उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाओं को जलवायु परिवर्तन के चलते नुक़सान का ख़तरा: अध्ययन

क्लाइमेट रिस्क हॉराइजंस के अध्ययन में कहा गया है कि उत्तराखंड के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में 10,678 मेगावाट की क्षमता वाली कम से कम 15 परियोजनाएं ऐसी हैं, जिसमें क़रीब 70 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश किया गया है और वे जगहें भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की ज़द में आ सकती हैं.

चमोली की त्रासदी. (फोटो साभार: एक्स/@khogensingh1)

नई दिल्ली: उत्तराखंड की जलविद्युत परियोजनाएं जलवायु परिवर्तन के चलते खराब मौसम और अन्य घटनाओं से नुकसान की ओर बढ़ रही हैं. क्लाइमेट रिस्क हॉराइजंस के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अतिविषम मौसमी घटनाओं (extreme weather events) के कारण उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाओं को विनाश के संभावित जोखिम और बड़े पैमाने पर वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस अध्ययन में कहा गया है कि इस क्षेत्र में जीवन के साथ-साथ बड़े निवेश को बचाने के लिए समय पर अनुकूलन और जोखिम को कम करने वाले शमन (mitigation) उपायों की आवश्यकता है. संवेदनशील नदी बेसिन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए जलवायु प्रभाव, भूकंपीय गतिविधि और भूस्खलन जैसे संकेतकों का आकलन किया जा सकता है.

अध्ययन के अनुसार, ‘एक साथ 10,678 मेगावाट की क्षमता वाली कम से कम 15 परियोजनाएं ऐसी हैं, जिसमें करीब 70 हजार करोड़ का निवेश किया गया है, जो उत्तराखंड के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में हैं. ऐसे में राज्य की ये जगहें आने वाले वर्षों में भूकंपीय या जलवायु जनित आपदाओं की जद में आ सकती हैं.

ये परियोजनाएं जोशीमठ-श्रीनगर में फैली हुई हैं, जो विश्लेषण के अनुसार सबसे असुरक्षित क्षेत्र है, इसके बाद टिहरी-उत्तरकाशी और पिथौरागढ़-बागेश्वर है, जो विशेष रूप से भूकंप को लेकर संवेदनशील माना जाता है.

इस अध्ययन में जोखिम विश्लेषण को लेकर भी अनुमानित लागत का अनुमान लगाया गया है, जिसके तहत फरवरी 2021 में ऋषिगंगा नदी में आई भीषण बाढ़ के मद्देनजर छोड़े गए मलबे को हटाने के लिए खर्च शामिल है, जिसने तपोवन-विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना को नष्ट कर दिया था.

विश्लेषण में अनुमान लगाया गया कि घाटी के निचले हिस्से में अचानक आई बाढ़ के बाद सिर्फ मलबे को हटाने पर 3,431.27 करोड़ की लागत आएगी, जिसमें श्रम, उपकरण और डंपिंग लागत शामिल होगी.

अध्ययन में कहा गया है कि इन लागतों के अलावा, मरम्मत, बांध और बिजली संयंत्र के बुनियादी ढांचे की बहाली के माध्यम से परियोजना की लागत में बढ़ोत्तरी पर भी ध्यान देना होगा.