राजनाथ सिंह का दावा: अग्निपथ योजना 158 संगठनों के सुझावों से लागू हुई; सेना अनजान

1 जुलाई 2024 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दावा किया था कि अग्निवीर योजना को 158 संगठनों से चर्चा के बाद लागू किया गया था. लेकिन रक्षा मंत्रालय ने आरटीआई आवेदन के जवाब में एक भी संगठन का नाम नहीं बताया, और कहा कि यह प्रश्न 'अस्पष्ट और काल्पनिक' है. 

(फोटो साभार: X/ भारतीय सेना)

नई दिल्ली: अग्निपथ योजना के इर्द-गिर्द अब एक नया विवाद सामने आ गया है. कुछ माह पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दावा किया था कि अग्निपथ योजना को 150 से अधिक संगठनों से चर्चा के बाद लागू किया गया था.

लेकिन रक्षा मंत्रालय ने इस संबंध में आरटीआई के माध्यम से पूछे गए सवालों के जवाब में एक भी संगठन का नाम नहीं बताया है. उल्टा, उनके अनुसार यह प्रश्न ‘अस्पष्ट और काल्पनिक (vague, non-specific and hypothetical in nature)’ हैं. 

क्या है विवाद?

1 जुलाई 2024 को लोकसभा में अग्निपथ योजना की ‘खामियों’ पर बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा था, ‘देश की सेना जानती है कि अग्निपथ योजना, सेना की योजना नहीं है. प्रधानमंत्री कार्यालय की योजना है. यह योजना प्रधानमंत्री के दिमाग़ की उपज थी.’

राहुल गांधी के इस बयान पर सत्तापक्ष ने तुरंत नारेबाज़ी शुरू कर दी. इसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह स्पष्टीकरण देने के लिए खड़े हुए और कांग्रेस सांसद पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया.

‘मैं नेता प्रतिपक्ष से विनम्रता पूर्वक अनुरोध करना चाहता हूं कि कृपया सदन को गुमराह करने की कोशिश न करें. अग्निपथ योजना के बारे में बहुत सारे लोगों से, 158 संगठनों से सीधा संवाद स्थापित हुआ है, उनके सुझाव लिये गए हैं, तब यह अग्निपथ योजना लायी गयी है… बिना अग्निपथ योजना के बारे में समझे, बिना पूरी जानकारी लिए, इस तरह से सदन को गुमराह करने को कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता है.’ राजनाथ सिंह ने कहा.

इतना ही नहीं, रक्षा मंत्री ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से अनुरोध किया कि राहुल गांधी के इस बयान को सदन की कार्रवाई से बाहर निकाला दिया जाए.

किन संगठनों से लिया गया था सुझाव?

सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैया कुमार द्वारा द वायर हिंदी को उपलब्ध कराए गए आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि सरकार ने उन संगठनों के नाम बताने से इनकार कर दिया, जिनका जिक्र रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में किया था.

10 जुलाई, 2024 को आरटीआई के माध्यम से डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस से तीन प्रश्न पूछे गए थे: 

  1. अग्निपथ योजना के संबंध में कितने संगठनों से सलाह ली गई थी, संख्या बताएं.
  2. अग्निपथ योजना के संबंध में किन संगठनों से सलाह ली गई थी, नाम बताएं.
  3. उन सुझावों की प्रति उपलब्ध कराएं, जो संगठनों ने दिए थे.
रक्षा विभाग में दायर की गई आरटीआई पर आया पहला जवाब.

11 जुलाई को डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस ने इन सवालों को डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफ़ेयर को ट्रांसफ़र कर दिया. 24 जुलाई को इन सवालों को एडिशनल डायरेक्टर जनरल, (आर्मी एजुकेशन ऑफ द आर्मी) को भेज दिया गया.

डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस ने सवालों को डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफ़ेयर को ट्रांसफ़र किया.

27 जुलाई को एडिशनल डायरेक्टर जनरल, (आर्मी एजुकेशन ऑफ द आर्मी) की तरफ़ से जवाब आया कि आपके द्वारा मांगी गई जानकारी इस मुख्यालय के पास नहीं है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस आरटीआई के तहत पूछे गए प्रश्न ‘अस्पष्ट और काल्पनिक (vague, non-specific and hypothetical in nature)’ हैं, और इसलिए आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 2 (एफ) के तहत सूचना की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते.

आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) जानकारी के अधिकार की परिभाषा को स्पष्ट करती है और बताती है कि ‘सूचना’ (Information) का क्या अर्थ है. सूचना केवल कागजी दस्तावेज नहीं है, बल्कि किसी भी रूप में उपलब्ध जानकारी को इस अधिनियम के तहत प्राप्त किया जा सकता है. इस अधिनियम के तहत कागजी दस्तावेज, डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक डेटा, सरकारी निर्णय, आदेश, रिपोर्ट्स, सार्वजनिक निकायों द्वारा दी गई राय, सुझाव, आदि को सूचना की श्रेणी में रखा गया है.

गौर करें, खुद रक्षा मंत्री ने लोकसभा में 158 संगठनों से सुझाव लेने का ज़िक्र किया था, लेकिन रक्षा मंत्रालय इन संगठनों और इन सुझावों से जुड़ी सूचना मांगने पर सवालों को ही को ‘अस्पष्ट और काल्पनिक’ कह दिया है. जबकि सवाल बिलकुल स्पष्ट थे.

एडिशनल डायरेक्टर जनरल की तरफ़ से आया जवाब

सूचना न मिलने की स्थिति में डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफ़ेयर के समक्ष आरटीआई अधिनियम की धारा 19 (1) के तहत 7 अक्टूबर को पहली अपील दायर की गई.

पहली अपील

इस अपील में लिखा था, ‘इस आरटीआई आवेदन में लिखी बातों को कोई भी सामान्य व्यक्ति आसानी से समझ सकता है कि मांगी गई जानकारी अग्निपथ योजना को लागू करने से पहले विभिन्न संगठनों के साथ की गई पूर्वपरामर्शों (pre-consultations) से संबंधित है.’

‘यह हैरान करने वाली बात है कि विद्वान सीपीआईओ, जो कि रक्षा मंत्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी भी हैं, इतने सरल और सीधे सवालों को नहीं समझ सके और आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य की अवहेलना करते हुए, मांगी गई जानकारी देने से इनकार कर दिया. जबकि हाल ही में देश की संसद में रक्षा मंत्री ने अग्निपथ योजना पर विभिन्न संगठनों से की गई पूर्व-परामर्शों के बारे में चर्चा की थी.’

11 अक्टूबर को पहली अपील का जवाब आया, जिसमें बताया गया कि मांगी गई जानकारी इस कार्यालय में उपलब्ध नहीं है. इस जवाब में फिर से कहा गया कि यह सूचना एडिशनल डायरेक्टर जनरल, (आर्मी एजुकेशन ऑफ द आर्मी) और सेना के सेंट्रल पब्लिक इनफॉर्मेशन ऑफिसर से संबंधित है. आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 6 (3) के तहत आगे की जानकारी वही देंगे.

इस आरटीआई आवेदन की मौजूदा स्थिति कहती है- ‘डिस्पोज ऑफ.’ यानी रक्षा मंत्रालय के अनुसार उन्होंने इस अपील का अंतिम जवाब दे दिया है.

पहली अपील का जवाब

इस विषय पर जानकारी के लिए द वायर हिंदी ने साउथ ब्लॉक स्थिति रक्षा मंत्रालय के कार्यालय जाकर संपर्क किया लेकिन पीआरओ (डी) मनोज रूड़कीवाल ने कोई जानकारी नहीं दी. इस संबंध में उन्हें सवाल ईमेल भी किया गया है, जिसका जवाब आने पर कॉपी में जोड़ा जाएगा.

रक्षा मंत्रालय (फोटो: अंकित राज/द वायर हिंदी)

क्या है अग्निपथ योजना और क्यों होती है आलोचना?

अग्निपथ योजना भारतीय सेना द्वारा लागू की गई भर्ती योजना है, जिसे 2022 में सरकार ने लागू किया था. इस योजना के तहत, युवा उम्मीदवारों को भारतीय सेना में चार साल के लिए भर्ती किया जाता है. इस योजना के आलोचक सबसे अधिक इस पहलू को रेखांकित करते हैं. 

इस योजना से युवाओं में उपजी असंतुष्टि पर द वायर हिंदी  ने कई राज्यों से ज़मीनी ख़बरों की विस्तृत श्रृंखला की है, जो बताती है कि इसने कई इलाकों की सामाजिक व्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया है. (इस विषय पर हमारी सीरीज को यहां पढ़ सकते हैं.)

जानकारी छिपाने का पहला मामला नहीं

अग्निवीर के मामले में जानकारी छिपाने का यह कोई पहला मामला नहीं है. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार अग्निवीर भर्ती से जुड़ी जानकारी देने में इच्छुक नहीं है. द वायर हिंदी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कम अंक वाले उम्मीदवार का नाम चयनित युवाओं सूची में आ गया, जबकि अधिक अंक वाले अभ्यर्थी बाहर हो गए. एक अन्य रिपोर्ट में हमने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद सेना ने चयनित अभ्यर्थियों के अंक नहीं बताए हैं.