नई दिल्लीः अमेरिकी सरकार के श्रम विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सामने आया है कि महाराष्ट्र के बीड जिले में गन्ने की कटाई के दौरान मजदूरों से जबरन श्रम करवाया जाता है.
हालांकि इस उद्योग से जुड़े लोगों ने इस रिपोर्ट पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह रिपोर्ट ‘अधूरी जानकारी’ के आधार पर बनाई गई है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिछले महीने जारी एक रिपोर्ट में गन्ने की कटाई को ‘जबरन और बाल श्रम द्वारा उत्पादित वस्तुओं की सूची’ में डाल दिया गया था. दावा किया गया है कि ‘भारत के कुछ हिस्सों में, मुख्य रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले में गन्ने के उत्पादन में मजदूरों से ‘जबरन श्रम’ करवाया जाता है. गैर सरकारी संगठनों और मीडिया की रिपोर्टों से पता चलता है कि जबरन श्रम जैसे कि बिना मर्ज़ी का ओवरटाइम, अनुचित वेतन कटौती, रहने की खराब स्थिति तथा इस उद्योग में शामिल होने के बदले घूस देने के लिए कर्ज लेना, इस उद्योग में आम बात है.’
इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि ‘श्रमिक नियमित रूप से बिना आराम के 12 से 14 घंटे तक खेतों में काम करते हैं, और कुछ श्रमिक 3-4 महीने तक बिना छुट्टी के काम करते हैं.’
बता दें कि गन्ना उद्योग का नाम इस तरह की रिपोर्ट में पहली बार आया है.
देश के बाकी राज्यों से अलग महाराष्ट्र और गुजरात में चीनी मिलें खेतों से गन्ने की कटाई और परिवहन के लिए श्रमिकों को रखती है. चीनी मिलें मुगद्दम (बिचौलियों) के माध्यम से मजदूरों से संपर्क करती हैं. पैसे लेने के बाद मुगद्दम मिलों को श्रमिक उपलब्ध कराते हैं. और जब किसानों के साथ सारे पैसों का हिसाब-किताब हो जाता है, उसके बाद प्रदान की गई सेवा (गन्ने की कटाई और परिवहन) के बदले में एक तय राशि किसानों को कुल दिए जाने वाले पैसों में से काट ली जाती है. गन्ने के व्यवसाय के इस अनूठे नियम का सिर्फ महाराष्ट्र में पालन होता है.
बीड जिले की चीनी मिलें राज्य के विभिन्न हिस्सों में गन्ने की कटाई के लिए श्रमिकों को भेजती है. इस प्रक्रिया के लिए लगभग 5-6 लाख पुरुष और महिलाएं हर सीजन की शुरुआत में अपने घरों से पलायन करते हैं. यह काम पांच-छह महीने तक चलता है.
इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि चूंकि किसान साल भर अपने गन्ने की फसल की देखभाल करते हैं और मजदूरों को दैनिक मजदूरी के आधार पर रखा जाता है, इसलिए मजदूरों की छुट्टी और स्वास्थ्य देखभाल तक उनकी पहुंच का सवाल ही नहीं उठता.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, नेशनल फेडरेशन ऑफ कॉप शुगर फैक्ट्रीज़ लिमिटेड के अध्यक्ष हर्षवर्द्धन पाटिल ने रिपोर्ट को बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘भारत के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में गन्ने की हाथ से कटाई और खेत से कारखाने तक परिवहन करने की सदियों पुरानी प्रथा रही है. कुशल श्रमिकों को उचित आश्रय, भोजन, समय पर वेतन (श्रम बोर्ड द्वारा तय), उनके बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं और स्वास्थ्य बीमा दी जाती है. सामूहिक विवाह की व्यवस्था जैसी सामाजिक कल्याण की सेवाएं नियमित रूप से चीनी मिलों द्वारा मुहैया कराई जाती है.’
राज्य में निजी मिल मालिकों की शीर्ष संस्था, वेस्ट इंडियन शुगर मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीबी थोम्बरे ने कहा कि यह रिपोर्ट मामलों की सही स्थिति को नहीं दर्शाती है. उन्होंने कहा, ‘रिपोर्ट अधूरी जानकारी के आधार पर तैयार की गई है और हम इसे खारिज करते हैं.’
किसान नेता राजू शेट्टी ने कहा कि कुछ महीने पहले अमेरिका स्थित शोधकर्ताओं ने उनसे मुलाकात की थी जो यह समझना चाहते थे कि चीनी उद्योग में चीजें कैसे काम करती हैं.
वह कहते हैं, ‘बैठक के दौरान मैंने इस बारे में बात की थी कि कैसे मैंने फसल काटने वालों की स्थिति को ध्यान में रख एक निजी विधेयक का प्रस्ताव रखा था. मेरे जैसे लोगों की पैरवी के परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने गन्ना कटाई कल्याण बोर्ड का गठन किया, जिसे बाद में दिवंगत केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे के नाम पर रखा गया.’
राजू शेट्टी कहते हैं कि गन्ने की कटाई की दर तय करने के अलावा बोर्ड को मजदूरों के लिए हॉस्टल का निर्माण और उनके स्वास्थ्य और शैक्षिक आवश्यकताओं की देखभाल करने का काम भी सौंपा गया है. उन्होंने कहा, ‘अमेरिकी सरकार को मेरी सलाह है कि उन्हें वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ने का काम हम जैसे लोगों पर छोड़ देना चाहिए, हमें उनकी मदद की जरूरत नहीं है.’
महाराष्ट्र के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने आचार संहिता का हवाला देते हुए इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.