जाने को बाध्य हो गई हैं.