नई दिल्ली: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार (13 नवंबर) को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी को दुर्व्यवहार करने का लाइसेंस नहीं देती, न ही इसमें दूसरों के खिलाफ गलत बोलने या आक्षेप लगाने का अधिकार शामिल है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, अदालत ने कहा कि हालांकि, देश का सामाजिक-लोकतांत्रिक ताना-बाना अलोकप्रिय विचारों को समायोजित करने के लिए लचीला है, लेकिन किसी को भी शालीनता और कानून की सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए. गैर-जिम्मेदार या प्रेरित आक्षेप समाज में हिंसा पैदा कर सकते है.
हाईकोर्ट में जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस गौरांग कंठ की खंडपीठ भारतीय जनता पार्टी की पूर्व नेता नाजिया इलाही खान द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
अदालत ने इस मामले में उन्हें जमानत तो दे दी, लेकिन उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर नाराजगी व्यक्त की. इस पोस्ट पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप है, जिसे लेकर 7 सितंबर को एमहर्स्ट स्ट्रीट पुलिस थाने में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.
सुनवाई के दौरान जस्टिस बागची ने कहा, ‘याचिकाकर्ता के साक्षात्कार में एक धार्मिक समुदाय के खिलाफ अनुचित आक्षेप शामिल हैं. हम जानते हैं कि याचिकाकर्ता को बोलने की आज़ादी है. हालांकि, ये आज़ादी उन्हें दूसरों के ख़िलाफ़ आरोप लगाने, गलत बोलने का अधिकार नहीं देती है.’
खान के वकील ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि अपलोड किए गए वीडियो हटा दिए गए हैं, और उन्होंने ऐसी कोई और टिप्पणी नहीं की है जो किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए.
इस पर एफआईआर दर्ज करने वाले व्यक्ति ने पीठ से खान पर भविष्य में साक्षात्कार न देने की शर्त रखने का आग्रह किया, जिसे जस्टिस बागची ने इनकार करते हुए कहा कि यह ‘पूर्व-सेंसरशिप’ के समान होगा, साथ ही ये याचिकाकर्ता के साथ अपराध के प्री-ट्रायल अनुमान के आभास जैसे होगा.
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी अच्छी समझ के आधार पर ‘भाईचारा, शालीनता और कानून की सीमा’ को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें सार्वजनिक रूप से क्या कहना है.
इस पर खान के वकील राणाजॉय चटर्जी ने कहा कि उनकी मुवक्किल भाजपा अल्पसंख्यक सेल की सदस्य और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं.
हालांकि, एक भाजपा नेता ने अखबार को बताया कि वह अब पार्टी से जुड़ी नहीं हैं.